१. कल्याणक चूर्ण— हल्दी, बालबच (मीठी बच) छोटी पीपल, सौंठ, जीरा, अजमोद, मलैठी, मीठा कूठ, सम—भाग लेकर सभी पीसकर छानकर रखें। इसे घी अथवा सीरा के साथ एक आना भर की खुराक दिन में ३ बार खिलाएँ। (ऊपर से पानी न दें।)
२. कुलंजन (पान की जड़) को पीसकर गुड़ में मिलाकर खिलाएँ।
३. केवल कत्था एवं चूने (कम चूना हो) लगा पान पत्थर पर घिसकर पीसकर घूटी के रूप में देने से लाभ होता है।
४. श्यामा तुलसी के पत्तों का स्वरस सीरा से देना ऊपर से काली बकरी का दूध पिलाए।
५. स्वाइन फ्लू— (१) हल्दी एवं नीम पत्ती का काढ़ा में रूमाल भिगोकर मुँह पर फैरने से रोगाणु दूर रहते हैं। (२) १५/२० लहसुन कली गले में पहने रोगाणु दूर हो जाते हैं। (३) अदरख, तुलसी दल, गिलोय, कालीमिर्च के काढ़े को बनाकर सुबह शाम पीवें।
हृदय के नीचे दक्षिण भाग में यकृत (लीवर) स्थिति है। जिसमें अनेक प्रकार के दुख देने वाले रोग उत्पन्न होते हैं। १. सर्वाङ्ग सुन्दर रस (रसेन्द्रसार संग्रह) फार्मूला— शुद्ध गन्धक/ पारद की कज्जली १५—१५ ग्राम की पर्पटी बना लें। २—३ दिन की रखी कज् जली की पर्पटी बनाई जा सकती है। आगे बनाना ठीक नहीं। जायफल, दक्षिणी, जावित्री इलायची के बीज १५—१५ ग्राम लेकर सबको मिला चूर्ण छान लें। यह ५ वर्ष तक के बालकों की अमृत समान गुणकारी है। ज्वर, दूर कर अग्नि दीप्त होती है। बालक बढ़ता है। यकृत रोग में अदभुत कार्य करता है। सेवन विधि—पिप्पली चूर्ण १ से ३ मासा एवं सर्वाङ्ग सुन्दर रस १ से ६ रत् ती उम्र अनुसार इसमें घोलकर देना चाहिए।
तंत्र— (१) ऊँट कटारा— की जड़ पुष्प नक्षत्र में लकड़ी की नोक से खोदकर लाएँ ७ शाखाओं वाली जड़ सर्वश्रेष्ठ होती है इसे सोने की ताबीज में गले में बाँधने से सब बाधाएँ दूर होती हैं। दरिद्रता दूर होती है।
(२) शोथ लोह— सौंठ मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा आँवला, मुनक्का, पोहकर मूल, सुगन्धवला, कचूर, लौह—भस्म, घुड़वच, लौंग, कड़कड़ासिग्गी, दालचीनी सौफ, बायविडंग,धाय की फूल, सम भाग १—१ तोणी चूर्णकर कपड़छन करें। पश्चात् मण्हूर भस्म १० ग्राम मिलाकर कम से कम ३ घण्टे पत्थर के खरल में घोंटे(घिसें) फिर कुड़े की छाल का स्वरस अथवा काढ़े में घोंटकर गोला बनाकर इस गोले का जामुन के कोमल पत्रे में लपेटकर ऊपर मिट्ठी का लेप कर सुखा लें पश्चात् जंगली उपले (कपड़े) की अग्नि में लघुपुट (कम आँच) से पकाएँ। पीसकर छानकर रखें। औषधि निकाल कर प्रयोग करें।
प्रयोग— २ रत्ती की मात्रा दूध से लेना। गुण— सारे शरीर की सूजन, को नाश कर चमत्कारी लाभ कराती है।
३. ताप्यादि लौह— हर्र, बहेड़ा आँवला, सौंठ, मिर्च, पीपल, चित्रकमूल वायविडग, ५—५ ग्राम दारूहल्दी, दालचीनीऔर च्वय, १०—१० ग्राम शुद्ध शिलाजीत, स्वर्णमाक्षिक भस्म,तथा लौह भस्म प्रत्येक १० ग्राम मण्डूर भस्म २० ग्राम मण्डूर भस्म २० ग्राम मिश्री ३२ तोला। सभी चूर्ण कर छान लें पहले काष्टिक दवा अलग पीसे बाद में भस्म मिलावें।
गुण— पाण्डू यकृत, बालकों का यकृत रोग ठीक होते हैं। बालकों के पक्षाधात में एवं पोलियों में भी गुणकारी है।
कारण— सौंठ १ तोला, सम्भालु के पत्र १ तोला करंज की छाल १ तोला तीनो कूटकर ४८ तोला जल में धीमी अग्नि से पकाएँ ६ तोला शेष रहने पर छानकर शीशी में रख लें। १—१ चम्मच प्रतिदिन २—३ बार पिलाएँ। लाभ होगा।
१. रस औषधि— बात गंजाकुश रस २ ग्राम शीतांसु रस २ ग्राम ताम्रभस्म १ भाग सभी को एकत्र कर पीसें फिर मिलाकर शीशी में रखें। खुराक— १/२ रत्ती से १ रत्ती खुराक दूध से देना चाहिए। दिन में सुबह—शाम दो बार।
१. अमरूद के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों का दर्द एवं सूजन कम होती है।
२. नीम की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों का असहाय दर्द ठीक होता है। अतीस अति उत्तम मेहु अतीस उसे करि चूर्ण अनेकन रोग में दीजे।। ज्वर ताप घटे अतिसार हटे, अरू लावै पसीना न शक्तिहू छीजै।। कुइनाइन की समता इसमें, बहुबार परीक्षित है। यश तीजे। शिशु रोगन को तुलसी सो, यह नाशति शीघ्र न संशय कीजे।। मासिक धर्म की अनियमितता कच्चा सुहागा ३ ग्राम केशर ३ ग्रेन (१ ग्राम) दोनों को खरल कर बारीक घोटकर प्रात: सायं ठंडे पानी के साथ दें। दूसरी मात्रा की जरूरत नहीं होती एक ही बार में ठीक हो जाता है।
कलिहारी की जड़ पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से स्त्रियों की महावारी खुलजाती है।
