रोहिणी (काल्पनिक नाम) अपने विद्यालय की एक प्रतिभा सम्पन्न छात्रा थी। हर कक्षा में वह प्रथम स्थान प्राप्त करती थी। कक्षा १० में बोर्ड की परीक्षा में उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया। परन्तु कक्षा १२ में उसे केवल मात्र २ अंक कम मिलने से उसका स्थान कक्षा में तीसरा रह गया।रोहिणी से यह सहा नहीं गया। वहाँ तक कि घर वालों के सामन उसे जाने का मन भी नहीं किया। रात्रि में उसने अपने बंद कमरे की छत पर लगे पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी। परिवार जनों को अत्यन्त दु:ख हुआ। एक छोटी सी बात को लेकर बच्ची ने इतना बड़ा आत्मघात का कार्य कर लिया। इसी प्रकार ज्योतिवर्धन, विश्वविद्यालय में बी.काम कर रहा था। जैसा नाम वैसे ही ज्योतिवर्धन बहुत सुंदर पढ़ने में होशियार था। आस पास के इलाके में उससे जैसा कोई सुन्दर मेधावी छात्र नहीं था। उसे भी अपने रंग रूप पर गर्व था। संयोग की बात उसके साथ हर्षमाला नाम की लड़की भी पढ़ती थी, वह देखने में साधारण सी थी। पढ़ने लिखने में भी उसकी रूचि कम ही थी। परन्तु वह दुनियादारी में तेज थी। वह प्रयास कर ज्योतिवर्धन के साथ रहने की कोशिश करती रहती थी। यद्यपि ज्योतिवर्धन उससे आकर्षित नहीं था, परन्तु साथ—साथ रहते हुए वह उसे चाहने लगा था। हर्षमाला को तो उसके मन की मुराद मिल गई, उसे उसके मन पसन्द लड़का जो मिल गया थस। कुछ समय पश्चात् हर्षमाला के पिताजी का स्थानान्तरण दूसरे शहर में हो गया। जिसकी वजह से हर्षमाला को भी अपने पिताजी के साथ नए स्थान नागपुर जाकर रहना पड़ा। ज्योतिवर्धन को तो लगा जैसे उसका जीवन ही समाप्त हो गया हो, उसका न पढ़ने में मन लगताा, न खाने में, न किसी से बात करने में मन बिल्कुल उदास हो गया था। अस्तपताल में दिखाने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि वह अवसाद नाम के रोग से ग्रसित हो गया है। पढ़ाई लिखाई भी उसकी छूट गई और अपने आप से इतना उदास और डिप्रेशन में हो गया कि एक दिन हॉस्टल के कमरे में हर्षमाला के नाम पत्र लिखकर ज्योतिवर्धन ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। व्यापार धंधे करने वाले अनेक युवा, व्यापार, शेयर मार्विट के उतार—चढ़ाव के कारण अवसाद के रोग से ग्रसित होकर आत्महत्या को प्रेरित होते हुए आए दिन मिडिया में देख सुन सकते हैं।
अवलोकन करने से ज्ञान होता है। कि जीवन की छोटी—छोटी घटनाओं से ग्रसित मानव, युवक—युवतियाँ, घटनाओं को अपने में समाहित कर लेते हैं और अपने बहुमूल्य प्राणों को भी परवाह किए बिना जीवन को समाप्त कर लेते है। और इन सभी घटनाओं का मूल कारण सहन न करने की भावना है। आज युवा वर्ग में सहनशीलता का अभाव का कारण उनके सम्मुख ऐसे किसी भी अच्छे आचरणों वाले जो उनके जीवन को दिशा दें ऐसे रोल मॉडल विचारों के लोगों का ना के बराबर होना। भारत वर्ष में दिगम्बर जैन साधु यद्यपि संख्या में एक प्रतिशत भी नहीं परन्तु फिर भी दिखलाई पड़ते है। उन्हें देखने से यह प्रेरणा मिलती