रमेश-क्यों भाई महेश! मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को गाँव—गाँव में रावण का पुतला बनाकर क्यों जलाते हैं ?
महेश-रमेश! यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि तुम आज तक इस बात को नहीं जान सके कि रावण ने सीता का चोरी से अपहरण किया था, तब राम और लक्ष्मण ने उसकी लंका नगरी पर चढ़ाई करके उसे मारा था, उसी के प्रतीक में हर वर्ष लोग रावण का पुतला बनाकर जलाते हैं।
रमेश-परन्तु पुराणों में तो ऐसा वर्णन आता है कि रावण अर्धचक्री था और महान शक्तिशाली था। फिर उसके पास किस चीज की कमी थी जो पराई स्त्री उसने चुराई।
महेश-यही तो बात है यद्यपि रावण को किसी भी चीज की कमी नहीं थी किन्तु सीता के रूप पर मोहित होकर उसने मायाजाल फैलाकर उसे हरण कर लिया। सुनो, मैं तुम्हें संक्षेप में रावण की कथा सुनाता हूँ कि वह परस्त्री हरण के फलस्वरूप मरकर नरक में कैसे चला गया ?
रमेश-जरूर सुनाओ! वैसे मैंने टी०वी० में थोड़ा बहुत देखा तो है।
महेश-किन्तु मैं तो तुम्हें जैन रामायण के आधार से बताऊंगा। राक्षस द्वीप के अन्तर्गत लंका नाम की नगरी में राक्षसवंशीय त्रिखंडेश रावण अपनी पट्टरानी मंदोदरी सहित राज्य करता था, उसके इन्द्रजीत और मेघनाद आदि कई पुत्र थे। एक बार कैलाशपर्वत पर जब केवली भगवान की गंधकुटी में विद्याधर आदि सभी धर्मोपदेश श्रवण करने गए थे उस समय सभी ने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार व्रत, नियम ग्रहण किये तब रावण ने भी यह प्रतिज्ञा ली कि जो स्त्री मुझे जब तक नहीं चाहेगी, तब तक मैं उसके साथ बलात्कार नहीं करूंगा।
रमेश-फिर भी उसने अपने नियम को तोड़ दिया ? धिक्कार है उसके जीवन को।
महेश-कौन कहता है कि उसने नियम तोड़ा है, सुनो तो सही पहले उसकी कहानी। रावण इधर अपने वैभव में मग्न था उधर अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित जब वनवास में थे एक वीर खरदूषण से युद्ध करने जब लक्ष्मण चले गये उस समय रावण ने छल से अपनी विद्या द्वारा सिंहनाद करके रामचन्द्र को युद्धस्थल में लक्ष्मण की सहायतार्थ बुला लिया और स्वयं अप्रतिम सुन्दरी सीता को चुरा लिया। रामचन्द्र को जब युद्धभूमि में लक्ष्मण ने देखा तो आश्चर्यचकित हो तुरन्त भाई को वापस भेजा। वापस आने पर सीता वहाँ पर न मिलने पर रामचन्द्र मूर्छित हो गये। थोड़ी ही देर में लक्ष्मण भी आ गए, दोनों भाई इस असह्य वेदना से विलाप करने लगे। रावण सीता को हरण तो कर लाया किन्तु सीता जैसी शीलवती पर जबर्दस्ती अधिकार न बना सका। वह सीता को तरह—तरह के प्रलोभन देकर अपनी पट्टरानी बनाना चाहता था परन्तु पतिव्रता सीता अपने शील पर दृढ़ थी और उसे विश्वास था कि इस पापी को एक दिन पाप का फल अवश्य भोगना पड़ेगा। वैसा ही हुआ, राम और लक्ष्मण अपनी सेना सहित लंका नगरी में पहुँच गये। रावण की भी चतुरंगिणी सेना मैदान मे आ गई और दोनों सेनाओं में युद्ध प्रारम्भ हो गया। जैन रामायण में ऐसा कथन आता है कि रावण के परिवारजनों ने एवं सारे नगरनिवासियों ने उसे बहुत समझाया कि रामचन्द्र को उनकी सीता वापस कर दो किन्तु ‘‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’’ के अनुसार रावण को कुछ समझ में नहीं आया। हाँ रमेश! इतना अवश्य रहा कि रावण ने अपने नियम का पालन करते हुए सीता के साथ कभी बलात्कार नहीं किया। सीताजी ने सबसे अधिक रावण का यही अपने ऊपर उपकार माना वर्ना जो दुष्ट चोरी से उसको उठाकर ले गया था उसका तो सर्वतोमुखी अधिकार था परन्तु रावण केवल सीता को साम, दाम, दण्ड,भेद से मनाता रहता कि यह सुन्दरी किसी भी प्रकार मेरा आग्रह स्वीकार करके मेरी अर्धांगिनी बन जावे। अन्त में जब रावण के ऊपर किसी भी बात का प्रभाव नहीं पड़ा तब युद्ध में लक्ष्मण के द्वारा मरण को प्राप्त कर तीसरे नरक में जाना पड़ा।
रमेश-भाई,मै समझ नहीं पाया कि जब रावण ने सीता के साथ कोई गलत कार्य नहीं किया तो भी वह नरक क्यों चला गया ?
महेश-हाँ रमेश! देखो तो सही। जब रावण ने मात्र परस्त्री सेवन की भावना से नरकगति को प्राप्त किया तो परस्त्री का सेवन करने वालों को कौन सा रसातल प्राप्त होता होगा ? आज हम देखते हैं कि कितने ही मनचले लड़के सड़क पर चलती हुई लड़कियों को छेड़ दिया करते हैं किन्तु सोचो तो सही कि यदि हमारी बहन को कोई बुरी नजर से देख ले तो दिल पर क्या गुजरती है ?
रमेश-तो इसीलिये रावण के पुतले को लोग जलाते हैं ?
महेश-हाँ, इसीलिए जलाते हैं किन्तु पुतला जलाना तो संकल्पी हिंसा है। मैं तो जहां तक समझ सका हूं कि रावण को नहीं बल्कि जिस दुर्गुण के कारण वह बदनाम हुआ उस दुर्गुण को सर्वथा अपने जीवन में जला देना चाहिए। यही कारण है कि आज सारे संसार में कोई भी व्यक्ति अपने पुत्र का नाम ‘रावण’ नहीं रखता जबकि सीताहरण के अतिरिक्त रावण कितना महान और गुणज्ञ था किन्तु एक अवगुण ने उसके समस्त गुणों पर पानी फेर दिया। लेकिन सीताजी ने अपने शील की सुरक्षा हो जाने के कारण रावण का सबसे अधिक उपकार माना। यही कारण है कि रावण बुरी भावना से मरकर तीसरे नरक गया और सीता का जीव संयम सहित समाधिमरण करके सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ। स्वर्ग में भी जब अविधज्ञान से सीता के जीव ने जान लिया कि रावण नरक में है तो वहाँ जाकर उसे सम्बोधित करके सम्यक्त्व ग्रहण कराया। पद्मपुराण में ऐसा वर्णन है कि आगे कई एक भवों बाद रावण का जीव मनुष्य लोक में तीर्थंकर होगा और सीता का जीव उनका गणधर होगा।