स दिव्यध्वनिना विश्वसंशयच्छेदिना जिन:।
दुन्दुभिध्वनिधीरेण योजनान्तरयायिना।।९०।।
श्रावणस्यासिते पक्षे नक्षत्रेऽभिजिति प्रभु:।
प्रतिपद्यह्मि पूवाह्ने शासनार्थमुदाहरत्।।९१।।
तदनन्तर श्रीवर्धमान प्रभु ने श्रावण मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के प्रात:काल के समय अभिजित नक्षत्र में समस्त संशयों को छेदने वाले, दुन्दुभि के शब्द के समान गम्भीर तथा एक योजन तक फैलने वाली दिव्यध्वनि के द्वारा शासन की परम्परा चलाने के लिए उपदेश दिया।।९०—९१।।
(हरिवंशपुराण,सर्ग-२,पृ॰ १९)