आज अर्थ के युग में इंसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए दिन और रात को एक समान किये हुए है।, और जिसके पास अर्थ की प्रचुरता है वो उसके प्रदर्शन के लिए आतुर है और उसके पास संवेदनशीलता की अनुपस्थिति है और अपने धन के बल पर चन्द लोगों के मुख से अपनी प्रशंसा करवाने को ही अपना जीवन का उद्देश्य मान बैठा है। दूसरा वो जिसे दो जून की रोजी—रोटी के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है, दोनों की दृष्टी में दिनरात का अन्तर है। भौतिकता की पराकाष्ठा के समय में जिसमें प्रत्येक कार्य व रिश्तों को धन की बुनियाद पर खड़ा किया जाने लगा है और वो सम्पूर्ण मानव जाति के लिये घातक कदम साबित हो रहा हैं सम्प्रति विवाहों में धन का प्रदर्शन किन—किन तरीकों से होने लगा है सब कल्पनातीत है, आज इंसान को अपने धन की बाहुलता को सिद्ध करने का अवसर विवाह ही नजर आता है और वो ऐसा मान बैठा की विवाह से अच्छा कोई अवसर नहीं है जहाँ धनखर्च किया जाए ? जबकि विवाह एक संस्कार है जिसमें मानवीय व सामाजिक मूल्यों की मर्यादा का पालन करते हुए सम्पन्न करना आपेक्षित होता है। इसलिए विवाह को सोलह संस्कारों में स्थान मिला है।
संस्कारों के साथ आध्यात्मिकता की भावना भी पुष्ट होती है। सब सगे सम्बन्धी विवाह में सरीक होते हैं और नवदम्पत्ति को आशीर्वाद स्वरूप दुआ देकर उनके सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए मंगल कामना करते हैं । लेकिन आज सब कुछ इसके विपरीत हो रहा है ना तो परवाह है रीति रिवाजों की ना सामाजिक मूल्यों की बस यदि है तो मीनू के कितने प्रकार के व्यंजन है, पेय पदार्थ कितने हैं, बाहरी साज सज्जा कैसी है यदि इसमें कोई कमी रह जाती है तो सगे सम्बन्धी, मित्रगण अपनी प्रतिकूल टिप्पणी करने में देरी नहीं करते जबकि विवाह सामाजिक समरसता को उर्वर बनाने का माध्यम है। और इन सबकी आलोचना से बचने के लिए इंसान जिसके पास धन की कमी है वो किसी वित्तीय संस्था या साहुकार से कर्ज लेकर उनकी आलोचना से बचने का प्रयास करता है । इस झूठी संस्कृति ने निम्न वर्ग को उच्च वर्ग की नकल करने के लिए, अपना शोषण करवाने को मजबूर कर दिया अब विवाहों में नैसर्गिक खुशियों का स्थान कृत्रिम साधनों के द्वारा अर्जित खुशियों ने ले लिया है। जिसमें मानसिक संतुष्टी के स्थान पर मानसिक अवसाद पनपने लगता है। बन्धुओं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । हम एक दूसरे के जीवन के सेतू बने यही मानवीय धर्म है। यदि हमारे पास धन की प्रचुरता है तो अपना प्रारब्ध समझे और साथ में इसके अविवेकपूर्ण अपव्यय पर लगाम लगाएं, और इसे साधर्मी बन्धुओं के उत्थान के कार्यों में जो आज आर्थिक विपन्नता के शिकार हैं उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़े उनका सहारा बनने का प्रयास करें। विवाहों में अनेक प्रकार के पेय पदार्थ व विविधता पूर्ण भोजन जिसमें अनगिनत खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं जिसे सर्व करने के लिए प्लास्टिक की सामग्री इस्तेमाल की जाती है जिसे पुन: चक्रित नहीं किया जा सकता, पर्यावरण को भारी नुकसान होता है, चकाचौंध पूर्ण वातावरण बनाने के लिए बड़ी—बड़ी हैलोजन जिससे वातावरण में अनायास ही तापमान में वृद्धि हो जाती है जिसे जलाने के लिए जनरेटरों की आवश्यकता है जनरेटर कार्बन का उत्सर्जन