आमगोरससंपृत्तं द्विदलं द्रोणपुष्पिका।
संधानकं कलिंगं च नाद्यते शुद्धदृष्टिभिः।।३११।।
अर्थ- कच्चा दूध, कच्चा दही और कच्चे दूध के जमाये दही की छाछ में यदि उड़द,मूंग,चना आदि (जिनकी दो दालें हो सकती हैं) द्विदल को खाने से लार के संयोग से उसमें त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिये शुद्ध सम्यग्दृष्टियों को ऐसा दही आदि का मिला हुआ द्विदल कभी नहीं खाना चाहिए। इसी प्रकार मर्यादा के बाहर का दूध, दही भी नहीं खाना चाहिये। द्रोणपुष्प अचार, कलिंग आदि पदार्थ भी उनको कभी नहीं खाने चाहिये। (उमास्वामी श्रावकाचार पृ. १०५)