वरहिया जैन समाज की विद्वत परंपरा में पंडितवर्य गोपालदास जी वरैया के पश्चात् पं.छोटेलाल जी वरैया का नामोल्लेख आता है “समूचे मालवांचल में समादृत और उज्जैन के शीर्ष जैन विद्वानों में सुमेरु तुल्य पंडित छोटेलाल जी वरैया का जन्म भाद्रपद कृष्णा 5 संवत 1965 में ग्राम आमोल जिला शिवपुरी में हुआ था “आपके पिता का नाम श्री मोतीलाल जी वरहिया व माता का नाम श्रीमती सुन्दरबाई था “आपके पिता श्री मोतीलाल जी वरहिया अत्यंत सरलचित्त व्यक्ति थे “आप चौधरी गौत्र के रत्न हैं “किशोरावस्था से ही आप आजीविका के लिए परिश्रम करने में जुट गए “संवत 1982 में श्रीमती पुनियाबाई के साथ आपका विवाह हुआ “अपनी जीवनसंगिनी से आपको 2 संतानें प्राप्त हुईं किन्तु क्रूर काल ने आपकी दोनों संतानों जिनमें एक पुत्री व एक पुत्र था ,आप से छीन लिया ” इसके पश्चात् संवत 1998 में आपकी धर्मपत्नी का भी स्वर्गवास हो गया “”इस दारुण वियोग से आपका ह्रदय विदीर्ण हो गया ” बाल्यावस्था से ही प्रतिकूलताओं से संघर्ष कर बड़े हुए युवा छोटेलाल ने इस विषम परिस्थिति में भी अपने संतुलन को डिगने न दिया और अपने मन के इस सूनेपन को समाजसेवा ,सत्संग और साहित्य सृजन से भरना शुरू कर दिया और यही उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़-बिंदु (टर्निंग प्वाइंट )सिद्ध हुआ ” काव्य के पठन-पाठन में बचपन से ही आपकी गहरी रूचि रही “पांडित्य विधि की शिक्षा प्राप्त कर आपने अनेक धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराये जिसमें पंचकल्याणक जैसे विराट अनुष्ठान भी शामिल हैं किन्तु आपने पांडित्य कर्म को कभी अपनी आजीविका नहीं बनाया और अपनी इन सेवाओं के लिए मार्ग व्यय के अतिरिक्त कोई धन स्वीकार नहीं किया ” आप अनेक सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं जिनमें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा अजमेर,सोनागिर सिद्धक्षेत्र कमेटी ,भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद् इत्यादि उल्लेखनीय हैं ” आप संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे “आपने लगभग 45 ग्रन्थ और सौ से अधिक आलेख लिखे हैं जो आपकी विचक्षणता का जीवन्त प्रमाण हैं “आपकी रचनाएँ भारतवर्ष की सभी प्रमुख जैन पत्र पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं हैं “आपके कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं “गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं पर आपका समान अधिकार रहा है “आपकी पुस्तकों का समाज में धर्म प्रचारार्थ निशुल्क वितरण हुआ जिससे अखिल जैन समाज में आपको अत्यधिक ख्याति और बहुमान प्राप्त हुआ “आपने अपने संचित द्रव्य का सदुपयोग करते हुए अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीर जी में शांतिनगर स्थित जिनालय श्रृंखला में एक जिन- मंदिर का निर्माण कराया और वेदी प्रतिष्ठा कराई जो अत्यंत मनोज्ञ और भव्य है ” आपकी अप्रतिम सेवाओं के लिए जैन समाज द्वारा आपको ‘विनोद-रत्न’,’व्याख्यान भूषण’,’वाणी भूषण’,’धर्मालंकार’,’समाज रत्न’ आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित कर बहुमान प्रदान किया गया “हमारी स्मृतियों में जीवित जैन दर्शन के गहन अध्येता पंडित प्रवर छोटेलाल जी वरैया सही अर्थों में वरहिया जैन समाज के गौरव हैं “