जो है करुणामयी वो है ज्ञानमती माता।
जिनके दर्शन से हर पाप है नश जाता।
वो माता है, वो माता है, वो माता है, वो माता है।।
ज्ञान की गंगा, ममता की मूरत।
करुणामयी है जिनकी सूरत।।
सूरत तो देखो, कितनी है आभा।
जिनके दर्शन से हर प्राणी सुख पाता।।
वो माता है, वो माता है, वो माता है, वो माता है।।
मोह से छूटी, माया से छूटी।
जिनभक्ती में प्रतिपल डूबी।।
मन में कोमलता, नैनों में निर्मलता।
वाणी से जिनकी झरती है मधुरता।।
वो माता है, वो माता है, वो माता है, वो माता है।।
गणिनी माता ज्ञानमती ने, दिये हमें अनमोल रतन हैं।
उन रतनों में हमने पाया, ग्रंथों का बहुमूल्य ये धन है।।
ग्रंथों की रचना करने वाली माता।
जिनकी भक्ती से हर प्राणी सुख पाता।।
वो माता है, वो माता है, वो माता है, वो माता है।।
मन संकल्पित, तन संकल्पित।
तीर्थक्षेत्र को करतींं विकसित।।
माता के दर्शन को व्याकुल सब जनता।
जिनकी ‘सुरभि’ से सुरभित सारा संसार।।
वो माता है, वो माता है, वो माता है, वो माता है।।
जो है करुणामयी वो है ज्ञानमती माता।
जिनके दर्शन से हर पाप है नश जाता।।
वो माता है, वो माता है, वो माता है, वो माता है।।
परमपूज्य गणिनीप्रमुख तीर्थोद्धारिका
आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के
पचासवें दीक्षा समारोह के पावन पर्व पर उनके चरणों में शत-शत वंदन।