मद्यपान की अनर्थता का वर्णन करते हुए कहा है— १. मद्यपान से शरीर कुरूप और बेडौल बनता है, २. शरीर व्याधिग्रस्त बनता है, ३. स्वजन की ओर से तिरस्कर मिलता है, ४. कार्य के लिए उचित समय नष्ट हो जाता है।, ५. द्वेष उत्पन्न होता है। ६. ज्ञान का नाश होता है। ७. ८. स्मृति और बुद्धि का नाश होता है, ९. सज्जनों का वियोग होता है। १०. वाणी में कठोरता , कर्वशता आती है, ११. नीच पुरूषों की सेवा करनी पड़ती है, १२. कुल की निन्दा होती है। १३. शारीरिक शक्ति का हास होता है। १४.१५.१६. धर्म—अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थों की हानि होती है।
शराब का नशा भान भुलाता है
शराब के दैत्य की भयंकरता का वर्णन करते हुए रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक कहानी लिखी है।— जैक्शन और जोसफ दोनों मित्र थे। वे दोनों एक दूसरे से बारम्बार मिलते रहते थे। जोसफ के दिल में अपने मित्र के प्रति ईष्र्या की भावना थी और इस दुर्भावनापूर्ण वृत्ति के कारण वह मित्र के जीवन को खतरे में डालना चाहता था। एक बार जोसफ ने जेक्सन को कहा — मेरी तीन बातों में एक बात स्वीकार करो। जेक्सन ने जोसफ को वचन दिया। जोसफ ने कहा— (१) अपनी पत्नी का खून करो। (२) पिता को मारो और (३) शराब पिओ। जेक्शन ने इन तीनों बातों को ध्यान से सुना और सोचने लगा क्या करूं ? पत्नी की हत्या करना व पिता को मारना ठीक नहीं है, अत: शराब पीना स्वीकार कर लूं। जोसफ ने जेक्शन को पेट भर कर शराब पिलाई। शराब के नशे में वह घर आया और जैसे तैसे बकवास करने लगा। पिता ने समझाने की कोशिश की तो वह पिता को ही मारने लग गया। उसकी पत्नी बीच में आई तो उसके पेट में भी छुरी भोंक दी। तत्काल पत्नी की मृत्यु हो गई। शराब के एक पाप ने उससे तीनों पाप करा लिए।
मेरे कफन के लिए मांगे तो भी……
उस धोबी को शराब पीने की आदत थी। जितना भी पैसा हाथ लगता, सब शराब में साफ हो जाता था। परिवार में तीन बच्चे थे। उसकी पत्नी बड़ी कठिनाई से अपने परिवार का गुजारा चला रही थी। धोबन अपने सेठ के घर जाकर उससे बोली — सेठ जी। बीस रूपये दे दीजिए, बच्चे की फीस देनी है, धुलाई में काट देंगे। सेठ ने कहा—अभी तेरा पति २५ रूपये लेकर गया है। धोबिन ने अपना माथा पिट लिया और बोली —सेठजी, बड़ी भूल हो गई आप से। आप उसके स्वभाव को नहीं जानते हैं, उसे शराब की बुरी लत है, सब रूपये बर्बाद हो गए। मेरी विनती है कि वह मेरे कफन के लिए भी आपसे रूपये मांगे तो मत देना, मैं बड़ी कठिनाई से अपने बच्चों का गुजारा चलाती हूं। शराब और राष्ट्र भारतीय संविधान में कहा है— राज्य अपनी जनता के पोषक भोजन और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा तथा विशेषतया स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक पेयों और औषधियों के, औषधियों प्रयोजनों के अतिरिक्त उपभोग का निषेध करने का प्रयास करेगा। —भारतीय संविधान धारा ४७ भारत का संविधान शराब के प्रचार— प्रसार का स्पष्ट निषेध करता है, फिर भी आश्चर्य है कि इस देश की सरकार शराब को खुले आम प्रोत्साहन दे रही है। अनेक राज्यों में जहां शराब बंदी थी, उसे भी धन के लोभ में आकार समाप्त किया जा रहा है। कितनी दु:खद स्थिति है, इस राष्ट्र की । इस देश की सरकार को प्रजा के हित के रक्षण के बजाय धन की भूख जगी है। श्री राजगोपालाचारी ने स्पष्ट कहा है— यह गलत धारणा है कि शराब की दुकानों से राज्य सरकार को एक आमदनी होगी, यह एक बचकाना तर्वâ और सरकारी दगाबाजी है। यह चीज जनता की तबाही ला सकती है। बस, इस कारण राज्य सरकारों के लिए यह हितकारी नहीं हो सकती कि इसमें थोड़ा सा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। परिवार की इस्तेमाल की वस्तुओं के ऊंचे दामों और शराब पर फिजुल खर्चों के बीच इतनी मुसीबत होगी, जिनकी जिम्मेदारी कोई भी समझदार सरकार अपने ऊपर नहीं लेगी। ओ युवआें …..जागो….. संस्कृति मां का निकन्दन निकालने वाले दारू के इस दैत्य से सावधान बनो और अपने जीवन से इसका पूर्ण बहिष्कार कर दो। इसी में धर्म , समाज, परिवार व राष्ट्र की सुरक्षा है।