जो कितने ही आचार्य सोलह कल्पों को स्वीकार करते हैं उनके मतानुसार मैं उस—उस कल्प में (प्रत्येक कल्प में) विमानों के प्रमाण को कहता हूं।।३६।। उक्त विमानों की संख्या प्रथम कल्प में बत्तीस लाख (३२०००००), ऐशान कल्प में अट्ठाईस लाख (२८०००००), तृतीय सनत्कुमार कल्प में बारह लाख (१२०००००) माहेन्द्र कल्प में आठ लाख (८०००००),ब्रह्म कल्प में छ्यानवे से अधिक दो लाख (२०००९६),ब्रह्मोत्तर कल्प में उससे (२०००९६) हीन चार लाख (४०००००-२०००९६·१९९९०४), लान्तव कल्प में ब्यालीस अधिक पच्चीस हजार (२५०४२), आगे के कापिष्ठ कल्प में इनके बिना पचास हजार अर्थात् चौबीस हजार नौ सोै अट्ठावन (५००००-२५०४२·२४९५८), शुक्र कल्प में बीस हजार बीस (२००२०), महाशुक्र में उनके बिना चालीस हजार अर्थात् उन्नीस हजार नौ सौ अस्सी (४००००-२००२०·१९९८०), शतार में तीन हजार उन्नीस (३०१९), सहस्रार में एक कम तीस सौ इक्यासी,(२९८१) आनत युगल में चार सौ चालीस(४४०) और आरण-अच्युत युगल में दो सौ साठ (२६०) हैं।।४२।। मतान्तर— आनत और प्राणत इन दो कल्पों में शुद्ध चार सौ(४००) तथा आरण-अच्युत युगल में शुद्ध तीन सौ (३००) विमान हैं, ऐसा दूसरे आचार्य कहते है।।४३।।