है। कि अनेक विपरीत परिस्थितियों के रहते हुए भी वे इस संसार में निर्भय होकर रहते हैं उनके शरीर पर न तो कोई वस्त्र, न कोई बैंक एकाउन्ट, न कोई घर, न कोई व्यापार, न कोई दुकान, और न ही कोई नौकरी आदि। आखिर कौन सी ऐसी शक्ति है जो उन्हें वर्तमान समय की विपरीत परिस्थितियाँ से प्रभावित न करके उनके निर्भयता एवं आत्म विश्वास को विचलित नहीं होने देती हैं। वैज्ञानिक रूप से विश्व में रोगों की रोकथाम के विशेष तरीकों में टीकाकरण एक तकनीकी प्रयोग किया गया। यह तकनीक रोगों के उन्मूलन में बड़ी सहायक सिद्ध हुई है। चेचक, खसरा, पोल्यो, जैसी भयंकर बिमारियों पूरे विश्व में जड़मूल से खत्म होने पर है। इस तकनीक में रोग के कीटाणुओं को कम मात्रा में एवं शक्ति कम कर करके मानव शरीर में प्रवेश कराया जाता है। ये किटाणु मनुष्य के शरीर में पहुँचकर प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिया कर देते हैं। थोड़े ही समय में मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता इतनी दृढ़ हो जाती है कि किटाणुओं के आक्रमण करने पर उनके असर को खत्म कर देती है।
जैन साधु दुनियाँ की विषम परिस्थितियाँ को निमंत्रण देकर या स्वयं उनके उपस्थित होने पर समता पूर्वक सहन करते है जिससे उनके शरीर में उन विषम परिस्थितियों में क्षुधा, तृषा, सत्कार, तिरस् कार, आक्रोष, भय, ऋण, स्पर्श दंशक, नग्नता, स्त्री परिषह, शैया आदि प्रमुख है। कोई भी संसार में सम्भावित परिस्थिति ऐसी नहीं जिसे वे समतापूर्वक सहन नहीं करते हों। इसी कारण उनका शरीर वङ्का के समान मजबूत हो जाता है। शारीरिक, मानसिक, विषमताओं को सहने करने में जैन साधु वंदनीय है। अतएव इन मुनियों के दर्शन हेतु हर बालक, बालिका को दर्शन के लिए लाना चाहिए एवं विधि पूर्वक मुनि महाराज के बारे में विस्तार से संंस्कारोें से परिचित कराना चाहिए। यह संस्कार बच्चोें में जीवन को असाधारण जीवन साधारण तरीके से जीने की कला को समझने में सहायक होगी। १५ साल से कम बच्चों को यह अनुभव एक स्वूâल की तरह है। जिसे वे अपने जीवन को एक अनुशासन में रखने में रखने में निरंतर उपयोग में ला सवेंâगे। यह हम सबके लिए एक पारम्परिक संस्कारों को समझने तथा जीवन का हिस्सा बनाने में प्राथमिक विद्यालय है जहाँ हम सबको ध्यान, शान्ति एकाग्रता इत्यादि की मानसिक परिक्षण प्रत्येक बालक बालिका के जीवन के लिए उपयोगी है। आमतौर पर बिना वैज्ञानिक तथ्योें को प्रस्तुत किए बालक—बालिकाओं को मुनिराज का न तो परिचय हो पाता है और न ही जीवन काल में विपरीत परिस्थितियों आने पर सहनशीलता का परिचय प्राप्त होता हैं। मेरी अभिभावकों से विनम्र प्रार्थना है कि बच्चों में आज की विषम परिस्थितयों से लड़ने के लिए उन्हें जिन मंदिरों के दर्शन व दिगम्बर साधु के प्रवचन आदि सुनाने चाहिए। मुनिराज की जीवन चर्या परिचय कराने वाले योग्य विद्वान यदि सही रूप में परिचय करा दे तो आज का नौजवान युवक युवतियों इन अवसाद, उत्तेजना पूर्वक परिस्थितयों से बच सकता है।