-आर्यिका हर्षमती (संघस्थ)
तर्ज-क्या खूब…………….
भारत की राजधानी, दिल्ली है कहलाती।
वहाँ पे स्थित जिनमंदिर, जिनप्रतिमा मन भातीं।।
स्वर्ण थाल में स्वर्ण दीप ले, आरति सब कर लो।
इस विधान की, आरति से, निज जीवन सफल करो।
भारत की राजधानी………..।।टेक.।।
प्राचीन यहाँ कई मंदिर-हाँ मंदिर
जिनसंस्कृति का इतिहास बताते सुन्दर
कई नूतन जिनमंदिर हैं-मंदिर हैं
है छटा निराली, अति सुन्दर अद्भुत हैं
इस रचना के, माध्यम से, सबका दर्शन कर लो
दर्शन, पूजन, वन्दन से, भव-भव के अघ हर लो
भारत की राजधानी………..।।१।।
श्री ज्ञानमती गणिनी माँ-गणिनी माँ
इस युग की सरस्वती, अनुपम गुण गरिमा
चन्दनामती जी माता-हाँ माता
उनकी शिष्या, अद्भुत उनकी गुणगाथा
अतिशायी, उनकी रचनाएं, आशु कवी हैं वो
हम सबका है पुण्य जगा, इक रत्न मिला हमको
भारत की राजधानी………..।।२।।
जब तक रवि, शशि अरु तारे-हाँ तारे
युग-युग जीवन्त रहो माँ भाव हमारे
ब्राह्मी-सुन्दरि की जोड़ी-हाँ जोड़ी
जिनशासन की शुभ कीर्ति प्रसारि अनोखी
हम सबकी, आयुष के पल, इन जीवन में भर दो
अमर रहे यह कृती ‘‘हर्षमति’’ इन गुरु पद में प्रणमो
भारत की राजधानी………..।।३।।