अब परमाणोरविभागप्रतिच्छेदरूपशक्तिसमूहो वर्ग इत्युच्यते। वर्गाणां समूहो वर्गणा भण्यते। वर्गणासमूहलक्षणानि स्पद्र्धकानि च कानिचिन्न संति। अथवा कर्मशक्तेः क्रमेण विशेषवृद्धिः स्पद्र्धकलक्षणं। तथा चोक्तं वर्गवर्गणास्पद्र्धकानां त्रयाणां लक्षणं- ‘‘वर्गः शक्तिसमूहोऽणोर्बहूनां वर्गणोदिता। वर्गणानां समूहस्तु स्पद्र्धकं स्पद्र्धकापहैः।।
परमाणु के अविभाग प्रतिच्छेदरूप शक्ति के समूह को वर्ग कहते हैं और वर्गों के समूह को वर्गणा कहते हैं तथा वर्गणा के समूह को स्पर्धक कहते हैं अथवा कर्म की शक्ति में क्रम से विशेष-विशेष वृद्धि होना स्पर्धक का लक्षण है। इसी प्रकार से वर्ग,वर्गणा और स्पर्धक इन तीनों का लक्षण कहा गया है- अणु की शक्ति समूह का नाम वर्ग हेै, बहुत से वर्गों का समूह वर्गणा है और वर्गणाओं के समूह का नाम स्पर्धक है ऐसा स्पर्धकों के नष्ट करने वाले जिनेन्द्रदेव ने कहा है। ये वर्ग,वर्गणा और स्पर्धक निश्चयनय से कुछ भी जीव के नहीं हैं। (समयसार पूर्वार्ध पृ. २११, २१२)