कालसर्पयोग निवारक भगवान पार्श्वनाथ,जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र
-संजय जैन (कानपुर वाले), जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर
राजधानी दिल्ली से ११० कि.मी. एवं मेरठ से ४० कि.मी. दूर स्थित श्री दिगम्बर तीर्थ जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर धरती का स्वर्ग (मानव द्वारा निर्मित) माना जाता है। जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से निर्मित विश्वविख्यात जैन भूगोल की अद्वितीय रचना का निर्माण सन् १९७४-१९८५ में हुआ। इस भव्य रचना के साथ-साथ यहाँ अनेक भव्य एवं अद्वितीय रचनाएँ हैं, जो स्वयं में अनूठी एवं प्रथम बार निर्मित हैं। कमल मंदिर, तीनमूर्ति मंदिर, ध्यान मंदिर (ह्रीं मंदिर), अष्टापद मंदिर, ॐ मंदिर, सहस्रकूट मंदिर, विद्यमान २० तीर्थंकर मंदिर, आदिनाथ मंदिर, वासुपूज्य मंदिर, शांति-कुंथ-अरनाथ मंदिर, नवग्रह शांति जिनमंदिर, कीर्तिस्तम्भ एवं विशाल तेरहद्वीप जिनालय। इन मंदिरों में तीनमूर्ति मंदिर में विराजमान हैं कालसर्पयोग निवारक, सातिशय सहस्रफणी चिन्तामणी भगवान श्री १००८ पार्श्वनाथ स्वामी। ये श्यामवर्णी पद्मासन सवा चार फुट ऊँची प्रतिमा कमलासन पर विराजमान है। सरोवर में खिले कमल के समान इसका कमल है तथा नीचे कमल की नाल में पार्श्वनाथ का चिन्ह सर्प भी बना है। कालसर्पयोग एवं केतुग्रह से ग्रसित व्यक्ति यहाँ आकर चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की १०८ अथवा १००८ कलशों से महाभिषेक, आराधना, श्री पार्श्वनाथ विधान करके अपने ग्रह के अरिष्ट को दूरकर मनोकामना की सिद्धि करते देखे जाते हैं। इसी मंदिर में विराजमान हैं भगवान पार्श्वनाथ के शासन देव-देवी धरणेन्द्र देव एवं पद्मावती माता। संतान प्राप्ति और विवाहादि लौकिक सुखों की प्राप्ति हेतु अनेक सुहागिन महिलाएँ तथा कुमारी कन्याएँ आकर वृहद् रूप में पद्मावती माता की आराधना करके अपने इष्ट कार्य की सिद्धि करती हैं। अधिकांशत: प्रत्येक शुक्रवार एवं रविवार को यहाँ पद्मावती आराधना होती है तथा आगन्तुक यात्री अपनी सुविधानुसार कभी भी आकर आराधना करते हैं। इन मंदिरों में सभी विशेष दर्शनीय एवं वंदनीय हैं। इनमें तेरहद्वीप जिनालय की रचना स्वर्णमयी है जिसकी छटा अद्भुत है जिसे देखकर मन तृप्त नहीं होता है। जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में गणिनी ज्ञानमती प्राकृत शोध पीठ का मुख्यालय है। यहाँ के जम्बूद्वीप पुस्तकालय में पंद्रह हजार ग्रंथ एवं शताधिक पाण्डुलिपियाँ हैं। पास का रेलवे स्टेशन मेरठ है जो ४० कि.मी. दूर है। दिल्ली, मेरठ एवं मुजफ्फरनगर से सीधी बस सेवा उपललब्ध है, जम्बूद्वीप क्षेत्र के मुख्य द्वार पर जाकर बस रुकती है। तिजारा जाने वाले यात्रियों के लिए जम्बूद्वीप स्थल से बस सेवा उपलब्ध है, रात्रि में यह बस क्षेत्र पर ही रुकती है और प्रात: ५:३० बजे तिजारा के लिए प्रस्थान करती है। यात्रियों के ठहरने हेतु यहाँ अनेकों कोठियाँ, २०० डीलक्स फ्लैट्स हैं, यहाँ एक साथ २०००-२५०० यात्री ठहर सकते हैं। यह