दशरथ के पिता राजा अनरण्य ने अपने छोटे पुत्र अनन्तरथ के साथ दीक्षा ली थी
दूतात्तत्प्रेषिताज् ज्ञात्वा तद्वृत्तान्तमशेषतः।
मासजाते श्रियं न्यस्य नार्यौ दशरथे भृतम्।।१६६।।
सकाशेऽभयसेनस्य निग्र्रन्थस्य महात्मनः।
राजानन्तरथेनामा प्रवव्राजातिनिः स्पृहः।।१६७।।
अनरण्योऽगमन्मोक्षमनन्तस्यन्दनो महीम्।
सर्वसङ्गविनिर्मुक्तो विजहार यथोचितम्।।१६८।।
अत्यन्तदुस्सहैर्योगी द्वािंवशतिपरीषहै:।
न क्षोभितस्ततोऽनन्तवीर्याख्यां स क्षितौ गतः।।१६९।।
वपुर्दशरथो लेभे नवयौवनभूषितम्।
शैलकूटमिवोत्तुङ्गं नानाकुसुमभूषितम्।।१७०।।
दीक्षा धारण करने के पहले उसने राजा अनरण्य के पास दूत भेजा था सो उससे सब समाचार जानकर राजा अनरण्य, जिसे उत्पन्न हुए एक माह ही हुआ था ऐसे दशरथ के लिए राज्यलक्ष्मी सौंपकर अभयसेन नामक निग्र्रंन्थ महात्मा के समीप ज्येष्ठ पुत्र अनन्तरथ के साथ अत्यन्त निःस्पृह हो दीक्षित हो गया।।१६६-१६७।। अनरण्य मुनि तो मोक्ष चले गये और अनन्तरथ मुनि सर्व प्रकार के परिग्रह से रहित हो यथायोग्य पृथ्वी पर विहार करने लगे ।।१६८।। अनन्तरथ मुनि अत्यन्त दुःसह बाईस परिषहों से क्षोभ को प्राप्त नहीं हुए थे इसलिए पृथिवी पर ‘अनन्तवीर्य’ इस नाम को प्राप्त हुए ।।१६९।। अथानन्तर राजा दशरथ ने नवयौवन से सुशोभित तथा नाना प्रकार के फूलों से सुभूषित पहाड़ के शिखर के समान ऊँचा शरीर प्राप्त किया ।।१७०।।