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कुण्डलपुर की धरा धूल तू!
June 17, 2020
भजन
jambudweep
कुण्डलपुर की धरा धूल तू
जिस माटी में खेला बचपन, स्याद्वाद अपरिग्रह का।
जिसकी करुणा ने तोड़ा भ्रम, हिंसा यज्ञ दुराग्रह का।।
मिला जहाँ से अखिल विश्व को, सत्य अहिंसा का आधार।
मानवता को मिला जहाँ से, जीवन मूल्यों का उपहार।।
आत्म ज्ञान की ज्योति जगी थी, जिस माँटी की रजकण से।
जिसका कण-कण तक पावन है, महावीर की पद रज से।।
कुण्डलपुर की धरा धूल तू, पावन पूजित चन्दन है।
जग कल्याणी नमन तुम्हारा, वन्दन है अभिवंदन है।।
तूने देखा है हिंसा पर, यहाँ अिंहसा का जयघोष।
करुणा के चरणों में देखा, नत मस्तक होते आक्रोश।।
जियो और जीने दो वाला, पावन मंत्र मिला तुझसे।
दीन, दलित, पीड़ित, साँसों को, दया, दुलार मिला तुझसे।।
अनेकान्त की परिभाषा ने, पाया तुझसे ही सम्मान।
तेरी ही माटी में टूटा, विधि शक्ता का नियम विधान।।
आत्म ज्ञान का दर्पण तूने, भौतिकता को दिखलाया।
देकर समता का पथ जग को, जीवन जीना सिखलाया।।
आज मनुज फिर भेज रहा है, चिर विनाश को आमंत्रण।
काँप रहा है मन करुणा का, देख कुटिलता का नर्तन।।
व्याकुल होकर देख रही है, मानवता फिर तेरी ओर।
हिंसा की इस काल निशा को, कब दोगे तुम नूतन भोर।।
एक बार फिर कुण्डलपुर तुम, करो अहिंसा का श्रृंगार।
लौटाओ तुम इस दुनियाँ को, फिर त्रिशला का राजकुमार।।
दो फिर से तुम अभय शांति को, और सत्य को दो भाषा।
करो पल्लवित मानवता को, मिटा आसुरी अभिलाषा।।
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