संभव है कि किन्हीं कारणों से आप कान की मैल के बारे में ना जानना चाहते हों लेकिन सच बात तो यह है कि यह चिपचिपा पदार्थ वास्तव में बहुत कुछ आपके बारे में बताता है। उल्लेखनीय है कि इन बातों का संबंध केवल आपके निजी स्वास्थ्य विज्ञान (पर्सनल हाइजीन) से नहीं है। पर इसके साथ यह भी सच है कि कान की मैल को लेकर बहुत सारे पक्ष में तर्क हो सकते हैं लेकिन इनकी हमें जानकारी नहीं है। उदाहरण के लिए कि यह कान में क्यों पाई जाती है। इसको लेकर बहुत सारे सिद्धांत और तथ्य हैं जिन्हें स्वीकार करने की जरूरत है।
१. इस मैल के कारण कानों के अंदर खुजली नहीं हो पाती है। इसलिए कहा जा सकता है कि कान की मैल का एक व्यवहारिक पक्ष यह भी है कि इससे कानों में चिकनाई बनी रहती है और इस कारण से कान के अंदर के हिस्सों में खुजली नहीं होने पाती है।
२. यह कानों को स्वच्छ भी रखती है इस मैल के निर्माण का कारण चिकनाई पैदा करने वाले स्राव, त्वचा की मरी हुई कोशिकाएं, गंदगी और धूल का सम्मिश्रण है। जब यह सब आपके कान के अंदरूनी हिस्सों में ही रोक दिया जाता है। भले ही आप इस पर विश्वास करें या नहीं, तथ्य यह है कि यह अपने आप ही खुद को साफ कर लेती है। आपके निचले जबड़े में कोई भी गतिविधि, चाहे आप बात कर रहे हों या चबा रहे हों तो यह क्रिया मैल को ऊपर की ओर धकेलती है। इसके लिए आपको कॉटन के फाहे की जरूरत नहीं होती है। वास्तव में कान की मैल साफ करने की कोशिश अच्छी होने की बजाय बुरी साबित होती है। अगर मैल को निकालने के दौरान कान की नली में और गहरे धकेल दिया जाता है तो यह नुकसानदेह होती है।इसलिए ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि आपको कान की मैल को तब तक छेड़ना नहीं चाहिए जब तक कि आप यह महसूस नहीं कर रहें हों कि बाहरी कान में बहुत अधिक मैल है। कान में बहुत अधिक मैल होने से सुनाई देने में असर पड़ता है।
३. आपकी मैल आपके पसीने के बारे में जानकारी देती है हफपोस्ट में प्रकाशित एक लेख के अनुसार कुछ लोगों के कान में गीली मैल निकलती है तो किसी के कान में सूखी मैल निकलती है। सफेद और परतदार मैल का अर्थ है कि आपके पसीने में कुछ ऐसे रसायन नहीं है जो कि आपके शरीर की गंध को तय करते है। गहरे रंग की और चिपचिपी मैल का अर्थ है कि आपको डियोडोरेंट का उपयोग करना चाहिए।
४. विभिन्न प्रजातियों की मैल अलग—अलग होती है सूखी और गीली मैल का अर्थ है कि इसका संबंध आपके पूर्वजों से हो सकता है और यह बात हाल के एक सर्वेक्षण से साबित हुई है। मोनेल सेंटर के शोधकर्ताओं ने पाया कि पसीने की तरह कान की मैल में भी प्रजातियों के रसायन अलग—अलग पाए जाते हैं और गंध पैदा करने वाले जो अणु या कण होते हैं प्रवेश करने की कोशिश करते हैं तो इन्हें कान के बाहरी हिस्से में वे पूर्वी एशियाइयों की तुलना में कॉकेशियन्स अधिक होते हैं।
५. तनाव या डर से कान की मैल का उत्पादन बढ़ जाता है। कान में पाई जाने वाली जो ग्रंथियां मैल को पैदा करने में मदद देती हैं वे एपोक्राइन ग्रंथियां कहलाती हैं। यही ग्रंथियां आपके शरीर के पसीने में पाई जाने वाली गंध को पैदा करती है। जैसे कि तनाव के कारण आपको अधिक पसीना आता है उसी तरह से आपके पसीने की गंध अधिक तेज होती जाती है। साथ यह डर जैसी मजबूत भावनात्मक प्रतिक्रिया से भी कान की मैल का उत्पादन बढ़ जाता है । इस बात को अमेरिकन स्पीच—लैवेज—हीयरो असोशिएशन ने भी माना है।
६. इसे कभी ना आजमाएं अगर आप कान साफ करने के लिए रूई के फाहे का इस्तेमाल करने जा रहे हों तो कृपया ऐसा न करें। इसलिए कान में मोमबत्ती जलाकर मोम डालने से भी मैल नहीं निकलेगी। एफडीए इस मामले में चेतावनी देती है कि ऐसा करने से न केवल कान की नली बंद हो सकती है वरन कान का पर्दा भी फट सकता है। अगर वास्तव में कान की मैल को हटाना चाहते हो तो गर्म पानी से ऊपर—ऊपर साफ करें और अपने कानों को शॉवर में कभी कभी रखें। इस तरीके से कान में जमा कड़ी से कड़ी मैल को गर्म किया जा सकता है और उसे ढीला बनाया जा सकता है।