भूमि का ढलान ईशान दिशा की ओर रख दें। यदि पहले थोड़ा है तो कुछ और बढ़ा दें एवं किसी सुहागन को सुहाग सामग्री दें। अमावस्या को लोभान जलाकर पूरे घर में घुमाएँ। कर्ज की प्रथम किस्त शुक्ल पक्ष के मंगलवार को देना प्रांरभ करें। तो कर्ज मुक्ति अवश्य होगा।
चंदन, कुमकुम, कूट लौंग नेत्रवाला, देवदारू, चासनी जायफनी, लोभान, जायपत्ती, गूगल, केशर को बराबर लेकर धीमी अग्नि से धूनी देवें तो असर खत्म होता है।
ढांक (पलाश) वृक्ष के तने में संध्या समय कुल्हाड़ी तीक्ष्ण शस्त्र से गोदा मार दें। इस गोदे में रस चूने लगेगा। इस रस को रूई में भिगों ले और तुरन्त लाकर रतौंधी वाले रोगी की आँखों में २—४ बूँद टपका दें। रतौंधी २—३ दिन में ठीक होकर जीवन भर को ठीक हो जाएगी।
१. औंक के पत्तों को तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ होता है। २. उड़द को सौंठ के साथ काड़ा बनाकर पीने से आराम होता है।
लज्जावन्ती का ३ ग्राम चूर्ण फंकाकर ऊपर से बताशों का शरबत पिलाने से स्त्रियों का रक्त प्रभाव श्राव बन्द हो जाता है। रजोदर्शन रज: प्रर्वाक—खुलना। इन्द्रायण के बीज ४ ग्राम कालीमिर्च ६ नग दोनों को कूटकर २०० ग्राम जल में औटाएँ ५० ग्राम रहने पर छान—कर पिला दें। रजो दर्शन होने लगेगा।
१. छोटी कटेरी (पसर कटेली) के फल का रस निकालकर नस्य देने से मृगी शीघ्र दूर होती है।
२. बच का कपडछन चूर्ण २ ग्राम चासनी से लेने से मृगी/हिस्टीरिया दूर होता है। एक माह पिलाने से रोग दूर होता हैं।
३. दो ग्राम अधिक ठण्डे जल में पीसकर प्रतिदिन निरन्तर १ माह पिलाने से हिस्टिरीया दूर होता है।
४. करौंदे के पत्ते १० ग्राम दही या मट्ठे के साथ १०—१५ दिन सेवन करें।
५. ५० ग्राम नौसादर को १ लीटर केले के पत्ते के रस में डालकर रखें। मृगी आने पर नाक में टपकाएँ दौरा शान्त होगा।
१. फिटकरी ५० ग्राम कलमी शोरा ५० ग्राम श्वेत चन्दन २५ ग्राम तीनों कूट पीस कपड़छन कर लें पानी से ३ ग्राम खुराक सेवन करें।
२. जवारवार ४ ग्राम फिटकरी ३ ग्राम अकरकरा ३ ग्राम हल्दी ३ ग्राम सबको पीसकर कपड़छन कर गाय कीछाछ में मिलाकर पिलाने से मूत्र शीघ्र उतरता है। मुखमण्डल के सौन्दर्य के लिए चेहरे की खूबसूरती बढाने के लिए तगर और चिरोंजी पीसकर मक्खन मिलाकर चेहरे पर उबटन लगाएँ।
मुहासे— मसूर की दाल का चूर्ण घी में मिलाकर दूध से पत्थर में घोटों फिर मुंह पर लेप करों। आधे घन्टे बाद धो डालें। नोट: प्रथक से सेना? ‘व्यापार में घाटा हो रहा हो तो— शुक्ल पक्ष में एक चुटकी आटा व १ चुटकी नमक लेकर दूकान के मुख्य द्वार के दोनों और स्वास्तिक बनाएँ। पाँच लौंग व एक जायफल पूजा स्थान में रखें तथा महावीर का जाप करें।
१. मुकदमा— यदि मुकदमें में हार की उम्मीद हो तो— अथवा रोग मुक्त न हो रहा हो तो उस व्यक्ति के वजन के बराबर कोयला पानी में बहा दें। लाभ होगा।
२. अनिद्रा— सोते समय १ नींबू का रस एवं सीरा १ गिलास पानी से लेने से नींद आएगी।
३. हाथ पैरों का पसीना— कंडी की राख और पीली कोड़ी का राख पीसकर मालिश से लाभ होगा।
४. कारावास का भय हो तो— ७ नारियल या ४५ पुराने सिक्के जो चलन में न हों उन्हें बहते पानी में बहा दें तो और पार्श्वनाथ स्त्रोत का पाठ करें भय दूर होगा।
५. टोटके— घर में अशान्ति रहने पर— गाय के गोबर का छोटा सा दीपक बनाकर उसमें रूई की बत्ती तथा तिल का तेल भर दें एक छोटी सी गुड़ की खली डालकर घर के दरवाजे के बीच में रख दें।
६. धन हानि बन्द होवे— काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के शिर पर से ७—७ बार उतारकर घर के उत्तर दिशा में फैक देें धनहानि बन्द होगी।
कारण— बहुत भारी, चिकने रूखे, गरम, शीतल संयोग विरूद्ध, प्रकृति विरूद्ध, देश विरूद्ध, ऋतु विरूद्ध, पदार्थों के खाने पीने से, उदर विकार हो जाता है अठराग्नि कमजोर हो जाती है। जिससे पाचन संस्थान विगड़ कर अतिसार (दस्त ) होने लगते हैं।
