भगवार पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर टिकैतनगर अवधप्रांत के बाराबंकी जिले में स्थित है, यह स्थान लखनऊ से ८० कि.मी. एवं शाश्वत तीर्थक्षेत्र अयोध्या जी से ७० कि.मी. दूर है। समीपवर्ती अन्य तीर्थक्षेत्र धर्मनाथ जन्मभूमि रौनाही, भगवान सम्भवनाथ जन्मभूमि श्रावस्ती जी तीर्थक्षेत्र हैंं। लखनऊ, बाराबंकी, भिटरिया, रामनगर आदि से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। यह स्थान जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की जन्मभूमि के नाम से विश्वविख्यात है। इस धर्मपरायण नगरी में आज भी त्यागी व्रती आत्मकल्याण करने हेतु गृहस्थ रूपी कीचड़ से निकलकर मोक्षमार्ग में लग रहे हैं। इस नगर में दो दिगम्बर जैन मंदिर हैं-श्री पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर एवं विश्वशांति भगवान महावीर दि.जैन मंदिर। सैकड़ों वर्ष पुराने भगवान पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ प्रतिमा अतिशय चमत्कारी है।मूर्ति जीवराज पापड़ीवाल द्वारा संवत् १५४८ की निर्मित है। इस मूर्ति के आगे सच्चे मन से की गई कामना की सिद्धि होती है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के जीवन में घटित घटना है। १८ वर्ष की उम्र में जब कु.मैना (वर्तमान में ज्ञानमती माताजी) ने त्यागमार्ग पर कदम बढ़ाया उस समय उन्होंने इन्हीं भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन कर यह भावना भाई थी कि भगवन्! मैं त्यागमार्ग पर निकलकर शीघ्र ही दीक्षा लेकर आपका दर्शन करूँ। उनकी यह भावना शीघ्र ही फलित हुई और १ वर्ष के भीतर ही उन्होंने त्याग मार्ग में प्रवेश कर क्षुल्लिका दीक्षा प्राप्त करके भगवान पार्श्वनाथ के पुन: दर्शन किए। यहाँ पौष कृष्णा एकादशी को भगवान पार्श्वनाथ की जन्मजयंती धूमधाम से मनाई जाती है और भक्तामर का अखंड पाठ (२४ घंटे का ) किया जाता है। लगभग २५ वर्ष पूर्व की बात है मंदिरजी की कुछ धातु की मूर्तियाँ चोरी चली गर्इं। जिसने चोरी की थी उसके परिवार का एक सदस्य १-२ दिन बाद ही मर गया तो चोर वापिस मंदिर में मूर्ति रखकर चला गया। वहाँ आज भी यह मान्यता है कि जिनधर्म संबंधी अपवाद करने वाला कोई भी व्यक्ति वहाँ सानन्द व सुखी नहीं रह सकता। कुछ ही समय में घटना प्रत्यक्षगत हो स्पष्ट हो जाती है। भगवान पार्श्वनाथ के अतिशय के कारण ही वहाँ के विद्यालय का नाम श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय’’ रखा गया जो वर्तमान में ‘‘ पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन इण्टर कॉलेज’’ के रूप में वृद्धिंगत है। भगवान पार्श्वनाथ की शासन देवी पद्मावती माता का भी यहाँ बहुत अतिशय है, प्रति शुक्रवार को यहाँ पद्मावती आराधना का वृहद् आयोजन होता है। नगर में आने वाली प्रत्येक नववधू सर्वप्रथम पद्मावती माता की आराधना अवश्य करती है। यह आयोजन प्राय: वृहद् रूप में ही होता है और नगर की ५१ या १०८ सुहागिन स्त्रियों की गोद भी मंदिर जी में भरी जाती है। इसी मंदिर के बगल में सन् २००५ में निर्मित दूसरे ‘‘विश्वशांति भगवान महावीर मंदिर’’ में अवगाहना प्रमाण भगवान महावीर की प्रतिमा भी अतिशय चमत्कारी है जिसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा फरवरी २००५ में सम्पन्न हुई है। मंदिर निर्माण एवं प्रतिमा विराजमान का बहुत बड़ा चमत्कार यहाँ घटित हुआ था। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के संघ सानिध्य में होने वाली इस पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं प्रतिमा विराजमान होने के समय होने वाले चमत्कार का वर्णन आज भी वहाँ की जैन-अजैन जनता द्वारा सुना जा सकता है, जो कि सुनने वालों को रोमांचित कर देता है। उसका िंकचित् वर्णन चारित्रचंद्रिका गं्रथ में पठनीय है। आने वाले धर्मानुरागी भाइयों के लिए यहाँ दर्शन के लिए दोनों मंदिरों के अतिरिक्त माताजी की जन्मभूमि विशेष है। नगर में प्रत्येक जैन बन्धु के घर में आदर-सत्कार का विशेष ध्यान रखा जाता है। नगर में आगन्तुक बन्धुओं के ठहरने के लिए दो धर्मशालाएँ हैं फिर भी जैन बन्धु आगत अतिथि को ठहराने आदि में पूर्ण रुचि रखते हैं। यहाँ का निकटवर्ती रेवले स्टेशन ६ कि.मी. दूर दरियाबाद है। सम्मेदशिखर की ओर जाने वाली लगभग सभी ट्रेनें इस स्टेशन पर रूकतीं हैं। यहाँ से तांगा अथवा टैम्पो से यात्री टिकैतनगर पहुँचते हैं।