करते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। हमें बचना चाहिए वैडिंग पाल्यूशन से और ये किसी एक की जिम्मेदारी नहीं, हम सबकी जिम्मेदारी है, हम विवाह को सोशल इवेंट के रूप में देखते हैं तो इसके कारण जो सामाजिक प्रदुषण या सामाजिक विकृति यदि समाज में पनपती है तो कम करने की जिम्मेदारी हम लोगों की है, हम यदि इस जिम्मेदारी को नहीं उठायेंगे तो कोई कुछ नहीं कहेगा मगर हम सजग होंगे तो समाज के वातावरण को दूषित होने से मुक्त रखने में सफल होंगे। एक बार एनवायरमेंट व सोसल प्रेंडली वैडिंग की शुरुआत समाज में हो गई तो अन्य लोग भी उसका अनुसरण करेंगे । यदि विवाह में खाद्य सामग्री बचे तो उसे किसी एनजीओं या सम्बन्धित संस्था को सम्पर्क कर भिजवायें जिससे वो जरूरतमंद लोगों के काम आ सके । अत: हम सबको इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ कदम बढ़ाने चाहिये जिससे धन का अपव्यय ना हो और अतिरिक्त धन जरूरत मंद लोगों तक पहुंचे । संभव हो तो विवाह व अन्य मंगल कार्य दिन में सम्पन्न करने का प्रयास करें। जिससे लाइट डोकोरेशन व रात्रि भोजन से बचा जा सके। यदि हमारे बन्धु ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से हमारे साधर्मी बन्धु तो ऐसा करेगें ही साथ में अन्य समाज के लोग भी प्रदूषण प्र वैडिंग की ओर आकर्षित होगें । निष्कर्षत: अपेक्षित है कि हमें इस दिशा में अच्छे विचार रखकर व रात्रि व तामसिक भोजन से होने वाली शारीरिक व्याधियों व प्लास्टिक, जनरेटर से उत्पन्न प्रदुषण को मध्ये नजर रखते हुए धन के अपव्यय को रोककर समाज के जरूरतमंद लोगों को समान आधार पर लाने के लिए हाथ बड़ाये……………………
जब भी कुछ रकम हो तो जेवर,कपडा,चांदी की वस्तुएं,बर्तन इत्यादि खरीदकर रख लीजिए।शादी तय होने के समय सब तैयार निकलेगी। शादी का खर्च अपनी सुविधा के अनुसार करें।सबसे महत्वपूर्ण कार्य है मेहमानो की सूची, बदले हुए पतों की खोज करना, फिर न्यौते भेजना जो उचित समय पर पहुंच जाये। एक डायरी बना लीजिये । जसमें :— कतनी रश्में होनी है। हर रश्म का विवरण लिखिये। किस दिन कितने मेहमान आने हैं, उनकी सूची बनायें । भोजन में क्या पकाना है , सामग्री का अन्दाज । परिवार के सदस्य क्या वस्त्र पहनेगे। रश्म में किसको क्या भेंट देनी है। रश्म में किस समय पर कौन सी वस्तु की आवश्यकता होगी।परिवार के हर सदस्य की क्या जिम्मेदारी होगी। बाहर से आने वालों को कौन लेने जाएगा, उनके रहने का इन्तजाम । बाजार के हर सुविधा जनक विभाग के कर्मचारी जैसे—टेन्ट हाउस, हलवाई, फूलवाले, शहनाई, बैण्ड, इत्यादि का टेलीफोन नंबर पता रकम का अंदाजा। उनकी बुकिंग करना। साथ ही रकम भी नक्खी करें डायरी में। वर—वधु को भेंट देने से संबंधित चीजों की विस्तृत सूची बना ले। सब वस्तुओं को पहले ही सजा—संवारकर तैयार कर लें। जो होता जाय, उस पर सही का चिन्ह लगा ले। कहां पर कौन सी वस्तु संभालकर रखी है, यह भी लिखना जरूरी है ताकि ऐन मौके पर ढूंढने से बचें। इतने काम होने के बावजूद हर समय प्रसन्न मन और मुस्कुराता चेहरा लेकर मेहमानों के सामने आना चाहिए। याद रहे खुशी का मौका जो है।
