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पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को सौ-सौ बार नमन है!
June 14, 2020
भजन
jambudweep
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को सौ-सौ बार नमन है
(१)
यू.पी., मंडल बाराबंकी, कस्बा टिकैतनगर है।
श्रावक-श्रेष्ठी-जिनालयों की, बस्ती अति सुन्दर है।।
सन् चौतीस, माह अक्टूबर, शरदपूर्णिमा आयी।
‘‘छोटेलाल-मोहिनी’’ घर में, बजने लगी बधाई।।
आज हुआ धरती पर माँ का, मंगल शुभागमन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(२)
मात-पिता ने लाड़-प्यार से, नाम दिया था ‘‘मैना’’।
पर वह तो स्वतंत्रता प्रेमी, बंधन में रहती ना।।
सोलह वर्ष व्यतीत हुए जब, सप्तम प्रतिमा धारी।
श्री आचार्य देशभूषण जी, गुरू बड़े उपकारी।।
उतरा नया सूर्य धरती पर, विस्मित हुआ गगन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(३)
बाल योगिनी, ब्रह्मचारिणी, प्रथम बीसवीं सदि की।
‘‘वीर’’ क्षेत्र पर हुई क्षुल्लिका, ‘‘मैना’’ ‘‘वीरमती’’ जी।।
माधोराजपुरा छप्पन में, और कदम बढ़ जाता।
आचार्यश्री वीरसागर से, हुई ‘‘आर्यिका’’ माता।।
पुरुषार्थी बढ़ते ही जाते, यह तो सत्य कथन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(४)
युग प्रवर्तिका माताजी ने गुरुतर कार्य किये हैं।
ज्ञान-ध्यान-तप-त्याग के निशदिन, माँ ने चषक पिये हैं।।
शतक बीस नारी समाज का, नव इतिहास लिखा है।
बहुत खोज करने पर भी, न कोई दृष्टान्त दिखा है।।
जिनवाणी माँ की बगिया को, जिसने किया चमन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(५)
हस्तिनागपुर माताजी ने, ‘‘जम्बूद्वीप’’ रचाया।
दूर-दूर से आते यात्री, सबके मन को भाया।।
अगर ठान ले कोई मन में, सब कुछ कर सकता है।
नारी होकर भी वह नर से, आगे बढ़ सकता है।।
भू को स्वर्ग बनाने का, कर सकता पूर्ण सपन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(६)
धन्य-धन्य माताजी तुमने, ढाई सौ ग्रंथ रचे हैं।
संस्कृत-हिन्दी-मौलिक-टीका, पूजा-विधान लिखे हैं।।
ऐसी विदुषी-पुरुषार्थी, नारी न दृष्टि में आयी।
‘‘अष्टसहस्री’’, ‘‘षट्खण्डागम’’, आत्मसात् कर पायी।।
ग्रंथ पुष्प से नित ही करतीं, जिनवाणी अर्चन हैं।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(७)
प्रयाग-अयोध्या-मांगीतुंगी, काशी गले लगाया।
ऋषभदेव का अखिल देश में, उत्सव गया मनाया।।
ज्ञान ज्योतिरथ, श्रीविहाररथ, तुम्हीं प्रवर्तनकारी।
शोध संस्थान, शिविर, सम्मेलन, कत्र्री की बलिहारी।।
‘‘कुण्डलपुर’’ संग ‘‘काकन्दी’’ में, फिर आया सावन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।
(८)
गणिनीप्रमुख, आर्यिकाशिरोमणि, वात्सल्यमूर्ति वंदामि।
सिद्धान्त कल्पतरुकलिका, तुमको बारम्बार वंदामि।।
तीर्थोद्धारक न्यायप्रभाकर, चारित्रचन्द्रिका माता।
श्रुत का तीर्थ प्रकाशनकत्र्री, सौम्यमूर्ति-सुखदाता।।
मुख्य मयंक है, हस्तकल्पतरु, माँ पद-रज चंदन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(९)
सरिताओं में अतिमहत्व, गंगा का गाया है।
सुमनों में सम्राट गुलाब का, नाम प्रथम आया है।।
पर्वतराज हिमालय की है, अपनी अलग कहानी।
वैसी गणिनी ज्ञानमती की, कोई नहीं है सानी।।
उनके पावन श्रीचरणों में, सुमनांजलि अर्पण है।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(१०)
जिनकी पावन पद-रज में, ‘‘चंदन’’ की गंध समायी।
‘‘मोती’’ हैं जिनके शब्द, अर्थ में सागर-सी गहराई।।
जिनके प्रखर ज्ञान ‘‘रवि’’ आगे, अन्य दीप शर्माते।
जिनकी स्तुति करते-करते, कविगण नहीं अघाते।।
बालयोगिनी माँ कृतियों से, भरा शिष्य उपवन है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
(११)
धन्य-धन्य उसका जीवन, जो संयम को अपना ले।
वर्ष पंचाशत बीते माँ को, पंचमहाव्रत पाले।।
अनुपमनिधि हैं जैन जगत की, साध्वी ज्येष्ठतमा हैं।
बालब्रह्मचारिणी कुमारिका, सबमें श्रेष्ठतमा हैं।।
दीक्षा स्वर्ण जयंती महोत्सव, पर श्रद्धा अर्पण है।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को, सौ-सौ बार नमन है।।
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