नारी तुम केवल श्रद्धा हो, अब कहाँ रही अबला नारी।
ज्ञानमती ने नारी को इक, नई चेतना दे डाली।।
बीसवीं सदी में सर्वप्रथम, आर्यिका दीक्षा की नींव पड़ी।
ढाई हजार वर्ष से लेखन, कोई आर्यिका कर न सकी।।
छोटे लाल पिता मोहिनी माँ, ‘मैना की गूंजी किलकारी।
ज्ञानमती ने नारी को इक, नई चेतना दे डाली।।
कठिन-कठिन कई ग्रंथों की, टीकाएँ रचने वाली।
प्रथमानुयोग को उपन्यासवत्, समय देख गढ़ने वाली।।
मन्द मधुर मुस्कान सदा ही, इनकी भाषा कहलाती।
ज्ञानमती ने नारी को, इक नई चेतना दे डाली।।
होते हैं पूजा विधान क्या, छंद चुने क्या लय व ताल।
झूमें भक्ती रस के प्यासे, थकता नहीं कभी भी साज।।
यही हमारी जिनवाणी है, लगती गणधर की वाणी।
ज्ञानमती ने नारी को इक, नई चेतना दे डाली।।
जम्बूद्वीप की रचना को, पैमाने पर ला खड़ा किया।
कौन समझता था भूगोल यह, जिसको माँ ने बता दिया।।
हो प्रयाग या हो कुण्डलपुर, जैन ध्वजा अब लहराती।
ज्ञानमती ने नारी को इक, नईचेतना दे डाली।।
यही कामना यही कल्पना, तुम नारी की शान हो।
पथ रत्नत्रय की अनुगामी, चारित्र प्रबल बलवान हो।।
ज्ञानमति हों केवलज्ञानी, समवसरण के हम प्रत्याशी।
ज्ञानमती ने नारी को इक, नई चेतना दे डाली।।