हमारा भारत स्वतन्त्र हो गया लेकिन व्रूर जल्लाद शासकों का डर आज भी क्यों व्याप्त है? अर्थात् रात्रि कालीन शादियाँ तब होती थीं। जब जल्लाद रूपी शासकों का शासन भारत देश पर रहा था । तब उनके शासन काल में जबरजस्ती धर्म परिवर्तन की रीति का चलन चरम सीमा पर व्याप्त था । उस समय धर्म परिवर्तन के डर से लोग रात्रि में छिप—छपकर शादियाँ करते थे। धर्म रक्षार्थ हेतु रात्रि कालीन शादी करके अधर्म का सहारा लेने पर मजबूर थें लेकिन स्वयं के धर्म की रक्षार्थ में स्वयं के प्राण भी चले जाऐं तब भी धर्म ही है। लेकिन आज धर्मरक्षार्थ क्या हो रहा है? उपरोक्त विषय में कर्मकाण्डी पंडितों का षडयंत्र पूर्ण रूप से कामयाब होकर चाँदनी रात में पडितों की चाँदी चाँदी चमक रही है। मैं समाज से कहना चाहती हूँ कि ऐसे पडितों को चाँदनी रात में चाँदी के चम्मच से ठूँस—ठूँस कर भोजन कराऐं और चटनी चटाऐं जो रात्रि भोजन त्याग का ढोंग करते हों व दूसरों को त्याग का उपदेश देते हैं। चन्द्रमा की चाँदनी रात्रि में अष्टद्रव्य से पूजन मंत्रों सहित करना/ करवाना कहाँ तक उचित है और रात्रि कालीन संकल्प पूर्ण वर—वधू को सप्तवचन से बाद्ध कराना कहाँ तक उचित व अनुचित है?, अगर उपरोक्त तथ्य उचित है तो रात्रि में शमशान में मुर्दों को क्यों नहीं जलवाते पंडित लोग ? वहाँ शमशान में क्या भूतों—प्रेतों का डर पंडितों के षड़यंत्र में पूर्ण आहूति देता है । मुझे पू.पू० १०८ श्री महावीर कीर्ति जी महाराज के लेख में से पंक्तियाँ याद आती है।
वास्तविकता में मरघट तो वह होता जहाँ नर—मर होता है अर्थात मरण होता है और वह स्थान अधिकांश घर होता है। शमशाम तो शमशान है जहां पर राजा से लेकर रंक की शान सम हो जाती है अर्थात बराबर हो जाती है। किसी की अन्तिम संस्कार क्रिया में अन्तर नहीं पाया जाता है। मैं कर्मकांण्डी पंडितों से निवेदन करती हूँ कि आप धार्मिक हैं, विद्वान हैं इसलिए पंडित नाम की उपाधि आपको प्राप्त है और अगर धर्म प्रभावना हेतु दुनियाँ के सारे पंडितों ने धन का मोह त्याग कर उपरोक्त अनुचित कार्य न करने हेतु कमर कस ली तो असम्भव कार्य को सम्भव किया जा सकता हैं और स्वयं को पंडित्व के गर्व के साथ रखा जा सकता है। अर्थात ‘पंडितों ने किया परिवर्तन’ नामक शीर्षक सदियों के लिए बन सकता है। कहने का तात्पर्य चाहे घर हो या मरघट हो लेकिन कार्य निडर हो जब शमशान की शुभता हेतु कार्य अधिकांश दिन में होते हैं तो घर की शुभता हेतु भी समस्त शुभ कार्य दिन में करने के लिए निवेदन करती हूँ।
१. विवाह समारोह और इससे सम्बन्धित कार्यक्रम दिन में आयोजित होने चाहिए।
२. विवाह समारोह से सम्बन्धित सार्वजनिक कार्यक्रम अधिकतम दो होने चाहिए।
३. समारोह में धन प्रदर्शन और अनावश्यक तड़क—भड़क नहीं होनी चाहिए। ४. सगाई इत्यादि समारोह में (बहू—बेटी इत्यादि निकट के रिश्तेदारों को छोडकर) मिलाई/ मिलनी के नाम पर नकद राशि/उपहार का वितरण नहीं होना चाहिए।
५. समारोह में आतिशबाजी का प्रयोग पूर्ण रूप से निषेध होना चाहिए।
६. विवाह समारोह में सड़क पर नाच नहीं होना चाहिए एवं विवाह जुलूस में सड़क यातायात में न्यूनतम व्यवधान हो, ऐसा ध्यान रखा जायें।
७. समारोह में आमंत्रित मेहमानों एवं परोसे जाने वाली खाद्य वस्तुओं की संख्या सीमित होनी चाहिए।
८. समारोह में किसी खाद्य वस्तु को जीव—जंतु की आकृति प्रदान न की जाए।
९. समारोह में भोजन एवं पानी का अपव्यय नहीं होना चाहिए और झूठा नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
१०. इस मंगल प्रसंग पर समाज के कमजोर वर्ग की शिक्षा/ चिकित्सा/लड़की के विवाह इत्यादि एवं जीव दया में सहायता के लिए यथाशक्ति आर्थिक सहयोग दिया जाना चाहिए।