अर्हत् वचन वर्ष १९, अंक—३ मुख्य पृष्ठ पर सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट में विराजित भगवान ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा का चित्र प्रकाशित हुआ है। यही चित्र अंक के पृष्ठ ३३ पर भी प्रकाशित है जिसमें पादपीठ पर अंकित शिलालेख पृथक रूप से दर्शाया गया हैं उभयत्र पादपीठ के मध्य में प्रतिमा के लान्छन स्वरूप बैठा हुआ वृषभ अंकित है। इस अंक के पृष्ठ ३३-३४ में प्रकाशित अपने शोधालेख में श्री सूरजमल बोबरा, निदेशक—ज्ञानोदय फाउन्डेन, ९/२, स्नेहतागंज इन्दौर—४५२ ००३ ने बताया है कि संवत् १९३५ में भट्टारक महेन्द्रर्कीितजी ने स्वप्न पाकर यहाँ की खोज की थी। खोज में उन्हें दो र्मूितयाँ प्राप्त हुई थी जिनमें एक प्रतिमा चन्द्रपुभ भगवान की संवत् १५४५ की बताई गयी है। दूसरी प्रतिमा भगवान आदिनाथ की थी। इस प्रतिमा की आसन पर वि. सं. ११ (?) का उल्लेख भी लेखक ने किया है। यह भी लेख में बताया गया है कि भट्टारक जी को अपनी खोज में यहाँ विशाल खण्डित मंदिर परिसर भी दिखाई दिया था। मन्दिर का संवत् १९५१ में जीर्णोद्धार हुआ और यह क्षेत्र प्रकाश में आया। लेखक श्री बोबराजी ने आदिनाथ—प्रतिमा के लेख में अनितम दो अंक स्पष्ट नहीं किये हैं। प्रथम दो अंकों में वि. सं. ११ मात्र पढ़ा है एवं आगे (?) भी लगाया है। पद्मासनस्थ इस प्रतिमा के चित्रों पादपीठ पर उत्कीर्ण शिलालेख की प्रथम पंक्ति के आदि मैं संवत् ०११ एक से एक ऐ वे पढ़ने में आया है। यहाँ से सौ के लिए व्यवहृत हुआ है। संवत् ०११ में इकाई, दहाई, सैकड़ा (सौ) के प्रतीक है तीन अंक। अत: कहा जा सकता है। कि ‘एक से एक से’ का अर्थ है ग्यारह सौ। यहाँ संवत् अंकों और वर्णों दोनों में उत्कीर्ण किया गया हैं आगे वे पढ़ने में आता है। इस प्रकार ज्ञात होता है कि विक्रम् संवत् ११०० में इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई गयी थी। यह शिलालेख निम्न प्रकार पढ़ने में आया है—
१. संवत् ०११ एक से (सौ) एक से (सौ) वे (वें) वेसाष (वैशाख) मा. चिन्ह) से सुक्ल (शुक्ल) पक्षे तथी (तिथि) गुरूवासरे।
२. मूलसंघे पणे (गणे) बलात्कार श्री (चिन्ह) कुंदकुदण स्वारीय आमना।
३. यामत उपदेसात् (उपदेशात्) श्री हेमचंद (चिन्ह)……(आचारीय) नग्ने सीदवर (सिद्धवर) कूटराह
४. वडग्यतिस्क साषा (शाखा) साभ से—रज गोत्र साह जिमचंदजी…..(सेट्ठी) चित्रों में चौथी पंक्ति का आरम्भिक और अन्तिम अंक नहीं है। यह लेख ०६.०४.९७ में मैंने भी पढ़ा था। उस समय यह अशुद्ध पढ़ा गया प्रतीत होता है। समयाभाव के कारण उस समय जो समझ में आया वह नोट किया गया था। अवसर मिला तो प्रतिमा के पुन: दर्शन कर इसे शुद्ध करने का यत्न किया जायेगा। चतुर्थ पंक्ति में पडग्यातिलक के स्थान में वडवातिलग संभावित है। बड़वाह रेलवे स्टेशन का नाम है। इस स्टेशन से सिद्धवरकूट १९ किलोमीटर दूर है। संभवत: जिमचंद सेठी बड़वाह नगर के श्रेष्ठ शाह रहे हैं जिन्होंने इस प्रतिमा को प्रतिष्ठित कराया था। सिद्धवरकूट प्राचीन नाम हैं ग्यारहवीं सदी में इस स्थान का यह नाम प्रचलित रहा प्रतीत होता है।