उववणवाविजलेणं सित्ता पेच्छंति एक्कभवजाइं।
तस्स णिरिक्खणमेत्ते सत्तभवातीदभाविजादीओ।।८०८।।
उपवन की वापिकाओं के जल से अभिषिक्त जनसमूह एक भवजाति को देखते हैंं और उसके निरीक्षणमात्र के होने पर अर्थात् वापी के जल में निरीक्षण करने पर सात अतीत व अनागत भवजातियों को देखतें हैं।।८०८।। (तिलोयपण्णत्ति,पृ॰ २४८)