यद्यपि ‘तीर्थ’ शब्द के अनेक अर्थ होते हैं किन्तु लोक में तीर्थ शब्द का अर्थ पवित्र स्थान के रूप में रूढ़ हो गया है। तीर्थ वे स्थान हैं जिनसे संसार समुद्र तिरा जाए। ये स्थान परम पवित्र होते हैं। इन स्थानों की वंदना से पाप मल धुल जाते हैं, परिणामों में विशुद्धि आती है। इसलिए जैनशास्त्रों में तीर्थों की गणना मंगलों में की गई है। जैनाचार्यों ने तीर्थक्षेत्रों को तीन भागों में विभक्त किया है-तीर्थक्षेत्र, सिद्धक्षेत्र एवं अतिशयक्षेत्र। तीर्थक्षेत्र तीर्थंकरों, सामान्य केवलियों, विशिष्ट आचार्यों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञानकल्याणकों या उनके मंगल विहारों से पवित्र स्थल हैं। सिद्धक्षेत्र वे हैं जहां से तीर्थंकरों या सामान्य केवलियों ने निर्वाण प्राप्त किया हो। अतिशयक्षेत्र वे हैं जिनसे कोई विशेष अतिशय या चमत्कारिक घटना जुड़ी हो। ऐसे ही तीर्थक्षेत्रों में एक तीर्थक्षेत्र है ‘‘कुण्डलपुर’’ जो कि बिहार प्रान्त में नालन्दा के पास स्थित है। यही स्थान भगवान महावीर का जन्मस्थान है। कुछ लोग अपने हठाग्रह के द्वारा वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि सिद्ध करने का कुप्रयास कर समाज में भ्रामक स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। यदि आगम, तर्क एवं अनुभव से देखा जाए तो नालन्दा के निकट स्थित कुण्डलपुर ही भगवान महावीर की जन्मभूमि सिद्ध होती है। इस आलेख में हम क्रमशः इन बिन्दुओं के आलोक में सत्य का अवलोकन करेंगे। हमारे प्राचीन आर्षमार्गी आगम ग्रन्थों यथा-तिलोयपण्णत्ति, वीरजिणिंदचरिउ, पउमचरिउ, जयधवला एवं महापुराण के उल्लेखानुसार नालन्दा कुण्डलपुर ही भगवान महावीर की जन्मभूमि है अतः आगमग्रन्थों के आलोक में ही भगवान महावीर की जन्मभूमि का निर्णय करना चाहिए। दिगम्बर जैन पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार वैशाली तो भगवान महावीर की ननिहाल है अतः ननिहाल में भगवान महावीर जैसे महापुरुष का जन्म मानना लोकपरम्परा के विपरीत है। उसके पक्ष में यह तर्वक देना कि कुछ परिवारों में प्रथम प्रसव आज भी ननिहाल में होता है, उचित नहीं है क्योंकि यह महावीर की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है। राजा सिद्धार्थ के पास कोई कमी नहीं थी कि वे पत्नी का प्रसव ससुराल में कराते। मेरे पास ‘‘राजेन्द्र कुमार जैन, महावीर रेस्टोरेण्ट, जैन कलर फोटो लैब, २६-सी, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली’’ द्वारा प्रकाशित भारत के दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्रों का सड़क एवं रेलमार्ग द्वारा यात्रा करने का नक्शा है इसमें नालन्दा का नाम तो है पर वैशाली का नाम तक नहीं। इससे स्पष्ट है कि वैशाली जैन तीर्थक्षेत्र नहीं है फिर हम वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि कैसे कह सकते हैं? कुछ व्यक्तियों द्वारा बाद में उसे महावीर की जन्मभूमि बताकर समाज को भ्रमित किया जा रहा है। मेरे पास सन् १९९१ में ‘‘अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन पब्लिसिंग हाउस, २०४, दरीबां कला, दिल्ली’’ द्वारा प्रकाशित ‘‘जैन तीर्थ दर्शन’’ नाम की पुस्तक है जिसमें पृष्ठ ५८ पर नालन्दा कुण्डलपुर का वर्णन करते हुए लिखा है कि ‘‘यही स्थान भगवान महावीर की जन्मभूमि माना जाता रहा है किन्तु अब यह श्रेय वैशाली के कुण्डग्राम को प्राप्त हो गया है।’’ सत्यता यह है कि वैशाली-कुण्डग्राम भगवान महावीर की जन्मभूमि नहीं है किन्तु कुछ प्रभावशाली लोग उसे हठधर्मिता द्वारा महावीर की जन्मभूमि सिद्ध करने पर तुले हुए हैं। शताब्दियों से दिगम्बर जैन नालन्दा-कुण्डलपुर को एवं वहां के जैन मन्दिर को भगवान महावीर की जन्मभूमि मानकर अपने श्रद्धाभाव प्रकट करते रहे हैं और आगे भी प्रकट करते रहेंगे, समाज भ्रमित लोगों के बहकावे में आने वाली नहीं है। अब हम एक सामान्य से तर्वक का सहारा लेते हैं जिससे नालन्दा-कुण्डलपुर ही भगवान महावीर की जन्मभूमि सिद्ध होती है। जहां महापुरुष रहते हैं, उसके आस-पास के क्षेत्र उनके जीवन प्रसंगों से जुड़े रहते हैं। नालन्दा-कुण्डलपुर के आसपास के क्षेत्र नवादा, गुणावा, राजगृही, पावापुरी भगवान महावीर के विभिन्न प्रसंगों से सम्बद्ध हैं जबकि वैशाली के निकट का कोई भी क्षेत्र उनके जीवन से जुड़ा हुआ नहीं है अतः वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि मानना तर्वकसंगत नहीं है। अब हम अनुभव के बिन्दु पर आते हैं। सैकड़ों वर्षों से हमारे पूर्वजों ने नालन्दा-कुण्डलपुर को ही भगवान महावीर की जन्मभूमि मानकर वन्दना की है। मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि मेरे माता-पिता ने सन् १९५५ में इसी क्षेत्र की वन्दना की थी। उनके साथ अनेक जैनबन्धु और भी थे। उनके उपरान्त मैंने भी सन् १९७० के लगभग अनेक यात्रियों के साथ इसी स्थल की वन्दना की। सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की भावनाएं भगवान महावीर की जन्मभूमि के रूप में इसी क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। पीढ़ियां गुजर गर्इं परन्तु किसी के मन में इसके अतिरिक्त अन्य स्थान को भगवान महावीर की जन्मभूमि मानने का विकल्प ही उत्पन्न नहीं हुआ। आज भी सामान्य जैन, जिनकी संख्या ९९ प्रतिशत से अधिक है नालन्दा-कुण्डलपुर को ही भगवान महावीर की जन्मभूमि मानते हैं और उसी की वन्दना करने जाते हैं। कुछ लोग थोथी दलीलें देकर, नया साहित्य छपवाकर, अपनी पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लेकर या नक्शे बदलवाकर वैशाली-कुण्डपुर को भगवान महावीर की जन्मभूमि सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं किन्तु –