अध्यात्म की अजस्र स्रोतस्विनी प्रवाहित करने वाला श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य विरचित समयसार आत्मतत्त्व निरूपण करने वाले ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ है। इस ग्रंथराज पर असाधारण प्रतिभाशाली आचार्य श्री अमृतचन्द्रसूरि ने दण्डान्वय प्रक्रिया का आश्रय लेकर ‘आत्मख्याति’ नामक टीका लिखी, जिसकी भाषा समाज बहुल है और दार्शनिक प्रकरणों की अधिकता के कारण सामान्यजनों को दुरुह है। इसमें समयसार को नाटक का रूप दिया गया है। नाटकीय निर्देशों को पूरा-पूरा स्थान दिया है। यथा पीठिका परिच्छेद को पूर्वरङ्ग कहा गया है।