मैं पिछले कई वर्षों से पूज्य ज्ञानमती माताजी के कार्यकलापों को देख रहा हूँ कि कितनी कर्मठता, कितनी निःस्पृहता और कितनी लगन से वे प्रत्येक कार्यों को मूर्तरूप प्रदान करती हैं। उनका प्रमुख लक्ष्य प्रारंभ से यही रहा है कि तीर्थंकरों की जन्मभूमियों का विकास अवश्य हो। इसी शृंखला में सर्वप्रथम उन्होंने भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ इन तीन तीर्थंकरों की जन्मभूमि हस्तिनापुर तीर्थ पर जम्बूद्वीप की रचना का निर्माण कराकर उसे भारत की ही नहीं अपितु समस्त विश्व की जनता के सम्मुख लाकर स्थापित कर दिया पुन: उन्होंने भगवान ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, अनंतनाथ ऐसे ५ तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या में जाकर वहाँ तीन चौबीसी मंदिर एवं समवसरण मंदिर के निर्माण कराकर उसे ‘‘ऋषभ जन्मभूमि’’ के नाम से विश्व के क्षितिज पर पहुँचा दिया। इसी प्रकार क्रम-क्रम से जन्मभूमि विकास की प्रेरणा प्रदान करती हुईं तथा ‘‘तीरथ विकास क्रम जारी है, अब कुण्डलपुर की बारी है’’ का नारा देती हुईं भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर के विकास की घोषणा कर दी। देखते ही देखते इस युग की अंतिम जन्मभूमि के रूप में कुण्डलपुर का विकास ‘‘नंद्यावर्त महल’’ के नाम से सम्पन्न हो गया। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे भी पूज्य माताजी की प्रेरणा से कुण्डलपुर प्राचीन मंदिर परिसर में भगवान महावीर स्वामी कीर्तिस्तंभ बनाने का पुण्यलाभ प्राप्त हुआ है, यह कीर्तिस्तंभ भगवान महावीर जन्मभूमि की कीर्तिपताका को दशों दिशाओं में फहराता रहे, यही मंगलकामना है तथा भगवान महावीर के जन्म से पावन कुण्डलपुर नगरी के कण-कण को नमन करते हुए मैं वीर प्रभू से यही प्रार्थना करता हूँ कि तीर्थंकर जन्मभूमि विकास की प्रेरणास्रोत पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी स्वस्थ एवं चिरायु होकर हमें इसी प्रकार मार्गदर्शन प्रदान करती रहें ताकि हम अपने मानवजीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सके।