दिगम्बर जैन महासमिति के महामंत्री एवं परिणयप्रतीक पत्रिका के प्रधान संपादक श्री माणिकचंद जैन पाटनी, दिगम्बर जैन महासमिति पत्रिका एवं अर्हत्वचन के प्रधान सम्पादक डॉ. अनुपम जैन, सन्मतिवाणी के सम्पादक पं. जयसेन जैन एवं वीरनिकलंक के युवा संपादक श्री रमेश जैन कासलीवाल का एक शिष्टमंडल भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर पर उत्पन्न विवाद पर आचार्यश्री विद्यासागर जी से मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु दिनाँक ७ मई २००२ को नेमावर पहुँचा। मध्यान्ह १.४५ पर सामायिक के उपरांत शिष्टमंडल के सदस्यों ने आचार्यश्री एवं समीप में विराजमान मुनिश्री योगसागर जी के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री माणिकचंद जैन पाटनी ने आचार्यश्री से निवेदन किया कि भगवान महावीर के जीवन को आधुनिक इतिहासकारों के द्वारा जिस प्रकार से विकृत किया जा रहा है, वह अत्यन्त चिन्तनीय स्थिति बन गई है। सन् १९७४ में डॉ. हीरालाल जैन एवं डॉ. ए.एन. उपाध्ये ने अपनी पुस्तक ‘‘महावीर युग और जीवनदर्शन’’ में अनेक तर्कों से वैशाली के उपनगर जिला मुजफ्फरनगर तथा उससे दो किमी. दूर स्थित वासुकुण्ड को जन्मभूमि बताने का प्रयास किया है। उन्होंने लिखा है कि विगत एक शताब्दी में पुरातत्वसंंबंधी खोज हुई उसमें प्राचीन भग्नावशेषों, मुद्राओं व शिलालेखों के आधार पर यह प्रमाणित हो गया है कि वासुकुण्ड ही कुण्डलपुर होना चाहिए जबकि भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर के संबंध में प्राचीन ग्रंथ तिलोयपण्णत्ति, धवला, जयधवला, उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण, वीरजिणिंदचरिउ, महावीरपुराण, वर्धमानचरित आदि अनेकों ग्रंथों में नालंदा के निकट कुण्डलपुर को ही जन्मस्थली बताया गया है। वहाँ के गाइड भी इसे ही भगवान की जन्मस्थली बताते आ रहे हैं। हम नित्य प्रतिदिन प्रात: से रात्रि तक पूजन, सामायिक, आरती, भजनों के माध्यम से कुण्डलपुर को जन्मस्थली कहते नहीं थकते हैं। वस्तुत: परम्परागतरूप से सदियों से जन-जन की आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र कुण्डलपुर ही है। वहाँ प्राचीन मंदिर भी है। कुछ वर्ष पूर्व वहाँ खुदाई में १३ दिगम्बर मूर्तियाँ मिली थीं जो सम्प्रति नालंदा के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इस संदर्भ में अ.भा.दि. जैन शास्त्री परिषद के अध्यक्ष एवं जैनगजट के संपादक प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जी जैन एवं तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष पं. शिवचरनलाल जी जैन मैनपुरी के द्वारा कुण्डलपुर को ही जन्मस्थली बताने वाले प्रामाणिक एवं तर्कपूर्ण लेखों से संबंधित एक पुस्तिका आचार्यश्री को डॉ. अनुपम जैन ने भेंट की। जिसे आचार्यश्री ने गंभीरतापूर्वक मनन किया। लेखों में दिए गए प्रमाणों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आचार्यश्री ने कहा-‘‘हमें अपने तीर्थंकरों के जीवन के बारे में अपने प्राचीन ग्रंथों, आगमों के आधार पर ही निर्णय करना चाहिए। आचार्यवीरसेन स्वामी द्वारा धवला एवं जयधवला में कुण्डलपुर के बारे में लिखे गए वचन अकाट्य हैं।’’ आचार्यश्री द्वारा वैशाली को जन्मभूमि बताने वाले साहित्य की जानकारी मांगने पर डॉ. अनुपम जैन ने बताया कि डॉ. राजाराम जैन, निदेशक-कुन्दकुन्दभारती ने २ वर्ष पूर्व कुछ प्रमाणों को संकलित कर मुझे दिया था। इन दिनों वैशाली के प्राकृत एवं अहिंसा शोध संस्थान में कार्यरत डॉ. ऋषभचंद जैन ‘‘फौजदार’’ ने तमाम पुराने संदर्भों को फिर से इकट्ठा कर एक नया लेख बनाया है। मैं आपकी सेवा में उसकी प्रतियाँ अवलोकनार्थ भिजवा दूँगा। ४५ वर्ष पूर्व वैशाली की चर्चा शुरू होने पर भी विद्वानों द्वारा जन्मभूमि विवाद पर उपेक्षावृत्ति का ही यह परिणाम है कि जन्मभूमि अनिर्णीत रह गई। उन्होंने डॉ. अनुपम जैन को आदेश दिया कि महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर के बारे में दिगम्बर जैन आगमों एवं प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध समस्त संदर्भों एवं आधुनिक विद्वानों द्वारा गत एक शताब्दी में लिखित लेखों को संकलित कर कुण्डलपुर पर एक सर्वांगपूर्ण पुस्तक का सृजन करें जिससे वैशाली के पक्ष में दिए जा रहे तर्कों का युक्तिपूर्ण ढंग से निरसन हो सके। अब इस विवाद को यथाशीघ्र निर्णीत कर देना चाहिए। एक स्थानीय पुराविद द्वारा प्राप्त पुरातात्विक सामग्री के आधार पर महावीर जन्मभूमि के कुण्डग्राम वैशाली में होने के अनुमान को व्यक्त करने पर वैशाली क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी द्वारा वैशाली के जन्मभूमि होने की मान्यता का समर्थन एवं उस क्षेत्र के विकास की भावना से समाज के तत्कालीन प्रभावी नेता आदरणीय साहू शांतिप्रसाद जी जैन के समर्थन देने से समाज के विद्वत्वर्ग में तो यह कुछ स्थान पा सकी, किन्तु जनता जनार्दन की आस्था नहीं पा सकी। साहू परिवार के प्रयास से शासन द्वारा स्थापित वैशाली अहिंसा प्राकृत एवं जैन शोध संस्थान की स्थापना, डॉ. हीरालाल जैन की इस संस्थान में नियुक्ति आदि से वैशाली का महत्व बढ़ा है। यह सब जानकारी दिये जाने पर एवं यह सूचना देने पर कि शासन द्वारा वैशाली के विकास एवं २५००वें निर्वाण महोत्सव के अधूरे कामों को पूरा करने हेतु १.५ करोड़ स्वीकृत किए जाने की सूचना पर आचार्यश्री ने कहा कि आप शासन से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा ही क्यों करते हो? आपका समाज सक्षम है और वह कोई भी योजना पूरी कर सकता है। आपको शासन से कोई मांग नहीं करना चाहिए। साथ ही अगर शासन स्मारक बनवा रहा है तो आपको उसकी चर्चा करने की क्या आवश्यकता है? आप अपना कार्य करते रहिए। आपके आगम में जो जन्मभूमि है आप उसका विकास करें। प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी जैन के लेख में वैशालिक शब्द की व्याख्या से आचार्यश्री ने सहमति व्यक्त की एवं कहा कि ‘‘वैशालिक’’का अर्थ ‘‘वैशाली में जन्मे’’ इस प्रकार लेना उचित नहीं है। श्री रमेश जैन कासलीवाल ने भगवान के गर्भकल्याणक की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान गर्भ में आए तब इन्द्रों ने ९ मास तक रत्नों की वर्षा की तो यह वैâसे संभव हो सकता है कि रत्नों की वर्षा मामा के यहाँ हो? श्री पाटनी ने कहा कि शोधकर्ता अगर वासुकुण्ड को कुण्डलपुर कहते हैं तो क्या केवल २ किमी. की दूरी में दो राजाओं-राजा सिद्धार्थ व राजा चेटक का राज्य संभव है। यह केवल कल्पनामात्र ही कहा जा सकता है और केवल नालंदा जिले का कुण्डलपुर ही भगवान महावीर की जन्मस्थली होना चाहिए। पं. जयसेन जैन ने कहा कि इंदौर में २४-२५ फरवरी को हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में लगभग १४-१५ विद्वानों, जिसमें डॉ. शेखरचंद जैन-अहमदाबाद, डॉ. पदमचंद जैन-पानीपत, डॉ. अभयप्रकाश