जय जिनेन्द्र । आप सभी ने ‘कालसर्प योग’ के विषय में सुना होगा और ज्यादातर लोग यह बात सुनकर डर जाते हैं कि उनकी कुण्डली में कालसर्प योग है। क्या वे लोग यह जानते हैं कि वास्तव में कालसर्प योग होता क्या है ? और इस योग के होने से उन्हें क्या परेशानी हो सकती है? और क्या हमेशा ही कुण्डली में कालसर्प योग होना बुरा है ? ऐसे बहुत से विचार हमारे मन में आते तो हैं परन्तु हम इन्हें जान नहीं पाते या कई बार हमें सही मार्गदर्शन नहीं मिलता । ज्यादातर विद्वान कालसर्प योग के नाम पर डरा कर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करवाने को कहते हैं परन्तु हम ये भी नहीं जान पाते कि उन अनुष्ठानों को करने के पश्चात् कालसर्प दोष खत्म हुआ भी है या नहीं या अब उसका कोई भी प्रभाव हमारे ऊपर है या नहीं ?
कालसर्प दोष क्या है ?
जन्मकुण्डली में जब सभी ग्रह यानि सातों ग्रह (सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र,शनि) राहू और केतु के मध्य में आ जाएं तो उस स्थिति में कालसर्प नामक योग बनता है। सामान्यत: ऐसा कहा जाता है कि इस योग में उत्पन्न जातक को व्यवसाय, धन, परिवार एवं संतान आदि के कारण अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि कालसर्प से पीड़ित व्यक्ति को जीवन में सफलता नहीं मिल सकती ।
कालसर्प योग
अनेक प्रसिद्ध लोगों की कुण्डली में ये योग है परन्तु फिर भी वे बहुत प्रसिद्ध हुए, जैसे— पं. जवाहरलाल नेहरू जी, हिटलर, लता मंगेशकर आदि । वास्तव में राहू—केतु छाया ग्रह हैं । राहू का देवता काल है और केतु का देवता सर्प है। कालसर्प योग के प्रभाव के कारण प्रत्येक कार्य में विघ्न—बाधाएं तथा आर्थिक उन्नति में बाधाएं रहती हैं। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि कुण्डली में केवल कालसर्प दोष ही प्रभावित कर रहा हो, दशा व गोचर का भी मुख्य प्रभाव हो सकता है । कुण्डली में बैठे अन्य शुभयोग जातक को आश्चर्यजनक सफलताएं दिला सकते हैं । यह योग किसी भी व्यक्ति की चाहे स्त्री हो पुरूष गरीब या अमीर की कुण्डली में हो सकता है । मुख्यत: इस योग के प्रभावस्वरूप मनुष्य अपनी अन्तर्मन की शक्तियों का पूर्णतया उपयोग नहीं कर पाता अथवा सब प्रकार की सुखसुविधा होते हुए भी मानसिक तनाव व असंतोष बना रहता है। कालसर्प योग बारह प्रकार का हो सकता है—