-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-मेला मइय्या दा……..
अहिंसा की जय हो-२, सत्यमेव जयते।
अहिंसा की सबको-२, शांति और सुख दे।।टेक.।।
सारे जग में शांति और सुख इसके ही बल पर हो,
अहिंसा की जय हो-२।।टेक.।।
जब-जब धरती पर अन्याय तथा हिंसा भड़की है।
तब-तब सन्त महापुरुषों से धन्य हुई धरती है।।
इसीलिए सर्वदा न्याय की होती रही विजय है…..अहिंसा की जय हो….।।१।।
इन्सानों में ही हैवान का रूप छिपा रहता है।
उनमें ही भगवान का सच्चा रूप कभी दिखता है।।
मानव में मानवता का गुण जैसे बने प्रगट हो…अहिंसा की जय हो।।२।।
ज्ञानमती माता का आशीर्वाद है राष्ट्रपति को।
प्रतिभा पाटिल जी आईं, सम्मेलन उद्घाटन को।।
जिओ और जीने दो यह ‘‘चंदनामती’’ सुखप्रद हो….अहिंसा की जय हो।।३।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-रामजी की सेना चली…..
जय हो शांतिनाथ-२, जय हो शांतिनाथ-२, जय शांतिनाथ, जय शांतिनाथ-२।
विश्व में शांति हो-२, एक नई क्रांति हो-२, देश का विकास करो,
जग में प्रकाश भरो-२।।टेक.।।
जय हो शांतिनाथ-२……………
अहिंसा हो साथ में-२, संगठन हो हाथ में-२, अपना प्रयास करो,
जग में प्रकाश भरो-२।।टेक.।।
धर्म अहिंसा का पावन, सन्देश जहाँ से गूूंजा था,
सन्देश जहाँ से गूंजा था।
हस्तिनापुर की वह धरती, इंद्र भी आकर छूता था,
इंद्र भी आकर छूता था।।
उस रज को जब ज्ञानमती, माताजी ने स्पर्श किया,
माताजी ने स्पर्श किया।
अपनी त्याग तपस्या से, इस धरती को स्वर्ग किया,
इस धरती को स्वर्ग किया।।
स्वर्ग जैसी शांति हो-२, मन में नहीं भ्रान्ति हो-२, देश का विकास करो,
जग में प्रकाश भरो-२।।
जय हो शांतिनाथ-२, जय हो शांतिनाथ-२ ।।१।।
यह नगरी वह तीरथ है, जहाँ तीर्थंकर त्रय जन्मे थे,
तीर्थंकर त्रय जन्मे थे।
यह संस्कृति की कीरत है, जहाँ चक्रवर्ति भी रहते थे,
चक्रवर्ति भी रहते थे।।
रक्षाबंधन व महाभारत की घटनाएँ भी घटीं जहाँ,
घटनाएँ भी घटीं जहाँ।
‘‘चंदनामती’’ बस धर्म न्याय को, सदा विजयश्री मिली जहाँ,
सदा विजयश्री मिली जहाँ।।
सबके मन में शांति हो-२, कहीं न अशांति हो-२, ऐसा प्रयास करो,
जग में प्रकाश भरो-२।।
जय हो शांतिनाथ-२, जय हो शांतिनाथ-२ ।।२।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-दिल लूटने वाले………
हे विश्वशांति के उपदेष्टा, श्री शांतिनाथ प्रभु तुम्हें नमन।
हे धर्म अहिंसा के नेता, श्री शांतिनाथ प्रभु तुम्हें नमन।।टेक.।।
उपकार करूँ सारे जग का, यह भाव हृदय में आता है।
दु:खियों को देख हृदय रोता, मन करुणा से भर जाता है।।
दो शक्ति मुझे मैं सब जग का, दुख दूर कर सवूँâ कभी स्वयं।
हे विश्वशांति के उपदेष्टा, श्री शांतिनाथ प्रभु तुम्हें नमन।।१।।
भारत इक था गुलजार चमन, हिंसा ने उसको नष्ट किया।
सच्चाई के इस उपवन को, स्वार्थी तत्वों ने भ्रष्ट किया।।
ऐसी शक्ति हो प्रगट सभी में, विश्वशांति से करूँ चमन।
हे विश्वशांति के उपदेष्टा, श्री शांतिनाथ प्रभु तुम्हें नमन।।२।।
भगवान न यदि बन सवूँâ तो मैं, इंसान की श्रेणी पा जाऊँ।
यदि साधु नहीं बन सवूँâ तो मैं, सज्जन की श्रेणी पा जाऊँ।।
है भाव यही ‘चंदनामती’, खिल जावे भारत का उपवन।
हे विश्वशांति के उपदेष्टा, श्री शांतिनाथ प्रभु तुम्हें नमन।।३।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-तेरी दुनिया से दूर…….
हस्तिनापुर मशहूर, इसकी ख्याति दूर-दूर,
शान्तिनाथ स्वामी।।टेक.।।
शास्त्र पुराणों में, इस धरती की कहानी सुनी जाती थीं,
सुनी जाती थी और पढ़ी जाती थीं।
शान्तिनाथ, कुंथु, अरह जिनवर की, कथाएँ आती थीं,
कथाएँ आती थीं, व्यवस्थाएँ आती थीं।।
तीनों कर्मों को चूर, गए मुक्तिपथ की ओर
शान्तिनाथ स्वामी।।१।।
आदिनाथ प्रभु का प्रथम आहार इसी नगरी में हुआ,
नगरी में हुआ, इसी धरती पे हुआ।।
पर्व सलूनो, महाभारत का भी युद्ध इसी धरती पे हुआ,
धरती पे हुआ, इसी धरती पे हुआ।।
इतिहासों में मशहूर, लेकिन ख्याति से थी दूर,
शान्तिनाथ स्वामी।।२।।
जब से हस्तिनापुर में ज्ञानमती माँ के चरण हैं पड़े,
चरण हैं पढ़े, इनके चरण पड़े।
तब से सारे जंगल, उद्यान बन करके, सम्मान से बढ़े,
सम्मान से बढ़े अपनी शान से खड़े।।
ज्योति पैâली दूर-दूर, इसकी कथा मशहूर,
शान्तिनाथ स्वामी।।३।।
जम्बूद्वीप रचना भूगोल व जिनमंदिर का रूप बन गई,
रूप बन गई, उभय रूप बन गई।
कमल मंदिर, ध्यान मंदिर, और तेरहद्वीपों की रचना बन गई,
रचना बन गई, सुन्दरता बढ़ गई।।
‘‘चन्दना’’ गुणों से पूर, गजपुर नगरी है मशहूर,
शान्तिनाथ स्वामी।।४।।