तित्थयरा तग्गुरओ चक्कीबलकेसिरुद्दणारद्दा।
अंगजकुलयरपुरिसा भविया सिज्झंति णियमेणं।।१४७३।।
तीर्थंकर, उनके गुरुजन (माता-पिता), चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, रुद्र, नारद, कामदेव और कुलकर पुरुष, ये सब भव्य होते हुए नियम से सिद्ध होते हैं।।१४७३।।
णिव्वाणे वीरजिणे वासतये अट्ठमासपक्खेसु।
गलिदेसुं पंचमओ दुस्समकालो समल्लियदि।।१४७४।।
वीर भगवान् को निर्वाण होने के पश्चात् तीन वर्ष, आठ मास और एक पक्ष के व्यतीत हो जाने पर दुष्षमाकाल (पंचम काल) प्रवेश करता है।।१४७४।।