इति इह आसीत् (यहाँ ऐसा हुआ ) ऐसी अनेक कथाओं का निरूपण होेने से ऋषिगण महापुराणादि को ‘इतिहास’ इतिवृत्त’ ‘ऐतिह्म’ भी कहते है । किसी भी जाति या संस्कृति का विशेष परिचय पाने के लिए तत्सम्बन्धी साहित्य ही एकमात्र आधार है और उसकी प्रामाणिाकता उसके रचयिता व प्राचीनता पर निर्भर है अत: जैन संस्कृति का परिचय पाने के लिए हमेंं जैन साहित्य व उनके रचयिताओं के काल आदि का अनुशीलन करना चाहिए परन्तु यह कार्य आसान नहीं है क्योंकि ख्याति लाभ की भावनाओं से अतीत वीतरागीजन प्राय: अपने नाम, गांव व काल का परिचय नहीं दिया करते फिर भी उनकी कथन शैली से अथवा अन्यत्र पाये जाने वाले उन सम्बन्धी उल्लेखों से अथवा उनकी रचनाओेंं में ग्रहण किये गये अन्य शास्त्रोें के उउद्धारणोें से अथवा उनके द्वारा गुरूजनों के स्मरण रूप अभिप्राय से लिखी गई प्रशस्तियोें से अथवा आगम मेंं ही उपलब्ध दो चार पट् टावलियों से, अथवा भूगर्भ से प्राप्त किन्हीं शिलालेखों था आयागपट्टों में उल्लिखित उनके नामों से इस विषय सम्बन्धी कुछ अनुमान होता है । इन्हीं सब को एकत्र कर रचा गया कथावृत्त इतिहास बन जाता है ।