(१) आत्म साधना पथ पर चलते, बीते वर्ष पचास।
जिनवाणी सेवा रत रहते, बीता स्वर्णमयी इतिहास।।
बाल्यकाल वैराग्य भाव का, अद्भुत् पुण्य प्रकाश।
धर्म देशना मार्ग बना जो, गणिनी का गौरव इतिहास।।
जनकल्याणी युग कल्याणी, आत्म शौर्य की धारा है।
गणिनी ज्ञानमती चरणों में, शत-शत नमन हमारा है।।
(२) धन्य आपके जनक-मात अरु, पूर्वोपार्जित पुण्य प्रताप।
वीर सिंधु की कृपा दृष्टि से, ज्ञानमती मय संयम ताप।।
श्रवण बेलगोला-ध्यान से, साकार हस्तिनापुर का प्रताप।
जम्बूद्वीप रचना से सुरभित, जिनमत का शुभ वार्तालाप।।
बीसवीं सदी की प्रथम आर्यिका, अद्भुत श्रुत की धारा है।
गणिनी ज्ञानमती चरणों में, शत-शत नमन हमारा है।।
(३) अद्भुत ग्रंथ लेखन की क्षमता, चारों अनुयोगों की है।
अखिल विश्व कर रहा अचंभा, ज्ञानमती गरिमामय हैं।।
ज्ञान ध्यान में तत्पर रहकर, संयम मय आराधक हैं।
आदर्शमार्ग वैराग्यमयी, जिनमत का दिग्दर्शक हैै।।
एक ज्योति से ज्योति सहस्रों, जलती जिनमत धारा है।
गणिनी ज्ञानमती चरणों में, शत-शत नमन हमारा है।।
(४) अवध की अनमोल मणि को, करते सब हैं नम्र प्रणाम।
संयम-सौरभ-साधना, जिनके पुण्य प्रतापी नाम।।
पूर्वोपार्जित पुण्य सुयश से, फलित हुआ दीक्षा निष्काम।
तीर्थ वंदना तीर्थ कल्याणी, ज्ञानमती है सार्थक नाम।।
आर्यिका दीक्षा स्वर्ण जयंती, सार्थक जिनमत धारा है।
गणिनी ज्ञानमती चरणों में, शत-शत नमन हमारा है।।
(५) माता किस विधि करूँ वंदना, है स्वर में माधुर्य नहीं।
मन का भाव प्रगट करने को, वाणी में चातुर्य नहीं।।
श्रद्धा-सुमन समर्पित करते, आयोजक और प्रयोजक हैं।
गणिनी दीक्षा स्वर्णजयंती, पावन भाव समर्पित हैं।।
‘शिखर’ आज आशीष कामना, शिवपथ सुरभित धारा है।।
गणिनी ज्ञानमती चरणों में, शत-शत नमन हमारा है।।