अर्थ-जो पुष्प हाथ से गिर गया हो, पृथ्वी पर गिर पड़ा हो, पैर से छू गया हो, मस्तक पर धारण कर लिया गया हो, अपवित्र वस्त्र में रक्खा गया हो, दुष्ट मनुष्यों के द्वारा स्पर्श किया गया हो, घन से छिन्न-भिन्न किया गया हो और कांटों से दूषित हो ऐसे पुष्पों का त्याग कर देना चाहिये अर्थात् भगवान् की पूजा करने में ऐसे पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिये ऐसा गणधरादि विद्वान् पुरुषों ने कहा हेै।
स्पृश्य शूद्रादिजं स्पृश्यमस्पृश्यादपसारितम्।
पुष्पं देयं महाभक्त्या न तु दुष्टजनैर्धृतम्।।१३२।।
अर्थ-स्पृश्य शूद्र के हाथ से लाये हुए पुष्प ग्राह्य हैं तथा अस्पृश्य शूद्र के हाथ से लाये हुए पुष्प त्याज्य हैं। पुष्प भगवान् के चरणों पर बड़ी भक्ति से चढ़ाना चाहिये परन्तु दुष्टजनों के हाथ से लाये हुए पुष्प कभी नहीं चढ़ाने चाहिये।