ऊपर लिखे कारणों से रस जल रूधिर, मूत्र, पसीना, मेद, कफ और पित्त प्रकृति पतली धातुएँ कुपित होकर, जठराग्नि या पाचकाग्नि मन्द हो जाती है और स्वयं मल में लिप्त हो जाती हैं। पीछे गुद्दा में रहने वाली अपान वायु उनको नीचे ढकेलती है, तब नदी के वेग की तरह गुद्रा से निकलती है। इन सबके इस तरह निकलने को अतिसार कहते हैं।अतिसार के पूर्व लक्षण—जिनको अतिसार रोग होने वाला होता है, उसके हृदय, नाभि, गुदा, पेट, और कुख में तोड़ने जैसी वेदना होती है। शरीर दु:खी सा रहता है। खाना पीना नहीं पचता। तात्पर्य यह है कि अतिसार होने के पहले ये लक्षण (चिन्ह) नजर आते हैं। अनिसार के पूर्व लक्षण—जिनको अतिसार रोग होने वाला होता है, उसके हृदय नाभि, गुदा, पेट, और कूख में तोड़ने जैसी वेदना होती है। शरीर दु:खी सा रहता है। गुदा की हवा रुक जाती है। मलावरोध हो जाता है, पेट फूल जाता है। खाना पीना नहीं पचता। तात्पर्य यह है कि अतिसार होने के पहले ये लक्षण (चिन्ह) नजर आते हैं। अतिसार ६ प्रकार के (भेद) होते हैं। १. बातातिसार २. पित्तातिसार ३. कफातिसार ४. सन्नपातिसार ५.शोकतितार ६. आगातिसार।
नोट — विशेष जानकारी चिकित्सा चन्द्रोदय भाग ३ देखें। अन्य आचार्यों ने ‘भयातिसार’ भी कहा है। शास्त्र में कहा है ‘‘रागद्वेष भयाच्चेव ते स्युरागन्वो गदा’’। अर्थात् राग द्वेष और भय से रोग होता है उसे ‘‘आगुन्तुज’’ कहते हैं।
नोट— अतिसार, संग्रहणी, विशूचिका (हैजा— कालरा) घोर अजीर्ण और कृमि रोग प्रभति में पतले दस्त होते हैं, पर इनके दस्तों में फर्वâ हैं। अन्तर
१. अतिसार रोग में मल पानी जैसा पतला होता १. हैजा में भी दस्त पतले होते हैं।
२. अतिसार के दस्तों में मल होता है २. हैजा के दस्तों में मल नहीं होता।
३. अतिसार के दस्त, लाल—पीले, हरे, काले,
४. हैजा के दस्त चाँवल के धोबन जैसे ही होते हैं। धूमिल प्रभृति अनेक रंग के होते के होते हैं। इसमें मल का न होना मुख्य बात है।
५. हैजा में पैशाब आना बहुधा बन्द हो जाती है। वात, पित्त, कफज आदि अतिसार रोगी को अधिक उबला ठन्डा करके देना चाहिए। ४ किलो जल का १ किलो बचे अति उत्तम है। रोगी को प्यास ज्यादा लगती है। तो उसी जल में उबारते समय ५० ग्राम सौंफ ५० ग्राम नागर मोथा वैंथ बेल १०० ग्राम सौंठ ५० ग्राम पीसकर डाले एवं उबलने पर छानकर पिलाए, रोगी को पूर्ण आराम मिलेगा। आहार में छाछ में कालानमक सौंठ डालकर पिलाएँ। यदि आवश्यक हो तो समा के चावल मठा में उबालकर खीर बनाकर खिलाएँ। परहेज पथ्य— गरिष्ठ, आहार, रोटी, दलिया न दें।
सामान्य ऊपरी अचूक ईलाज
१. केवल बकरी का दूध सेवन कराने से गर्मिणी स्त्री का अतिसार दूर होता है।
२. ३ ग्राम ईश्वगोल को २० ग्राम जल में भिगो दो भोजन के मध्य में देने से गभिर्णी के दस्त ठीक होते है।
३. आम की पुरानी गुठली कि के गोई (भीतर का दल बेलगिरी, लोध और धनिया, तथा इन चारों दवाईयों को बराबर—बराबर लेकर चूर्ण बनाकर छान लें।
प्रयोग विधि— १. चम्मच (चायचम्मच) दवाई का चूर्ण बनाकर बूरा या मिश्री के साथ थोड़ा दही मिलाकर खाने से गर्भावस्था का अतिसार ठीक हो जाता है। पथ्य— हर तरह के दस्तों में हल्का भोजन लाई के फूला, दही छाछ मट्ठा गुणकारी है।
४. सूखा आँवला का चूर्ण, रूमीमस्तंगी, धनिया और छोटी इलायची सबको बराबर—बराबर लेकर चूर्ण कर १ छोटी चम्मच दवा बेल के शर्वत से देना चाहिए। ५. आम की गुठली का आचार रखकर देते रहने से लम्बे समय के दस्त ठीक होते हैं। ६ सौंठ चूर्ण— १ पाव सौंठ के छोटे—छोटे टुकड़े कर लें फिर उसे १ किलो गाय के मुट्ठे छाँछ में २४ घन्टे के लिए ५० ग्राम सेंधानमक पीस डालकर फूलने दें। २४ घन्टे बाद निकालकर धूप में सूखा लें। पश्चात तवे पर घी नमक डालकर भून लें एवं उसे डिब्बे में रखें। २—३ पीस सौंठ दिन में ३—४ बार सेवन से पाचक ठीक होता है। भूख बढ़ती है। जायकेदार है।
बालकों के अतिसार (डायरिया) की चिकित्सा १. कौरेया की जड़, अरण्ड की जड़ रतन जोत की जड़ सम्भाग पीसकर उम्रानुसार मात्रा, थोड़ी सी हींग मिलाकर देने से बालकों के भयंकर अतिसार दूर होता है। (परीक्षत प्रयोग है।) २. यदि मरोड़ देकर दस्त हो तो (वैद्यनाथ कं.) की जन्मघुटी में मरोड़फली देने से लाभ होगा। ३. कड़कड़ा सिंग्गी का चूर्ण २—३ ग्राम सीरा में या छुहारा (खारक) में घोंटकर देने से लाभ होगा। ४. यदि बहुत छोटा बच्चा हो तो बाग में पैदा कपास के फूलों को गरम राख में भूनकर रस निकालो एवं ८— १० बूँद रस या ४—५ बूँद रस पिलाओ तुरन्त आराम होगा। ५. केशर, अफीम, हींग तीनों समान भाग मिलाकर पीसकर (पानी में पीसकर ) बाजरे के बराबर गोली बनालें। १—१ गोली माँ के दूध के साथ देने से बालक का पुराना अतिसार भी ठीक हो जाएगा। ६. छुहारे की गुठली, एवं जायफल और अतीश को लेकर छोटे पत्थर के उरसे पर माँ के दूध में घिसकर थोड़ा—थोड़ा पिलाने से अतिसार ठीक होगा। नोट: डायरिया में