(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. माताजी की उत्तम प्रवचन शैली।
२. चातुर्मास की स्थापना।
३. बालविकास चारों भाग, छहढाला, तत्त्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह, समाधितंत्र पढ़ाए।
४. पर्यूषण पर्व में बड़े बाजार में प्रवचन।
५. माताजी ने वैराग्यमयी केशलुंचन किए।
६. माताजी ने कई ग्रंथों का पद्यानुवाद किया-ग्रंथ प्रकाशन।
७. इन्द्रध्वज विधान पूर्ण हुआ।
वर्तमान युग महाविभूति, ज्ञान-ध्यान-तप की भंडार।
प्रवचन शैली अति ही उत्तम, करतीं शुद्ध-स्वच्छ उच्चार।।
कीर्ति कौमुदी फैली चहुँदिशि, शब्द सुने हर बोली में।
माताजी का चतुर्मास हो, अब की बार खतौली में।।६४९।।
कारण माँ हो चुका पदार्पण, इसके भी था पूर्व यहीं।
शिक्षण शिविर हुआ आयोजित, माँ आशीष से पूर्व यहीं।।
महावीर जयंति गई मनाई, सन्निधान श्री माताजी।
हुई सुपरिचित माताजी से, जनता जैनाजैन सभी।।६५०।।
बालविकास के चार भाग हैं, हुए अध्यापित यहाँ सभी।
छहढाला-तत्त्वार्थसूत्र भी, साथ पढ़ाये गये तभी।।
द्रव्य संग्रह-समाधितंत्र पढ़, सबका हुआ महत् उपकार।
रखा उत्तमोत्तम संयोजन, मोतीचंदजी रवीन्द्र कुमार।।६५१।।
जैन समाज खतौली पहुँची, हाथ जोड़कर माँ दरबार।
माताजी के चरणकमल में, अरपे श्रीफल बारम्बार।।
करुणाधन श्रीमाताजी ने, सोचा-समझा पूरी आस।
नगर खतौली में आकर के, किया स्थापित चातुर्मास।।६५२।।
ड़ा बजार ठाकुर द्वारे के, प्रांगण निर्मित हुआ पंडाल।
दश में से प्रत्येक धर्म पर, प्रवचन होते प्रात:काल।।
प्रवचन द्वारा माताजी ने, जिनवाणी की अर्चा की।
शीतल-जीवनदायी-मीठे, मेघ वचन की वर्षा की।।६५३।।
चातुर्मास स्थापन के दिन, केशलुंच सम्पन्न किया।
नगरपालिका टंकी प्रांगण, देखी सब वैराग्य क्रिया।।
जैनेतर जन हुए सुपरिचित, वीर आर्यिका चर्या से।
शुष्कघासवत् उत्पाटित कर, कच फैके माँ ने कैसे।।६५४।।
केश बड़े न रखते साधु, उनमें पड़ जाते हैं जीव।
रोज संभालने तेल डालने, की चिंता मन रहे अतीव।।
धर्म अहिंसा ही सर्वोत्तम, उसका पालन करते हैं।
कुछेक माह में साधु-साध्वी, केशलुंचन कर लेते हैं।।६५५।।
माताजी ने समाधितंत्र-सह, द्रव्यसंग्रह-इष्टोपदेश।
किया पद्य अनुवाद मनोहर, धर्म-समाज हित हुआ विशेष।।
हुआ प्रकाशन इन ग्रंथों का, लिखा ग्रंथ आर्यिका साथ।
अध्ययन-अध्यापन में बीता, माताजी का चातुर्मास।।६५६।।
माताजी ने शुरू किया था, रचना इन्द्रध्वज विधान।
तीन माह में पूर्ण हो गया, सह पचास पूजा निर्माण।।
जब से हुआ प्रकाशित है वह, भारत के कोने-कोने।
सोत्साह होता आयोजित, लगती धर्मामृत वर्षा होने।।६५७।।
चातुर्मास हुआ निष्ठापित, हुआ पिच्छिका परिवर्तन।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती का, संघ सहित हो गया गमन।।
स्वास्थ्य रहा प्रतिकूल इसलिए, हस्तिनागपुर आर्इं खास।
तीर्थक्षेत्र प्राचीन जिनालय, माताजी का रहा प्रवास।।६५८।।