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जय जय महावीर!
June 17, 2020
भजन
jambudweep
जय जय महावीर
(१) वह कौन ? कि जिसने हिंसा को, दे दिया धर्म से निर्वासन।
किसने दिया अहिंसा देवी को, ऊँचा पावन आसन।।
सुन पशुओं की चीत्कार, बन गया कौन उनका रक्षक।
कौन बिलखती मानवता का, हुआ प्रमाणित संरक्षक।।
किसने सशस्त्र, हिंसक जग को, होकर निशस्त्र भी जीत लिया।
किसने औरों को बांट सुधा, खुद ने हालाहल जहर पिया।।
किसने सद्धर्म तरणि बैठा, जग को पहुँचाया जगत् तीर।
हे वर्धमान् ! अतिवीर! वीर!, हे सन्मति! जय जय महावीर।।
(२) जो कुण्डलपुर में था जन्मा, पर था त्रैलोक्य हुआ हर्षित।
होकर त्रिशला का नंदन भी, जिस पर हर माता थी गर्वित।।
होकर सिद्धार्थ दुलारा जो, हर उर-पुर का वासी था।
रह कर प्रासादों में भी जो, रहा सदा सन्यासी था।।
जो था बचपन में ज्ञानवृद्ध, यौवन में विषयों से विरक्त।
कोई भी राजकुमारी तो, कर सकी न उसका मनासक्त।।
जो आया था इस भूतल पर, हरने दुखियों की दुखद पीर।
हे वर्धमान! अतिवीर! वीर! हे सन्मति! जय जय महावीर।।
(३) थी जिसकी काली केश राशि, ज्यों सावन के घन छाये हों।
भौंहों में था वह बांकापन, मानों धनु-बाण सजाये हों।।
दैदीप्यमान उन्नत ललाट, था नेत्रों में कारुण्य भरा।
जिसके अरुण चरण पद्मों से, परमधन्य हो गई धरा।।
मुखमंडल पर परमतेज से, हतप्रभ हुआ दिवाकर था।
जिसके अमृतमय वचनों से, लज्जित हुआ सुधाकर था।।
पावनता नित्य सुतप करती, आ बैठी जिसके चरण तीर।
हे वर्धमान! अतिवीर! वीर!, हे सन्मति! जय जय महावीर।।
(४) भर यौवन में राजपाट तज, किसने कानन घर माना।
द्वादशतप द्वादश वर्षों तक, तपकर आतम को जाना।।
पाकर केवल ज्ञान जगत को, हितकारी उपदेश दिया।
निष्कारण बन्धुत्व था जिसमें, राग-द्वेष का लेश न था।।
कहा कि ‘‘जो व्यवहार आपको, लगता आतम के प्रतिकूल।
उसे और के संग अपनाने की, तुम प्रियवर! करो न भूल।।
साम्यभाव नित मन में लाओ, चाहे सुख हो अथवा पीर।
हे वर्धमान! अतिवीर! वीर!, हे सन्मति! जय जय महावीर।।
(५) घृणा पाप से सुकरणीय है, पापी का करना उद्धार।
तिल-तिल पंथ गढ़ो जीवन का, कभी न जाना हिम्मत हार।।
वैर-विरोध-क्रोध-मद-मत्सर, ये हैं जीवन पथ के शूल।
इन्हें त्याग कर प्रेम अहिंसा के, बरसाओ सुरभित फूल।।
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चरित्र, ये जीवन की त्रिवेणी हैं।
भवसागर के सेतु यही हैं, मोक्ष महल की श्रेणी हैं।
है असह्य सुई चुभन तुम्हें, तो क्यों औरों को दो शमशीर।।’’
हे वर्धमान! अतिवीर! वीर! हे सन्मति! जय जय महावीर।।
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