पहले पहाड़ से लगभग ४ किमी. पहाड़ पर चलने पर दूसरा पहाड़ आता है। पहाड़ के ऊपर सपाट मैदान में एक छतरी में दो चरण चिन्ह बने हुए हैं। इनके संबंध में अनुश्रुति है कि यहाँ भगवान महावीर का समवसरण आया था। उनकी स्मृति में ये चरण चिन्ह बनाये गये हैं। यहाँ से थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर एक मंदिर मिलता है। मंदिर ८ फीट लम्बा और इतना ही चौड़ा है। यहाँ ३ फीट २ इंच ऊँची कृष्ण वर्ण की पद्मासन मुद्रा में सप्तफणी पार्श्वनाथ प्रतिमा विराजमान है। कन्धे के दोनों पाश्र्वों में फलक में चमरेन्द्र बने हुए हैं। ये ही गिरि पार्श्वनाथ कहलाते हैं। मूर्ति के ऊपर लेप किया हुआ है। इसमें शैली आदि दब गयी है। अत: इसका रचनाकाल ज्ञात नहीं हो पाता। इसके निकट क्षेत्रपाल की मूर्ति है। मंदिर के चारों ओर बाहर प्रदक्षिणापथ है और ऊँचा पक्का अहाता है। यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है। यहाँ से गाँव के लिए सीधा मार्ग जाता है।