बालक को माँ का दूध न पिलाएँ। ७. खसखस दानें को पानी में पीसकर थोड़ा सा दूध मिलाकर खीर खिलाने से दस्त बन्द होते हैं। ताकत भी बढ़ती है। नोट : ६ माह के कम उम्र को नहीं दें। ८. बेलगिरी और सपेâद कत्था बराबर पीसकर माँ के दूध के साथ देने बालक के दाँत निकलते समय के दस्त बन्द हो जाते हैं। ९. चूने का पानी अमृत— खड़े (डिगला) चूने को ५०० ग्राम लेकर मिट्ठी के धुले बर्तन में २—३ किलो गर्म पानी में बुझा दें पश्चात् थोड़ा लकड़ी से घोल दें। उसे १ सप्ताह रखा रहने दें पानी देखते रहे सूखने न पाएँ। फिर उसमें से ऊपर की पपड़ी सी धीरे से अलग कर उसका पानी बालक को १/२ चम्मच दिन में ३—४ बार पिलाएँ बड़े बच्चों को १—१ चम्मच पिलाएँ यह बालकों को अमृत के समान गुणकारी है। केल्सियम की पूर्ति करता है।
१. ५० ग्राम या २५ ग्राम आँवला को महीन पीसो पीछ उस चूर्ण को घी में पीसकर चटनी सी बना लें। फिर दस्त बाल रोगी को चित्त (सीधा) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर उसको एक घेरा सा बनाकर उस दीवार सी में अदरख का रस भर दो कम से कम आधा घन्टे लेटा रहने दो ताकि दवा रस गिरने न पाए। इस उपाय से नदी के प्रवाह जैसे दस्त भी बन्द हो जाते हैं। (आजमूदा नुक्सा है।) इरा आँवला लें। यदि ना हो तो सूखे छोटे आँवले लें। नोट: (जहाँ गीला ताजा आँवला हो तो उत्तम है।)
२. आम की छाल,दही के तोड़ के साथ पीसकर नाभि के चारों ओर लगाने से दस्त बन्द हो जाते हैं।
३. बरगद (बड़) का दूध नाभि में भर देने से चारो ओर लगाने दस्त बन्द होते हैं।
४. आँवलों को घी में सेंककर (भूनकर) पानी में पीसकर नाभि के चारों ओर लगा दो एवं २—३ बूँद नाक में टपका दो। तुरन्त आराम होगा।
५.ये साधन भी जल्दी न मिले तो विक्स (मरहम) नाभि में भर दो और थोड़ी मलकर पेट पर लगाओ एवं अमृतधारा भी भर सकते हो। शीघ्र आराम होगा। पीलिया (पाण्डु) (ज्यौन्डसी) उर्दू में (चरकान) (कामला) रोग सम्बन्धी पीलिया (कामला के लक्षण)इस रोग में नेत्र अत्यन्त पीले हो जाते हैं। चमड़ा नाखून मुँह भी पीला या हल्दी जैसे रंग का हो जाता है। मल—मूत्र का रंग भी पीला या लाल रंग हो जाता है। शरीर का रंग बरसाती मैढक जैसा हो जाता है। इन्द्रियों की सामथ्र्य जाती रहती है, हृदय में जलन होती है, भोजन नही पचता, शरीरा और शिथिल हो जाता है तथा अन्त में अरूचि हो जाती है।
‘चरक’— में लिखा है— हृदय का फडकना, देह का रूखा सा होना, पसीना का न आना,एवं बिना मेहनत किए थकान सी होना ये पीलिया के पूर्व लक्षण हैें। ‘सुश्रुत’— ने लिखा है जब पाण्डु रोग होने वाला होता है तब चमड़े का फटना, मुँह से बारम्बार थूकना, अंगो का भड़कना मिट्टी खाने मे रूचि होना, आँखों पर सूजन आना, मल मूत्र पीला होना अन्न कान पचना— ये लक्षण नजर आते हैं। वाग्भट्ट’ ने भी इसी प्रकार मिलते जुलते लक्षण बताए हैं। ‘माधव निदान’ ग्रन्थ में पाण्डुरोग ५ प्रकार के बताए हैं।— (१) वात का (२) पित्त का (३) कफ का (४) सन्निपात का (५) मिट्ठी का। विशेष विवरण हेतु ग्रन्थों से देखें।
रोग के कारण—अधिक मैथुन करने से अधिक मिर्च तेल खटाई खने से, शराब पीने से, मिट्टी खाने, दिन में अधिक सोने से। पाण्डु रोग की उत्पत्ति होती है। प्राय: कर अन्य सभी रोग इन्ही कारणों से होते हैं।
१.कोष्टाश्रय २. शाखाश्रय नोट— जो कोठे के आश्रय से होता है उसे कोष्ठाश्रय कहते हैं जो रक्तादि धातुओं के आश्रय से होता है। उसे शाखाश्रय कहते हैं। कोठे के आश्रय से होने से जिस तरह घड़े का पेट बड़ा और मुँह छोटा होता है उसी तरह रोगी का पेट बड़ा और मुख छोटा होता है तब उसे ‘कुम्भ कामला’ कहते हैं।
१. लोह भस्म, गोदन्ती भस्म, सौंठ, मिर्च पीपल ओर कंकोल ये सब १०—१० ग्राम लेकर कूट पीसकर कपड़े से या मैदा वाली छन्नी से छान लें। नोट : लोह भस्म अलग रखे इसे सब छनी दवा में बाद में मिला दें। इन सभी चूर्ण के बराबर ‘सोनामक्खी भस्म’ मिला दें। नोट : (यह कोई जीव नहीं है यह भस्म शुद्ध है जैसे—कई रोग जानकारी न होने से ‘गोदन्ती भस्म’ की (गाय के दाँत) भस्म मानकर लेने से मना कर देते हैं। यह भी एक पत्थर की भस्म है। सोना मक्खी को स्वर्णमाक्षिक भी कहते हैं। पूरी दवा एकत्र कर जल में पत्थर की सिल पर पानी मिला घोटें और १—१ रत्ती की गोली बना लें। सेवन विधि—१—१ गोली सीरा के साथ खाने से ऊपर से मट्ठा पीने से पाण्डु रोग शीघ्र ठीक हो जाता है (परीक्षित है) इससे