‘ॐ’ प्रणवमंत्र में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु ये पांचों परमेष्ठी समाविष्ट हैं। ऐसे ‘ॐ’ के जाप्य से, ध्यान से व पूजा से सर्व मनोरथ सफल हो जाते हैं। ओम् का अर्थ है—
अरिहंता असरीरा, आइरिया तह उवज्झाया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पण्णो, ओंकारो पंच परमेट्ठी।
अर्थ—अरिहंत का प्रथम अक्षर ‘अ, अशरीर (सिद्ध) का ‘अ’, आचार्य का ‘आ’, उपाध्याय का ‘उ’, और मुनि (साधु) का ‘म्’ इस प्रकार पंचपरमेष्ठियों के प्रथम अक्षर (अ + अ + आ + उ + म्) को लेकर कातन्त्र व्याकरण के सूत्र ‘समान: सवर्णे दीर्घी भवति परश्च लोपं’ और ‘उवर्णे ओ’ सूत्र से संधि करने पर ‘ओम्’ मंत्र सिद्ध होता है। पुन: ‘विरामे वा’ सूत्र से म् का अनुस्वार होकर ‘ॐ’ शब्द बनता है।
भजन – ॐकार बोलो
तर्ज—तन डोले……
ॐकार बोलो, फिर आँखें खोलो, सब कार्य सिद्ध हो जाएँगे,
नर जन्म सफल हो जाएगा।। टेक.।।
प्रात:काल उषा बेला में, बोलो मंगल वाणी।
हर घर में खुशियाँ छाएँगी, होगी नई दिवाली।। हे भाई……
प्रभु नाम बोलो, निजधाम खोलो, सब कार्य सिद्ध हो जाएँगे।
नर जन्म सफल हो जाएगा।। ॐकार……।।१।।
परमब्रह्म परमेश्वर की, शक्ती यह मंत्र बताता।
णमोकार के उच्चारण से, अन्तर्मन जग जाता।। हे भाई……
नौ बार बोलो, सौ बार बोलो, सब कार्य सिद्ध हो जाएँगे,
नर जनम सफल हो जाएगा।। ॐकार……।।२।।
ॐ शब्द का ध्यान ‘चंदना-मति’ मन स्वस्थ बनाता।
इसके ध्यान से मानव इक दिन, परमेष्ठी पद पाता।। हे भाई……
नौ बार बोलो, सौ बार बोलो, सब कार्य सिद्ध हो जाएँगे।
—शिखरिणी छंद—
णमो अरिहंताणं, नमन है अरिहंत प्रभु को। णमो सिद्धाणं में, नमन कर लूँ सिद्ध प्रभु को।।
णमो आइरियाणं, नमन है आचार्य गुरु को। णमो उवज्झायाणं, नमन है उपाध्याय गुरु को।।।१।।
णमो लोए सव्वसाहूणं पद बताता। नमन जग के सब, साधुओं को करूँ जो हैं त्राता।।
परमपद में स्थित, कहें पाँच परमेष्ठि इनको। नमन इनको करके, लहूँ इक दिन मुक्तिपद को।।२।।
सभी के पापों को, शमन करता मंत्र यह ही। तभी सब मंगल में, प्रथम माना मंत्र यह ही।।
जपें जो भी इसको, वचन मन कर शुद्ध प्रणति। लहें वे इच्छित फल, हृदय नत हो ‘चन्दनामति’।।३।।