नाम — ले.— सिनेमामम जिलेनिकम,सं.— त्वक्, उत्कट् , हि.—दालचीनी फा. में दारचीनी कहते हैं।महाराष्ट्र व गुजरात में इसे तज नाम से ही जाना जाता है। प्रकृति— इसकी प्रकृति गर्म होती है। इसलिए गर्मी के दिनों में ज्यादा सेवन नहीं किया जाता। गुण— दालचीनी एंटीसेप्टिक, एंटीपंगल, और एंटीवायरल होती है। यह पाचक रसों के स्राव को भी उत्तेजित करती है। दालचीनी वात, पित्तशामक है। तथा जीवनी शक्तिवर्धक है। वायरस जन्य रोगों का आक्रमण इसके प्रयोग से नहीं हो पाता।
औषधिय उपचार
१. मौसमी बीमारियां— एन्फ्लुएन्जा, मलेरिया, गला बैठना आदि में दालचीनी को पानी में उबालकर उसमे चुटकी भर कालीमिर्च व मिश्री मिलाकर पीने से ठीक हो जाता है।
२. प्यास—बार बार होने वाले अपच और बुखार के कारण थोड़ी थोड़ी देर में मुंह सूखता हो तो दालचीनी मुंह में रखकर चूसने से प्यास मिटती है।
३. शक्तिवर्धक— रात में एक गिलास दूध में पिसी दालचीनी मिलाकर पीने से शक्ति बढ़ती है। रक्त के सफेद कण बढ़ते हैं।
४. लकवा— नित्य तीन बार दालचीनी पाउडर की फकी लेना लाभकारी है।
५. कोलेस्ट्राल— दालचीनी से कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है।
६. दांतों के रोग— दालचीनी पाउडर से मंजन करना व पानी में इसे उबालकर कुल्ले करने से दांत के हर प्रकार के रोगों को दूर करता है।
७. दर्दनाशक— कहीं भी दर्द हो शरीर में, सिर में, सूजन, पेट दर्द, जोड़ों का दर्द हो तो आधा चम्मच दालचीनी, और पानी मिलाकर मालिश करना, लेप करना और एक कप गर्म पानी में चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर नित्य लेने से ठीक हो जाता है। इसी प्रकार ज्वर, टाईफाईड, मोतीझारा, डायबिटीज टाइप—२, कब्ज, स्मरणशक्ति व मानसिक तनाव आदि बिमारियों में भी दालचीनी काफी लाभकारी औषधी है।