मार्ग और अवस्थिति— खजुराहो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है और अत्यन्त कलापूर्ण भव्य मंदिरों के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध पर्यटन केन्द्र है। एक हजार वर्ष पूर्व यह चन्देलों की राजधानी था, किन्तु आज तो यह एक छोटा सा गाँव है जो खजुराहो सागर अपरनाम निनौरा ताल नामक झील से दक्षिण-पूर्वी कोने में बसा है। यह स्थान महोबा से ५५ कि.मी. दक्षिण की ओर, हरपालपुर से ९६ कि.मी. तथा छतरपुर से ४६ कि.मी. पूर्वा की ओर, सतना से १२० कि.मी. व पन्ना से ४३ कि.मी. पश्चिमोत्तर दिशा में है। इन सभी स्थानों से खजुराहो तक पक्की सड़क है और नियमित बस सेवा है। रेल से यात्रा करने वालों के लिए हावड़ा-बम्बई लाइन पर सतना स्टेशन से तथा झाँसी-मानिकपुर लाइन पर हरपालपुर और महोबा से यहाँ के लिए बसें नियमित चलती हैं। इसी प्रकार इलाहाबाद, कानपुर, झाँसी, ग्वालियर, बीना, सागर, भोपाल, जबलपुर आदि से बस द्वारा छतरपुर होते हुए खजुराहो पहुँच सकते हैं। जनश्रुति के अनुसार यहाँ ८५ मंदिर थे, किन्तु अब तो प्राचीन मंदिरों में से केवल ३० मंदिर ही विद्यमान हैं, शेष मंदिर नष्ट हो गये। यहाँ दो शिलालेख प्राप्त हुए हैं जो अस्पष्ट होने के कारण पढ़े नहीं जा सके। इनमें से एक लेख एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। इसमें केवल ‘नेमिचन्द्र’ शब्द पढ़ा जा सकता है। अक्षरों की शैली से यह १० वीं शताब्दी का सिद्ध होता है। इसी प्रकार दूसरे लेख में ‘स्वस्ति श्री साधु पालना’ शब्द पढ़े जा सके हैं। सन् १८७६-७७ में यहाँ खुदाई में १३ जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई थीं।
जैन मंदिरों का समूह— गाँव के दक्षिण-पूर्व में जैन मंदिरों का समूह है। वे मंदिर एक आधुनिक चहारदीवारी से घिरे हैं। आदिनाथ, पार्श्वनाथ और शांतिनाथ मंदिरों के अतिरिक्त कई आधुनिक जैन मंदिर हैं जो प्राचीन मंदिर के ध्वंसावशेषों पर बनाये गये हैं। तीर्थंकरों की अनेक प्राचीन मूर्तियाँ मंदिर में तथा अहाते में खुले संग्रहालय के रूप में रखी हुई हैं। इनमें से कई मूर्तियों पर तिथि वाले लेख अंकित हैं। खजुराहो के वर्तमान जैन मंदिरोें में पार्श्वनाथ मंदिर (मंदिर नं.२५) सबसे विशाल और सबसे सुन्दर है। वह ६८ फुट २ इंच लम्बा और ३४ फुट ११ इंच चौड़ा है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। खजुराहो के समस्त हिन्दू और जैन मंदिरों में भी कला-सौष्ठव और शिल्प की दृष्टि से यह अन्यतम माना जाता है। खजुराहो का कन्दारिया मंदिर अपनी विशालता एवं लक्ष्मण मंदिर उत्कीर्ण मूर्ति सम्पदा की दृष्टि से विख्यात है किन्तु पार्श्वनाथ मंदिर के कलागत वैशिष्ट्य एवं अद्भुत शिखर संयोजना की समानता वे मंदिर नहीं कर सकते। प्रसिद्ध विद्वान् फर्गुसन ने इस मंदिर के संबंध में जो उद्गार प्रकट किये हैं, उनसे वास्तविक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। ‘वास्तव में समूचे मंदिर का निर्माण इस दक्षता से साथ हुआ है कि सम्भवत: हिन्दू स्थापत्य में इसके जोड़ की कोई रचना नहीं है जो इसकी जगती की तीन पंक्तियों की मूर्तियों के सौन्दर्य, उत्कृष्ट कोटि की कला संयोजना और शिखर के सूक्ष्मांकन में इसकी समानता कर सके।’ कन्दारिया महादेव मंदिर के साथ पार्श्वनाथ मंदिर की तुलना करते हुए फर्गुसन आगे लिखते हैं— ‘कन्दारिया महादेव मंदिर के साथ पार्श्वनाथ मंदिर की तुलना करें तो हम यह स्वीकार किये बिना नहीं रह सकते कि पार्श्वनाथ मंदिर कहीं अत्यधिक श्रेष्ठ है।’ इस प्रकार हम देखते हैं कि पार्श्वनाथ मंदिर खजुराहो के मंदिर समूह में सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है। पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माणकाल प्राय: सभी विद्वान् १०वीं शताब्दी मानते हैं। द्वार के बायें खंभे पर १२ पंक्तियों का एक लेख है, जिसमें प्रतिष्ठा काल संवत् १०११ दिया गया है। लिपि के आधार पर यह लेख किसी प्राचीनतर लेख की उत्तरकालीन प्रतिलिपि माना जाता है। संग्रहालय— बस अड्डे के पास सरकारी संग्रहालय है। इसमें प्राय: खजुराहो के प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेषों में से प्राप्त पुरातत्त्व सामग्री संग्रह की गयी है। उसमें से कुछ सामग्री तो यहाँ व्यवस्थित रूप में सुरक्षित है, किन्तु अधिकांश सामग्री हिन्दू मंदिर समूह के पास एक खुले अहाते में पड़ी है। संग्रहालय में सुरक्षित सामग्री में जैन पुरातन सामग्री भी है। इसमें तीर्थंकर मूर्तियाँ और शासन-देवताओं की मूर्तियाँ हैंं। जैन सामग्री के लिए अलग से एक जैन कक्ष बना हुआ है। प्रमुख कक्ष में भी दो जैन मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। एक तो भगवान ऋषभदेव की है और दूसरी शासन-सेवक यक्ष और यक्षी की है।
धर्मशालाएँ— खजुराहो विख्यात पर्यटक केन्द्र है। यहाँ हजारों व्यक्ति प्राचीन भारत की कला का दर्शन करने आते हैं। अनेक जैन इस क्षेत्र के दर्शन करने और पूर्वजों के कला-प्रेम एवं कला को देखने आते हैं। यों तो यहाँ श्रेणी-१ और २ के होटल, रेस्ट हाउस, डाक-बँगला, लॉज आदि हैं जिनमें यात्री ठहरते हैं; किन्तु जैन यात्रियों की सुविधा के लिए समाज के सहयोग से यहाँ ६ धर्मशालाओं का निर्माण किया गया है। इनमें दो विभाग कर दिये गये हैं। एक तो सामान्य धर्मशाला है जिसमें यात्री नि:शुल्क ठहर सकते हैं। दूसरा विश्रान्ति-भवन, जिसमें निश्चित शुल्क देकर ठहर सकते हैं। मेला—क्षेत्र का वार्षिक मेला चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में होता है। इसी अवसर पर विधानानुसार क्षेत्र की प्रबन्ध समिति का भी चुनाव होता है। यहाँ आश्विन कृष्ण ३ को प्रतिवर्ष पालकी निकाली जाती है। यह उत्सव छतरपुर रियासत के काल से प्रतिवर्ष मनाया जा रहा है। दोनों ही उत्सवों में जैन जनता बड़ी संख्या में एकत्र होती है।