जैन-ग्वालियर, पं. शिखरचंद जैन एवं पं. शीतलचंद जैन-सागर आदि ने प्रबल तर्कों एवं प्रमाणों आदि के आधार पर कुण्डलपुर-नालंदा को ही जन्मभूमि तय किया था। फिर भी अनावश्यक विवाद पैदाकर समाज में भ्रम पैदा किया जा रहा है। इस पर पुन: आचार्यश्री ने कुण्डलपुर के समर्थन में अनेकों विद्वानों, मनीषियों से प्राप्त लेखों को संकलित कर एक पुस्तिका प्रकाशन हेतु आशीर्वाद दिया ताकि जन-जन में वास्तविक स्थिति का प्रचार हो सके। आचार्यश्री ने अंत में कहा कि दिगम्बर जैनागम में उल्लिखित तथ्यों को ही मान्य किया जाना चाहिए। ==
श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र सिद्धोदय-नेमावर में विराजित परमपूज्य संतशिरोमणि आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ के दर्शनार्थ इंदौर से कुछ जैन पत्रकारों का दल नेमावर पहुँचा। दिगम्बर जैन महासमिति के राष्ट्रीय महामंत्री श्री माणिकचंद पाटनी प्रधान सम्पादक-परिणय प्रतीक मासिक, इंदौर के नेतृत्व में डॉ. अनुपम जैन सम्पादक-अर्हत् वचन त्रैमासिक, इंदौर, पं. जयसेन जैन सम्पादक-सन्मतिवाणी मासिक, इंदौर तथा श्री रमेश कासलीवाल सम्पादक-वीर निकलंक मासिक, इंदौर आदि दल के प्रमुख सदस्य थे। आहारचर्या एवं सामायिक के पश्चात् पूज्य आचार्यश्री के दर्शन हुए। आचार्यश्री अपने कक्ष में पूर्णरूपेण स्वस्थ एवं प्रसन्नमुद्रा में विराजित थे। समस्त पत्रकारों ने विनयपूर्वक आचार्यश्री को नमोस्तु किया और प्रसन्नतापूर्वक उनका आशीष प्राप्तकर धन्य हुए। प्राथमिक औपचारिक चर्चा के उपरान्त श्री माणिकचंद पाटनी ने आचार्यश्री से निवेदन किया-‘‘पूज्य गुरुदेव! भगवान महावीर का २६००वाँ जन्मजयंती महोत्सव वर्ष संपन्न हो गया किन्तु एक प्रश्न अनुत्तरित रहा, भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर या वैशाली? जबकि आमधारणा यही है कि जन्मस्थली कुण्डलपुर (नालंदा-बिहार) ही है।’’ आचार्यश्री ने अपनी चिरपरिचित मधुर मुस्कान बिखेरते हुए प्रतिप्रश्न किया यह मामला अभी तक अनिर्णीत क्यों रहा? भगवान महावीर का जन्म कहाँ हुआ? यह भी एक विवादास्पद विषय है। पूज्य गुरुदेव ने कहा कि अभी तक दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों वर्गों ने सर्वसम्मति से किसी एक स्थान को जन्मस्थली स्वीकार नहीं किया है। आचार्यश्री ने कहा-ऐसा प्रतीत होता है कि शासन से अनुदान अथवा सहयोग राशि प्राप्त करने हेतु ही वैशाली को जन्मस्थली प्रचारित किया जा रहा है। यह भी सत्य है कि लगभग ४५ वर्ष पूर्व देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने भगवान महावीर की जन्मस्थली वैशाली घोषित की थी। आचार्यश्री ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि शासन से अनुदान लेकर जैनसमाज कोई धार्मिक निर्माण करे, यह उचित नहीं। यह जैनसमाज के स्वाभिमान के विपरीत है। श्वेताम्बर समाज की मान्यता भिन्न हो सकती है। शासन द्वारा स्वीकृत १०० करोड़ रुपये का उपयोग गौशाला, पशुरक्षा अथवा चिकित्सालय की सहायतार्थ करना उचित हो सकता है। तत्कालीन केन्द्रीयमंत्री श्रीमती मेनकागांधी ने भी इस संबंध में जो कुछ कहा था वह अपेक्षाकृत उचित है। हमने भी उक्त सेवाकार्यों हेतु केन्द्रीय शासन से अनुदान की मांग की है। डॉ. अनुपम जैन ने पूज्य आचार्यश्री को जानकारी दी कि विगत दिवस इंदौर में दिगम्बर जैन महिला संगठन द्वारा आयोजित ‘‘भगवान महावीर : जीवन एवं दर्शन’’ राष्ट्रीय संगोष्ठी २४-२५ फरवरी २००२ में देश के शीर्षस्थ विद्वानों द्वारा भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर को ही बताया गया था। उन्होंने आचार्यश्री को देश के जाने माने विद्वद्द्वय शास्त्री परिषद के अध्यक्ष प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन-फिरोजाबाद तथा विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष पं. श्री शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी द्वारा लिखित लेखों की एक पुस्तिका भी भेंट की। पुस्तिका में अनेकों शास्त्रोक्त संदर्भों सहित कुण्डलपुर (नालंदा) को ही जन्मस्थली सिद्ध किया गया है। आचार्यश्री ने पुस्तिका का गंभीरतापूर्वक आद्योपान्त अध्ययन किया है। पुस्तिका के अध्ययन के मध्य आचार्यश्री की भावभंगिमा से यह स्पष्ट संकेत मिला कि वे उन तर्कों से सहमत हैं। आचार्यश्री ने जिज्ञासा प्रकट की कि भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में दिल्ली में ५०० एकड़ की भूमि शासन द्वारा दी गई थी और संभवत: उसका नाम भी वैशाली ही रखा गया था, उसका क्या हुआ? डॉ.अनुपम जैन ने बताया कि वह स्थान महावीर वनस्थली है तथा २६ वर्ष पश्चात् भी उसका एकमात्र हिस्सा ही विकसित हो पाया है। आचार्यश्री ने सहजभाव से कहा कि किसी स्थान पर मूर्ति आदि पुरातात्विक वस्तु प्राप्त हो जाने पर उसे किसी बात को पक्का सबूत मान लेना ठीक नहीं है। कुण्डग्राम कहाँ है? यह बात भी बिना किसी ठोस आधार के कहना मुश्किल है। भगवान महावीर की जन्मस्थली का सर्वमान्य निर्धारण प्रत्यक्षप्रमाण व आगम के आधार पर ही करना उचित होगा। पुस्तिका का अध्ययन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि वीरसेन स्वामीकृत धवला एवं जयधवला का साक्ष्य बहुत अच्छा व अकाट्य है। आचार्यश्री ने सहज जिज्ञासा प्रकट की कि वैशाली व कुण्डलपुर-नालंदा में कितना अंतर है? तथा वैशाली के पक्षधर लोग क्या ठोस प्रमाण देते हैं? ५० वर्ष पूर्व वैशाली के बारे में क्यों नहीं सोचा गया? आदि जिज्ञासाओं का समाधान डॉ. जैन ने किया। आचार्यश्री की मुखमुद्रा यह दर्शा रही थी कि वे उनसे सहमत हैं। आचार्यश्री ने विशाल, विशाला एवं वैशालिक शब्दों का अर्थ वैशाली से न लेते हुए विशालता वृहद्-व्यापक से लेने की बात कही। पूज्य गुरुदेव ने स्पष्टत: स्वीकार किया कि वैशाली की अपेक्षा कुण्डलपुर के बारे में हमारे पास अधिक व ठोस प्रमाण हैं। तीर्थंकरों की जन्मभूमि का निर्णय दिगम्बर आगमों के आधार पर ही होना चाहिए। आचार्यश्री ने यह भी पीड़ा व्यक्त की कि देश के प्रथम राष्ट्रपति स्व. डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी द्वारा वैशाली में किए गए शिलान्यास के पश्चात् हम आज तक यह निर्णय नहीं कर पाए कि स्मारक कहाँ और कैसा बने? उन्होने कहा कि स्मारक हेतु जन्मस्थली का पूर्णत: सही स्थान खोज पाना सरल कार्य नहीं है। यह योजनों विस्तार वाली होती थी। पूज्य गुरुदेव ने यह भी कहा कि शासन बौद्ध धर्म को इसलिए अधिक महत्व देता है कि वह विदेशों में फैल गया, जबकि जैनधर्म के अनुयायी भारत में ही अधिक हैं। वैशाली में शोध संस्थान बनाने के पीछे भी शायद यही कारण हो। आपने डॉ. अनुपम जैन को यह परामर्श दिया कि भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर के बारे में आगम के प्रमाणों, अन्य संदर्भों सहित इस शताब्दी के लेखकों द्वारा लिखित आलेखों को संकलित कर एक सर्वांगपूर्ण पुस्तक का सृजन करें, जिससे वैशाली के पक्ष में दिए जाने वाले तर्कों का निरसन किया जा सके। डॉ. अनुपम जैन एवं माणिकचंद पाटनी ने उक्त आज्ञा को शिरोधार्य किया।