सभी प्रकार के पाण्डु रोग ठीक होते हैं। २. नवासय लौह— सौंठ, मिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा आँवला, नागरमौथा, वायविंडग और चीते की छाल (चितावर) यह वृक्ष की छाल है। सभी द्रव्य एक एक तोला,कूट पीसकर कपड़े से या झोल से छान लो फिर इसमें तीन तोला लोह भस्म मिला दो एवं सभी को एक शीशी या डिब्बे में रख लो। सेवन विधि—३—३ रत्ती दवा सीरा के साथ या घी के साथ (सुुबह—शाम दो बार) सेवन कराएँ। ३. पुनर्नवादि मण्डूर— पुनर्नवा (जड़ी) निशोध, सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, वायविडंग देवदारू, चीता (चितावर) मीठा कूट हल्दी, हर्र, बहेड़ा आँवला, दन्ती, चव्य, इन्द्रजो, कुटकी, पीपरामूल, नागरमोथा, कड़कड़ासिंग्गी, कालाजीरा, अजवाइन, कायफल इन सबको ५०—५० ग्राम लेकर चूर्ण कपड़छन कर लो। इनमें सबके बराबर या २५ ग्राम मण्डूर भस्म मिलाकर, पुराना गुड़ मिलाकर ३—३ रत्ती की गोली बना लें। फिर १से २ गोली उम्रानुसार सुबह शाम खिलाए। सभी प्रकार के पीलिया की रामबाण औषधि है।
१.१ तोला (१० ग्राम ) जायफल को पीसकर २५ ग्राम गुड़ में मिलाकर १/२ (आधा) ग्राम की गोलियाँ बनाकर १—१ घण्टे से १—१ गोली खिलाएँ ऊपर हल्का गरम जल पिलाएँ। इसे बच्चे आराम से खा लेते हैं। तुरन्त लाभ होता है। २. चूने के पानी में बूरा (मिश्री) मिलाकर खिलाएँ। ३. २ से ४ बूँद अमृत धारा पानी में डालकर पिलाएँ। नाभि टलने पर हुए दस्तों की चिकित्सा १. नकछिकनी की राख १ तोला, अजवान १ तोला, सौंठ १तोला तीनों कूटपीसकर छान लेवें इसमें ३ तोला पुरानागुड़ जंगली बेर बराबर छोटी—छोटी गोलियाँ बना लें। १ गोली थोड़े से घी के साथ खाने से तुरन्त आराम हो जाता है। २. फिटकरी १ तोला, माजूफल १ तोला, दोनों महीन पीसकर सिरके में मिलाकर नाभि पर लगा, ऊपर से कपड़े की पट्टी कसकर बाँध दे तो नाभि टलने से दस्तों में आराम हो जाता है। ३. १० ग्राम सौंफ, २० ग्राम गुड़ के साथ खिलाने से नाल (नाभि) हटी हुई अपनी जगह आती है। अतिसार चिकित्सा १. सौंठ, अतीस, बेलगिरी, गिलोय, नागर मोथा, और इन्द्र जो समभाग का काढ़ा पिलाने से ज्वर, अतिसार सूजन सहित ज्वाररितसार नष्ट होता है। २. दशमूल के काढ़े में १ तोला सोंठ का चूर्ण डालकर पीने से ज्वर अतिसार एवं सूजन युक्त संग्रहणी में आराम होता है। ३. इन्द्र जौ, देवदारु, कुटकी, और गजपीपल, समभाग लेकर काढ़ा पीने से ज्वर अतिसार दाह नष्ट होता है। नोट— काढ़ा में ५०० ग्राम पानी डालकर धीमी—धीमी अग्नि पर पकाएँ चौथाई भाग शेष रहने पर छानकर पिलाएँ। ४. सौंठ, अतीस, नागरमोथा, गिलोय, चिरायता, इन्द्रजौ, समभाग लेकर काढ़ा बना लें इसे ‘नागरादि क्वांथ’ कहते हैं। यह भयानक अतिसार को नष्ट करता है।
सुश्रुत आदि मुनियों ने मट्ठे (तक्र) के ४ भेद कहे हैं— १. तक्र २. घोल ३. मथित ४. उदश्वित १. जो मलाई युक्त दही बिना जल के मथा जाता है उसे ‘धोल’ कहते हैं। (यह भारी होता है।) २. जो दही मलाई निकालकर, बिना जल के मथा जाता है उसे ‘मथित’ कहते हैं। ३. जो दही चौथाई भाग जल डालकर मथा जाता है उसे तक्र (मट्ठा) कहते हैं। यह गुणकारी होता है। ४. जो दही आधा जल डालकर मथा जाता है, उसे ‘उदश्वित’ कहते हैं। गुण— मलरोधक, कषौला, खट्ठा, मधुर अग्नि दीपक, उष्णवीर्य, तृप्ति कारक, बात नाशक, दस्त (अतिसार) संग्रहणी रोग में अति गुणकारी है। नोट— जिसमें से सम्पूर्ण घी निकाल लिया हो वह मठ्ठा हल्का, पथ्य कारी होता है। जिसमें थोड़ा घी निकला हो वह भारी होता है। प्रयोग— वात रोग में— सेंधानमक मिलाकर। पित्त रोग में— मट्ठा बूरा मिलाकर प्रयोग करें। कफ रोग में — ज्वाखार, सौंठ कालीमिर्च पीपल का चूर्ण डालकर सेवन करना चाहिए। संग्रहणी अतिसार में— मट्ठे में हींग, जीरा, सेंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए। श्वांस खाँसी में— औटाया (गर्म किया) प्रयोग करें। तक्र की प्रशंसा— १.तक्र सेवन करने वाला कभी रोगी नहीं होता। २. तक्र से नष्ट हुए रोग फिर कभी नहीं होते। जिस तरह स्वर्ग में देवों को अमृत सुखदायी हैं, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को मट्ठा है। तक्र की मनाही— गर्मी के मौसम में घाव वाले रोगी को, दुर्बल को, मूर्छित को, भ्रमित को रक्त पित्त रोगी को को मट्ठा नहीं देना चाहिए।
