णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।।१।।
इस महामंत्र में पांच पद हैं और पैंतीस अक्षर हैं। णमो अरिहंताणं ७ अक्षर, णमो सिद्धाणं ५, णमो आइरियाणं ७, णमो उवज्झायाणं ७, णमो लोए सव्वसाहूणं ९ अक्षर, इस प्रकार इस मंत्र में कुल ३५ अक्षर हैं।
अर्थ — लोक में जितने भी अरिहंत परमेष्ठी हैं, उन सभी अरिहंतों को नमस्कार होवे। लोक में सभी सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार होवे। लोक में जितने भी आचार्य हैं, उन सभी आचार्य परमेष्ठी को नमस्कार होवे और लोक में जितने भी उपाध्याय हैं उन सभी उपाध्याय परमेष्ठी को नमस्कार होवे और लोक में जितने भी साधु हैं, उन सभी साधु परमेष्ठी को नमस्कार होवे। अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये चार परमेष्ठी ढाईद्वीपों तक ही होते हैं एवं सिद्धशिला पर विराजमान सिद्ध परमेष्ठी भी ढाईद्वीप प्रमाण की सिद्धशिला के अग्रभाग पर ही विराजमान हैं। अत: ‘लोक’ शब्द से यहाँ ढाईद्वीप तक ही लेना है। ‘सर्व’ शब्द से त्रैकालिक सर्व को लेना है। ऐसा कथन धवला पुस्तक—१ पृ. ५३ पर आया है। अर्थात् ये ‘लोक’ व ‘सर्व’ पद अन्त्यदीपक माने हैं। इसलिये इन्हें पांचों परमेष्ठी के साथ लगाना चाहिये। यहाँ आचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीनों ही नग्न दिगम्बर मुद्राधारी मुनि ही माने गये हैं। यह णमोकार महामंत्र अनादि निधन—शाश्वत महामंत्र है। ऐसे ही चत्तारि मंगल पाठ भी अनादिनिधन—शाश्वत है। ये दो पाठ अनादिनिधन माने गये हैं।