स्वस्थ सुन्दर एवं सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए संतुलित जीवन शैली का होना अति आवश्यक है। युवावस्था से ही अपनी जीवन शैली को सही रूप देना चाहिए ताकि वृद्धावस्था तक पहुंचते—पहुंचते कई परेशानियों से हम स्वयं को दूर रख सके। युवावस्था में तो हम कई उतार चढ़ाव सहन कर सकते हैं पर वृद्धावस्था में स्वयं को उतार चढ़ाव में संभाल पाना मुश्किल होता है। वृद्धावस्था में होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से भी संतुलित जीवनशैली द्वारा कुछ हद तक बचा जा सकता है। वृद्धावस्था में ग्रीष्मकाल में अधिक व्यायाम न करें । धूप में अधिक समय तक बाहर न रहें। गर्म चटपटे और तीखे मसाले वाले भोजन का सेवन न करें। ग्रीष्मकाल में ताजे फलों का रस व दही की लस्सी दिन में लें। भोजन हल्का खायें। वर्षा काल में शरीर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। साफ जल का सेवन करना चाहिए। बाजारी भोजन का सेवन न करें । संभव हो तो जल उबालकर पिएं। शरद ऋतु में तेल की मालिश करनी चाहिए और धूप ग्रहण करनी चाहिए । अधिक ठंड के समय बाहर निकलते समय गर्म कपड़ों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सिर, पैर व शरीर पूरी तरह ढक कर रखें। इस ऋतु में पुष्टि देने वाले भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। लंबी सैर और हल्के व्यायाम इस ऋतु में श्रेयस्कर होते हैं।
दिनचर्या
१. वृद्धावस्था में प्रात: काल जल्दी उठ कर अपने नित्यकर्म से निपटकर टहलने के लिए पास के पार्क में चले जायें। यदि संभव हो तो कुछ आसान आसन करें ।
२. रात्रि में जल्दी सो जाना चाहिए।
३. रात्रि का भोजन सोने से ३—४ घंटे पूर्व खा लेना चाहिए ” भोजन हमेशा नियत समय पर ही करें। भोजन हल्का एवं संतुलित लें। भोजन से पूर्व सलाद और भोजन के साथ दाल—सब्जी और दही का सेवन करें। सलाद यदि खाने में मुश्किल हो तो उसे कददूकस कर खाएं या चावल, दलीए में डालकर खाएं।
४. अपने शरीर की यथासंभव तेल से हल्के हाथों की सहायता से मालिश करें। उसके पश्चात ऋतु अनुसार पानी से स्नान करें।
५. सिर एवं पैरों के तलवों पर भी तेल की मालिश करें।
खान—पान
वैसे तो इस अवस्था में सेहत संबंधी समस्याएं पहले किए गए आहार विहार के कारण आती हैं पर इस काल में भोजन पर विशेष ध्यान देना ही उचित रहता है।
१.कम वसायुक्त भोजन का सेवन करें।
२. भोजन ताजा खाना चाहिए। बासी भोजन इस आयु में पचा पाना मुश्किल होता है।
३.वृद्धावस्था में शाकाहारी भोजन मांसाहारी भोजन से अधिक लाभप्रद होता है।
४. भोजन में पहले एवं तुरन्त बाद अधिक पानी नहीं पीना चाहिए।
५.भोजन हल्का ही लें और निर्धारित समय पर भोजन लें।
६. भोजन से हरी सब्जियों और मौसमी फलों को महत्वपूर्ण स्थान दें।
७.ठोस भोजन का सेवन कम से कम करें। तरल और अद्र्धतरल भोजन अधिक लें।
८. दोपहर में भोजन के बाद छाछ का प्रयोग करें।
९.चाय कॉफी का सेवन कम से कम करें।
१०.शाम की चाय ५ से ५:३० बजे तक पी लें।
११. क्रीमरहित दूध अवश्य लें और उसी दूध के दही का सेवन करें।
१२.वृद्धावस्था में अकेलापन सबसे अधिक सताता है। प्रयास करें कि स्वयं को किसी न किसी सामाजिक कार्य में व्यस्त रखें और घर परिवार के छोटे — छोटे कामों में मदद करें ताकि परिवार के सदस्यों को बुढ़ापा बोझ न लग कर सहारा लगे।
१३.वृद्धावस्था में समय—समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच करवाते रहें और डॉक्टरी परामर्श के अनुसार दवा आदि का सेवन करें। तबीयत खराब होने पर लापरवाही न बरतें समय होते डॉक्टर से सलाह लें। वृद्धावस्था प्रकृति की अनुपम देन है। उसे भयावह अवस्था न समझें। आप भी वृद्धावस्था को खुशहाल , आरामदायक एवं सम्मानजनक बना सकते हैं, अपनी जीवन शैली और आहार – विहार को बदल कर।