ग्रीष्म काल में या अन्य समय स्वाभाविक रूप से प्यास लगना अलग बात है किन्तु प्रकृति विरूद्ध बार—बार जल पीने की इच्छा अति तृषा के लक्षण हैं। जिसका उपचार निम्न है— १. सामान्य रूप से बिना दवा खिलाए हलके गीले निचुड़े हुए कपड़ों पर सुलाना। गीली पट्टी सिर एवं गले पर फैरते रहने से तृषा शान्त होती है। (अधिक समय न करें।) २. १०० ग्राम सौंफ ५० ग्राम सूखा आँवला १० ग्राम बड़ी इलायची को पीसकर उसे २ किलो जल में धीमी अग्नि पर औटाएँ ५०० ग्राम शेष रहने पर उतारकर छान लें एवं ठण्डा करके रोगी को १००—१०० ग्राम बच्चों को २—२ चाय चम्मच पिलानें से अतितृषा, एवं वमन (उल्टी) में शीघ्र लाभ होता है। ३. विजौरा नीबू का रस १० ग्राम, घी, १/२ चम्मच, थोड़ा सेंधानमक मिलाकर पीसकर सिर पर लगा दो। जीभ, तालु, कंठ, सूखता हो तुरन्त आराम होगा। आजमुदा है। ४. अनार, बेल लोध, वैथ और बिजौरा नींबू, इनको महीन पीसकर माथे पर लगाने से प्यास की जलन ठीक होती है। ५. ५० ग्राम धनियाँ १ किलो पानी में डालकर धीमी अग्नि से उबालें। २५० ग्राम बचने पर उतार कर ठण्डा होने पर उसमें ५० ग्राम मिश्री एवं घीं १ चम्मच मिलाकर थोड़ा—थोड़ा पिलाएँ तुरन्त आराम होगा। ६. आमला, कमल की जड़ (मुरार) मीठा कूट, धान का छिलका एवं जड़ सझी खार सभी समान भाग लेकर पानी में पीस गोली छोटी—छोटी बनाकर मुँह से चूसने से शीघ्र आराम होता है। ७. सूखा आँवला २० ग्राम और दुधिया कत्था २० ग्राम पीसकर या छोटे—छोटे पीसकर बनाकर मुँह से चूसने से तृषा शान्त होती है। मँुह के छाले भी ठीक हो जाते हैं। ८. बड़ (बरगद) के अंकुर, पठानी लोघ, अनारदाना, मुलेठी, मिश्री बराबर लेकर पीसकर जल से छोटी—छोटी जंगली बेर के बराबर गोलियाँ बना लो, १—१ गोली मुँुह में रख कर चूसते रहें एवं ऊपर से चाँवलोें का धोवन पीने से तृषा शान्त होगी। परीक्षित प्रयोग है। ९. अक्सर गर्मी में बच्चों को (तौंस, प्यास) रोग हो जाता है। इस हेतु २० ग्राम कमलगट्ठे की (हरी पत्ती) निकालकर कूटकर बालक के पीने के पानी में पीसकर डाल दो फिर वही पानी बारम्बार पिलाओं शीघ्रे आराम हो जाएगा। १०. बड़े आदमी को बार—बार प्यास (तौंस) लगती हो तो जंगली कंडो को जलाकर उसकी राख एक काँसे के बर्तन में डालकर, ऊपर से उसमें ठन्डा जल भर दो और उस बर्तन को प्यासे की नाभि पर रख दें। इसके रखते ही जलन मिट जाएगी। ११. कमलगट्ठे को पानी में पीसकर तालू पर लेप करने से प्यास मिट जाती है। १२. किसमिस को जल में पीसकर उसमें थोड़ी मिश्री (बूरा) मिलाकर पिलाने से प्यास शान्त हो जाती है।
नोट— तृषा मेें— गर्म पदार्थों का गर्मी करने वाले अनाज फल, मिर्च आदि न दें। ठन्डे पदार्थ मधुर रसवाले, गन्ना रस, अनार जूस, सेव, मुसम्मी का जूस आदि देना चाहिए।
यदि अति दस्त लगने से कमजोरी के कारण रोगी वृद्ध, बालक के गुदा में दाह हो गुदा पक जाए, या काच (गुदा) बाहर निकलने लगे तो निम्न उपचार करें। १. पटोल पत्र और मुलेठी समभाग का काड़ा बनाकर ठन्डा करके उस पानी से गुुदा धोना एवं सीचने से लाभ होता है। २. गुदा में दाह (जलन) हो पक गई हो तो बकरी के दूध में मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए। ३. गेहूँ के आटे में पानी मिलाकर उसे पकाएँ फिर हल्की गरम गरम गुदा की सैंक करें। ४. कमलनी की कौंपले लाकर सुखा ले फिर कूटकर १/२—१/२ चम्मच खिलाएँ ऊपर से दूध या पानी पिलाएँ। ५. यदि किसी स्त्री की काँच (गुदा) निकल आए तों हुरहुज केफूल (सूरजमुखी) का रस निकाल लें। फिर उसे हाथों में मलकर, गुदा के मुख पर वही हाथ रखें ऐसा ३—४ बार रस लगाएँ अवश्य आराम होगा। ६. अपनी पेशाब (मूत्र) एक बर्तन में रख लो पीछे पखाना जाने के बाद उसी पेशाब से गुदा धोवे और उसके बाद पानी से धोएँ ऐसा करने से ३—४ दिन में गुदा का बाहर निकलना बन्द हो जाती है। ७. यदि गुदा सूज गई हो भीतर न जाती हो तो गुलरोगन को गुदा पर मलो एवं रोगी को हलके गर्म गर्म पानी पर बैठा दो लाभ होगा। ८. गुलरोगन (इत्र बेचने वालों के यहाँ मिलेगा) आम के पत्ते, जामुन के पत्ते, और दोनों की छाल को जो कूटकर, काढ़ा बनाओं उससे गुदा को धोए ठीक होगा। ९. बबूल के पत्ते एवं फली धाय के फूल का काढ़ा बना हलके गरम काड़े को चौड़े बर्तन में रख रोगी को बैठाओ २—३ दिन में गुदा बाहर निकलनी बन्द हो जायेगी।