गत ७ मई को इंदौर के ४ प्रख्यात पत्रकारों का एक दल परमपूज्य संतशिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से मार्गदर्शन लेने नेमावर पहुँचा। इस दल में परिणयप्रतीक के प्रधानसम्पादक एवं दिगम्बर जैन महासमिति के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमाणिकचंद पाटनी, अर्हत् वचन के सम्पादक एवं दिगम्बर जैन महासमिति पत्रिका के प्रधान सम्पादक डॉ. अनुपम जैन, सन्मतिवाणी के सम्पादक पं. जयसेन जैन एवं वीर निकलंक के सम्पादक श्री रमेश कासलीवाल सम्मिलित थे। महिला संगठन, छावनी इकाई की श्रीमती कुसुम जैन तथा सुदामानगर इकाई की श्रीमती निशा जैन भी इस दल के साथ थीं। मैं स्वयं बाल संस्कार शिविर में व्यस्त होने के कारण साथ न जा सकी, किन्तु बाद में इन चारों वरिष्ठ पत्रकारों एवं दल में सम्मिलित बहनों से चर्चा कर सुखद अनुभूति हुई। अ.भा.दि. जैन महिला संगठन की २४ फरवरी को सम्पन्न कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुरूप ही पूज्य आचार्यश्री की भी राय थी। बहनों ने हमें बताया कि आचार्यश्री की स्पष्ट राय थी कि ‘‘हमारे तीर्थंकरों के जीवन के बारे में निर्णय दिगम्बर जैन आगमों के आधार पर होना चाहिए। हमारे पास विशाल ग्रंथ सम्पदा है। यदि हम श्वेताम्बर या बौद्ध संदर्भों के आधार पर जन्मभूमि या निर्वाणभूमि तय करने लगे तो फिर हमारा कुछ नहीं रहेगा। अनेक ऐसी बातें हमें माननी होंगी, जो हमें न कभी स्वीकार्य रही हैं और न रहेंगी।’’ डॉ. अनुपम जैन ने पूज्य आचार्यश्री को तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा प्रकाशित ‘‘भगवान महावीर : जन्मभूमि प्रकरण मनीषियों की दृष्टि में’’ पुस्तिका भेंट की, जिसमें विख्यात जैन विद्वान् एवं शास्त्री परिषद के अध्यक्ष प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन एवं तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष पं. शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी के लेख हैं। पूज्य आचार्यश्री ने दोनों आलेखों का गंभीरतापूर्वक मनन किया एवं दो टिप्पणियाँ की- १. वीरसेन महाराज (आचार्य वीरसेन स्वामी) द्वारा धवला एवं जयधवला में लिखे गये वचन अकाट्य हैं। इनमें कुण्डलपुर का ही उल्लेख है। २. वैशालिक का अर्थ वैशाली से लगाना उचित नहीं, इस बावत नरेन्द्रप्रकाश जी का तर्वक एवं विवेचन पुस्तक में बहुत अच्छा है। आचार्यश्री ने २.३० घंटे तक खुलकर चर्चा की एवं स्पष्टत: कुण्डलपुर-नालंदा को ही जन्मभूमि बताया। आपने डॉ. अनुपम जैन को आदेशित किया कि कुण्डलपुर के संदर्भ में दिगम्बर जैन आगमों में लिखे सभी संदर्भों, परवर्ती विद्वानों द्वारा लिखित सभी आलेखों, अभिमतों एवं गत १००-१५० वर्षों में कुण्डलपुर क्षेत्र में हुई खुदाई, प्राप्त मूर्तियों आदि के बारे में समस्त तथ्यों का संकलन कर पुस्तक प्रकाशित करें, जिससे वैशाली के पक्ष में दिये जा रहे तर्कों का निरसन किया जा सके। डॉ. जैन ने आपके आदेश को शिरोधार्य कर शीघ्र ही पुस्तक तैयार करने का वचन दिया। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज एवं गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी सदृश वरिष्ठतम संतों की भावनाओं को जानकर हमें मन में किंचित् भी संशय नहीं रखना चाहिए।