धार्मिक स्थल के साथ-साथ प्राकृतिक सुषमा एवं मनोरंजन का स्थल भी है—ऐरावत हाथी पर जम्बूद्वीप की परिक्रमा, लवण समुद्र में नौका विहार, बच्चों के लिए रेलगाड़ी, झूले, हँसी के गोल-गप्पे, लवण समुद्र के फव्वारे, प्राचीन इतिहास व तीर्थ से संबंधित सुंदर झाँकियाँ, लॉन, फुलवारी, बगीचे इत्यादि देखने योग्य हैं। यात्रियों के भोजन हेतु सुंदर भोजनशाला है जो कि नियमित चलती है जिसमें ५०० यात्री एक साथ भोजन कर सकते हैं। परिसर में ही जैन वैन्टीन, दुकानें आदि भी हैं। एस.टी.डी./पी.सी.ओ.भी है।
विशेष मेले
कार्तिक पूर्णिमा, होली, अक्षय तृतीया, भगवान शांतिनाथ निर्वाण मेला-ज्येष्ठ वदी चतुर्दशी, रक्षाबंधन, शरदपूर्णिमा, माघ कृष्णा चतुर्दशी (आदिनाथ निर्वाणोत्सव) तथा पंचवर्षीय जम्बूद्वीप महोत्सव पर विशेष मेले का आयोजन होता है। जम्बूद्वीप रचना के अन्दर सन् १९७९ से १०१ फुट ऊँचे सुमेरु पर्वत बनने के बाद अनेक बार देवताओं के आगमन और रात्रि में बाजे बजने तथा जय-जयकार करने के चमत्कार यात्रियों ने देखे हैं। सन् १९८५ में परम तपस्विनी आर्यिका श्री रत्नमती माताजी (गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की गृहस्थावस्था की माँ एवं पूज्य आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज की दीक्षित शिष्या) की समाधि के पश्चात् प्राय: उनके समाधिस्थल पर जलता हुआ दीपक रात्रि में दिखाई देता है तथा उनके समाधिदिवस माघ कृ.नवमी को तो लगभग प्रतिवर्ष लोग अपूर्व जय-जयकार की ध्वनि (जम्बूद्वीप की जय, अकृत्रिम चैत्यालयों की जय आदि) सुनते हैं, इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि रत्नमती माताजी ने सल्लेखना विधि से समाधिमरण करके देवपर्याय प्राप्त की है और वे अकृत्रिम चैत्यालयों की वंदना को जाते हुए हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप की भी अदृश्यरूप से अवश्य वंदना करती हैं। पुनश्च तेरहद्वीप जिनालय की २१२७ प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात् तो पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने स्वयं अपनी आँखों से अत्यंत सुन्दराकृति इन्द्र-इन्द्राणियों को आकाश से उतरकर आते हुए देखा है, जिसे देखकर उन्हें अपूर्व आल्हाद का अनुभव हुआ। तात्पर्य यह है कि ऐसी अकृत्रिम चैत्यालयों की शास्त्रीय रचना विश्व में प्रथम बार बनने से स्वर्गलोक में भी उनकी चर्चा चलती होगी और देवगण उनका दर्शन करने आते होंगे, इसमें कोई अतिश्योक्ति की बात नहीं है क्योंकि आज से २६०० वर्ष पूर्व तो साक्षात् ही देव-इन्द्र आदि पृथ्वी पर आकर भगवान के कल्याणक मनाते थे किन्तु अब मनुष्यों का पुण्य क्षीण हो जाने के कारण देवों का साक्षात् आगमन नहीं दिखता है किन्तु अनेक मंदिरों में अदृश्य चमत्कार तो आज भी देखे जाते हैं। उसी शृँखला में हस्तिनापुर तीर्थ के जम्बूद्वीप स्थल पर निर्मित इन भव्य रचनाओं में अद्भुत चमत्कार है। जम्बूद्वीप और तेरहद्वीप रचना की १०८ प्रदक्षिणा करने वालों की मनोरथ सिद्धि एवं अनेक दुर्घटना टलने के अनेक उदाहरण लोग स्वयं मुख से बताते हैं।