वर्तमान युग में लगभग दो दशक दौरान अर्श रोग (बवासीर) का रोग बहुतायत से हो रहा है इससे अधिकांश स्त्री/पुरूष परेशान है। इस रोग का प्रमुख कारण— आहार, विहार, संयम, नियम, का पालन न करने से प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर प्रकृति आपके विरूद्ध अपना डालती है। वातादिक दोष—वात, पित्त, कफ, चमड़ा मांस ओर भेद को दूषित करके गुदा में जो माँस के अंकुर (मस्से ) उत्पन्न हो। उनको ही अर्श (बवासीर) कहते हैं। गुदा की बवासीर ही प्रसिद्ध मानी जाती है किन्तु लिंग की सुपाड़ी इन्हें लिङ्गर्श एवं नाक में होने वाली को नासर्श कहते हैं किन्तु चिकित्सक गुदा के मस्सोें को ही बवासीर मानते हैं। नोट— मनुष्य की गुदा मेें तीन आँटे होती है उन्हीं को संस्कृत में आवर्त कहते हैं। या बलि भी कहते हैं। एक आंटा ऊपर, दूसरा नीचे, तीसरा बीच में होता है, ऊपर के आँटे को ‘प्रवाहनी’ कहते हैं। उसका काम मल और हवा को बाहर निकालना है बीच के आँटे या (बलि) का नाम सर्जनी है। उसका काम मल और पवन को बाहर पटकना अर्थात् बाहर फैक देता है। तीसरे आँटे का नाम ग्रहिणी या सँवरणी है। उसका काम मल और हवा को बाहर निकालकर, गुदा को ज्यों का त्यों कर देना है। पहली दूसरी बलियों का परिमाण १ १/२ अंगुल और तीसरी ग्रहणी का एक अंगुल प्रमाण है। बाकी १/२ अंगुल में गुदा द्वार का जो हिस्सा है उसे गुदा का औंठ कहते हैं इन्हीं तीनों में मस्से (अर्श) होती है। बवासीर के साथ मलावरोध या कब्ज की शिकायत लगी हुई रहती है और बवासीर रोग मन्दाग्नि की ही बजह से होता है। जब अन्न अच्छी तरह नहीं पचता है और उसका प्रथक्करण नहीं होता, तभी बवासीर होती है। अत: कुशल बैद्य को बवासीर वाले रोगी को दस्त साफ (पखाना) होने की दवा देनी चाहिए अगर इसका उपाय न करेगा तो रोग ठीक नहीं होगा। बवासीर की चिकित्सा चार प्रकार की होती है— १. औषधि २.क्षार ३. शस्त्र (आपरेशन) ४. अग्नि लेप, स्वेदन, बत्ती से बाहर के आँटे की बवासीर को नष्ट करना चाहिए। अन्तिम आंटे वाली को यानि भीतर वाली बवासीर को दवाओें से नष्ट करना चाहिए।
१. अगर मस्से बाहर दिखते हों, तो सेहुड़ के दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर १—२ बूँद मस्से पर लगाना चाहिए। रोग ठीक होने पर न लगाएँ।
२. औंक (मदार, अकौआ) का दूध पत्ते तोड़ने पर दूध निकलता है उसे मस्से बिना आपरेश के कट जाते हैं। कुछ समय जलन दर्द होगा सो उसमें गरी के तेल में कपूर पीसकर मिलाकर लगाएँ अथवा हेन्डसा, पाईलेक्स, मल्हम लगाते रहें। मस्से जीवन भर को ठीक हो जाएँगे परीक्षित प्रयोग हैं।
३. तौरई की जड़ पीसकर मस्सों पर लेप करें। ४. रूई के डोरे (सूती धागा) पर हल्दी का चूर्ण लगाकर उसक पर सेंहूड का दूध बारम्बार लगाना चाहिए। इसके बाद उसी डोरे (धागे) को मस्सों पर अलग बाँधते जाओ क्रम क्रम से मस्से कट कर गिर जाएँगे।
५. कासीसादि तेल मस्से पर लगाने से मस्से कट जाते हैं। नोट— कोई भी दवा शौच (पखाना) के बाद लगाना चाहिए ताकि देर तक दवा लगी रह सके। डॉक्टर पूर्व एवं वैद्यक ग्रन्थों में जौंक लगाने को लिखते हैं पर यह आज वर्तमान में प्रयोग कोई नहीं करता है। न कराना चाहिए।
विशेष— वबासीर की चिकित्सा करने के पूर्व रोगी को हल्का रेडी तेल (कास्टर आयल) देते हैं। बाद में चिकित्सा करना चाहिए इससे शीघ्र लाभ होता है। अलसी का तेल ५०—५० ग्राम पिलाने से दस्त साफ होता है। मस्से मुरझा जाते हैं। नोट— बवासीर से खून गिरता है तो उसे तुरन्त बन्द नहीं करें खराब खून निकल जाने दें नहीं तो गुदा में रक्त विकार हो जाएगा। इसके बाद खून बंद की चिकित्सा करें।
६. खून बन्द एवं बवासीर की उत्तम चिकित्सा— फिटकरी को पीसकर तवे पर भूने उसमें से पानी—पानी सा निकलेगा तब फिटकरी सूखी हो जाएँ तो उसे उतार कर पीसकर डिब्बे में रख लें। इसी फिटकरी को मस्सों पर लगाएँ एवं १ १/२ ग्राम फिटकरी सीरा से सुबह शाम खाएँ।
७. कल्याण लवण— शुद्ध भिलमा (भिलमा, भल्लातक) त्रिफला, दन्ती की जड़ सभी को बराबर लेकर (समभाग) इन सबके वजन से दूना सेंधानमक लेकर रखो। इन सबको कूट पीसकर नारियल के खप्पतर में भर दो और जंगली कंडो की आग में मन्दाग्नि (धीमी आग) से पकाओ। पक जाने पर उतार कर रख लो। यह नमक बवासीर रोगियों को बहुत हितकारी है।
८. समर्शकर चूर्ण— सौंठ ७ तोले, पीपर ६ तोले, कालीमिर्च ५ तौले (प्रत्येक ग्राम के तौल से ले सकते हैं।) नागकेशर ४ तोले तेजपात ३ तोले इलायची १ तोला मिश्री २० तोले।सभी चूर्ण बनाकर १/२ चम्मच पानी से सेवन करें।
