विश्वेश्वरादयो ज्ञेया, देवता शांतिहेतवे। क्रूरास्तु देवता: हेया, येषां स्याद्वृत्तिरामिषै:।।
अर्थ-जिनागम में विश्वेश्वर, चक्रेश्वरी , पद्मावती आदि देवता शांति के लिए बतलाये हैं। परन्तु जिन पर बलि चढ़ाई जाती है, जीव मारकर चढ़ाये जाते हैं ऐसे चंडी, मुंडी आदि देवता त्याग करने योग्य है । इसका भी खुलासा इस प्रकार है-
मिथ्यात्वपूरिता: व्रूरा:, सशस्त्रा: सपरिग्रहा:। निंद्या आमिषवृत्तित्वान्मद्यपानाच्च हीनका:।।१।।
कुदेवाश्च ता ज्ञेया ब्रह्मोमाविष्णुकादय:। प्रतिपत्तिश्च तासां हि, मिथ्यात्वस्य च कारणम्।।२।।
तस्माद्धेया: कुदेवास्ते, मिथ्याभेषधरावहा:। ग्राह्या: सम्यक्त्वसम्पन्ना, जिनधर्मप्रभावका:।।३।।
चक्रेश्वर्यादिदिक्पाला, यक्षाश्च शांतिहेतवे। सम्यग्दर्शनयुक्तत्वात्ते पूज्या जिनशासने।।४।।
जो देव मिथ्यात्वी क्रूर-हिंसक हैं, शस्त्र, परिग्रह सहित हैं, माँस की, मद्य की वृत्ति होने से निंद्य हैं ऐसे देवता हीन हैं अत: ये हेय हैं इनसे अतिरिक्त सम्यक्त्व से संपन्न जिनशासन की प्रभावना करने वाले देवता ग्राह्य हैं-मान्य है। ऐसे चक्रेश्वरी आदि शासनदेवी-देवता, दिक्पाल, क्षेत्रपाल आदि तथा यक्ष आदि देवता शांति के लिए हैं। ये सम्यक्त्वी होने से जिनशासन में पूज्य माने गये हैं।
(उमास्वामी श्रावकाचार पृ. २९ पर मंत्र प्रदीप के श्लोक)