१. इन्द्र जौ, कुड़े की छाल, नाग केशर, नीलकमल, लौध और धाय के फूल—इनके कल्क द्वारा घी पकाकर ( सभी दवाएँ समभाग लेकर कुटे बराबर गरम जल में १२ घण्टे भिगो दें जब वह पूर्ण फूल जाएगी तो चौगुना शुद्ध घीं में धीमी अग्नि से उबालें जलने न पाएँ। घी शेष रहने पर उतार लें इसे २—२ चाय चम्मच सेवन करें खूनी बवासीर चली जाएगी।
२. लालचन्दन, चिरायता, छमासा और सौंठ इनको बराबर लेकर काढ़ा धीमी आँच से पकाएँ और रोज पीने से खूनी बवासीर का नाश करता है।
३. ढाक हल्दी, खस, नीम की छाल का काढ़ा खूनी बवासीर का नाश करता है।
४. लाजवन्ती, कमलगट्ठा, मोचरस, लोघ, चन्दन समभाग लेकर बकरी के दूध में औंटकर पीने से खूनी बवासीर जाती है। खून गिरना बन्द हो जाता है परीक्षत प्रयोग।
५. नीम की निबौलियाँ, रसौल, हरड़ तीनों का समभाग कूट पीसकर छानकर गुलाब जल में घोंटकर छोटे बेर बराबर गोली बनाकर सुखा लो। २—२ गोली सुबह—दोपहर शाम पानी के साथ सेवन करने से बवासीर निश्चित शान्त हो जाती है परीक्षित है।
६ .पकी नीम की निबौली— पीसकर पुराने गुड़ में मिलाकर गोली खाने से बवासीर ठीक होगी।
७. नीम के मद को पिचकारी में भरकर गुदा को ३—४ बार धोने से भी बवासीर ठीक होती है।
८. हरड़ में घी में भूनकर, उसमें गुड़ और पीपल का चूर्ण मिलाकर (गुड़ दो गुना) हरड़ पीपल बराबर १ तोला दवा गरम जल से सेवन करने से दस्त साफ होता है। बवासीर ठीक होती है।
९. हुलहुल (सूरजमुखी) के बीज २ तोला शक्कर ४ तोला मिलाकर पीसकर भर खुराक सुबह—शाम लेने से खूनी वादी दोनों बवासीर ठीक हो जाती है।
१०. रसौत १०० ग्राम, अनार की छाल, २०० ग्राम गुड़ ४०० ग्राम पहले रसौत एवं अनार की छाल को महीन पीसकर छानकर फिर गुड़ में मिलकर गोलियाँ जंगली बेर बराबर सेवन करें दोनोें तरह की बवासीर नष्ट होगी।
११. अद्भुत प्रयोग— गाय दूध ५०० ग्राम कटोरे में लेकर मँुह के पास रखें और एक घूँट पीए। उसी समय कोई दूसरा आदमी तुरन्त एक या आधा नींबू (कागजी नींबू) का रस दूध में ठपका दें और रोगी झट से पी जाएँ, (एक सेकेण्ड भी देर न करें।) इससे ३ दिन मे ही चमत्कारिक लाभ होता है।
१२. बबूल की पतली फलियाँ जिसमें बीज न पड़े हो, छाया में सुखा लो, फिर कूट पीसकर छान लो, १५ दिन तक चाय चम्मच चूर्ण जल के साथ खाने से सब तरह की बवासीर ठीक होती है।
१३. निमर्ली के फल को जलाकर राख कर लो, १ चम्मच चूर्ण १ चम्मच बूरा (शक्कर) मिलाकर १५ दिन तक खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।
१. पिसी हल्दी और कड़वी तुरई दोनों मिलाकर लेप करने से सब तरह के मस्से नष्ट करता है।
२. आँक के पत्ते और सहजन (सौजना, मुनगा) के पत्तों को पीसकर लेप भी मस्सों को नष्ट करता है।
३. नीम और कनेर के पत्तों को पीसकर लेप करने से मस्से नष्ट होते हैं।
४. सेहुंड के दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर एक बूँद मस्से पर लगाने से मस्सा नष्ट होता है ।
नोट—सभी प्रयोग परीक्षित हैं शौच (परवाना) के बाद लगाएँ ताकि लेप/दक्ष देर तक लगी रह सके। ५. थूहर का दूध मस्सों पर लगाने से मस्से नष्ट होते हैं।
६. हरी कनेर की जड़ पानी में पीसकर शौचालय में ले जाओ पखाने करते समय मसे बाहर निकल आते हैं। तुरन्त लगा दो। दो दिन में मस्से नष्ट हो जाएँगे।
नोट— कोई दवा लगाने पर मस्से फूटने पर पीड़ा करती है डरे नहीं बाद में कोई भी (सौफा रामाईसीन आदि टयूब लगा लें। धीरे—धीरे दर्द शान्त हो जाएगा। जो अंग्रेजी दवा खाते हैं। वे दर्द नाशक १—१ गोली सुबह/शाम दूध से ले सकते है।
७. कड़वी नीम का तेल १ ग्राम में ३ ग्राम नीलाथोथा पीसकर मिलाकर मस्सों पर थोड़ा—थोड़ा लगाएँ सभी मस्से गलकर नष्ट हो जाते हैं।
दो तोले महीन हल्दी पीसकर थूहर के दूध की भावना देकर अच्छा बटा सूती मजबूत सूत उसमें डुबो दो तीन दिन तक डूबा रहने के बाद चौथे दिन, उसे छाया में सुखा लो। फिर उस धागे को बवासीर के मस्सों पर कसकर बाँध दो। सभी मस्से कटकर क्रमश: गिर जाएँगे। भगन्दर की गाँठ भी ठीक हो जाती है। २५ बिच्छू (एक काँटेदार फल) पंसारी के यहाँ मिलता है सरसों के तेल में डालकर ४० दिन तक धूप में रखो बाद में इस तेल को मस्सों पर लगाओ पीड़ा सहित बवासीर ठीक होती है। और भी काले तिल (तिली) बल के अनुसार २० ग्राम से ५० ग्राम तक नित्य सबेरे खाकर जल पीने से बवासीर नष्ट होती है। दाँत मजबूत होते हैं। और शरीर पुष्ट होता है। काले तिल २—१/२ ग्राम नागकेशर २—१/२ ग्राम और मिश्री ५ ग्राम पीसकर १ खुराक हैं। प्रतिदिन सुबह—शाम से खूनी बवासीर में लाभ होगा।