(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. सभी को माताजी के सुलभ दर्शन।
२. दर्शन के साथ प्रवचन लाभ।
३. चातुर्मास की स्थापना।
४. इन्द्रध्वज विधान की रचनाओं के प्रति आभार।
५. इन्द्रध्वज विधान सम्पन्न।
६. जम्बूद्वीप सेमिनार का आयोजन।
७. बाबूलाल जैन जमादार का अभिनंदन।
८. माताजी के जन्मदिन पर विनयांजलि।
९. आर्यिका रत्नमती अभिनंदन ग्रंथ की रचना।
१०. माताजी का दिल्ली प्रस्थान।
११. लालमंदिर में ज्ञानज्योति रथ कार्यालय का उद्घाटन।
१२. इन्द्रध्वज विधान, महावीर जयंती सम्पन्न।
१३. इन्दिरा गाँधी के कर कमलों से ज्ञानज्योति रथ का उद्घाटन।
१४. ज्ञानज्योति रथ का देश भ्रमण-आचार्य देशभूषण, आचार्य विमलसागर ने शुभाशीष दिया।
माताजी के शुभागमन से, जम्बूद्वीप में आई बहार।
रात्रिकाल वैराग्य उमड़ता, दिन मनते धार्मिक त्यौैहार।।
परम पूज्य श्री माताजी के, दर्शनार्थ आते बहु-जन।
ऐसा कोई दिवस न जाता, जब न आते दर्शकगण।।७२३।।
जो भी आते माताजी के, सब जन दर्शन पाते हैं।
जीवन्ततीर्थ के दर्शन करके, जीवन धन्य बनाते हैं।।
करुणासागर वात्सल्यनिधि, नहीं किसी को करें निराश।
रोक-टोक के बिना सभी को, खुला हुआ है संत-प्रवास।।७२४।।
यही नहीं पूज्य माताजी, समय-समय करतीं प्रवचन।
भक्तजनों को अतिहितकारी, देती हैं आशीष वचन।।
दर्शन औ आशीष प्राप्त कर, सबको होता मन सन्तोष।
दिवस आज का धन्य हुआ है, मिला पुण्य का अक्षय कोष।।७२५।।
परम पूज्य श्रीमाताजी ने, तीरथ नया बनाया है।
अपनी अद्भुत सूझ-बूझ से, भू को स्वर्ग बनाया है।।
काल का पंछी उड़कर पहुँचा, आषाढ़-जुलाई उत्तम मास।
भक्तों के आग्रह से माँ ने, किया यहीं पर चातुर्मास।।७२६।।
अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं, मध्यलोक में शोभामान।
चार शतक अष्टपंचाशत, उनकी संख्या रहा प्रमाण।।
इन्द्रध्वज मंडल विधान में, इन सबकी होती पूजन।
भाव सहित जो करे करावे, करता अक्षय पुण्यार्जन।।७२७।।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती हैं, इस विधान की रचनाकार।
अन्यान्येक विधान सृजन कर, माता किया महत् उपकार।।
इसके पहले संस्कृत में ही, पाये जाते सकल विधान।
पढ़ने और पढ़ाने वाले, नहिं मिलते खोजे विद्वान्।।७२८।।
माताजी से रचित विधानों, की सर्वत्र मची है धूम।
सुनते-करते, पढ़ते हिन्दी, जन साधारण जाते हैं झूम।।
किन शब्दों में माताजी प्रति, हम कृतज्ञता व्यक्त करें।
शत-शत वंदामि माताजी, हम सविनय अभिव्यक्त करें।।७२९।।
हस्तिनागपुर माताजी का, रहा प्रथम यह चातुर्मास।
इसी वर्ष श्री जम्बूद्वीप का, रचा गया स्वर्णिम इतिहास।।
निर्मल सेठी सीतापुर ने, इंद्रध्वज का किया विधान।
परम पूज्य श्रीमाताजी का, रहा परम पावन सन्निधान।।७३०।।
जम्बूद्वीप सेमिनार का हुआ, माह अक्टूबर आयोजन।
जमादार श्री बाबूलाल का, किया गया बहु अभिनंदन।।
माताजी के जन्म दिवस पर, हुई विनयांजलि महासभा।
सेमिनार विद्वानों द्वारा, प्रकटी बहुश: विनयप्रभा।।७३१।।
पूज्य आर्यिका रत्नमती का, ग्रंथ अभिनंदन लिखा गया।
जिनके द्वारा गणिनी माता, ज्ञानमती को रचा गया।।
ज्ञानज्योति रथ के निमित्त से, इंद्रप्रस्थ माँ किया गमन।
लाल जिनालय में माँ सानिध्य, हुआ दफ्तर का उद्घाटन।।७३२।।
माताजी के सन्निधान में, श्री इन्द्रध्वज हुआ विधान।
पर्व अठाई में सम्पन्ना, माँ शुभ आशिष किया प्रदान।।
धर्मनिधि ग्रंथ अभिनंदन, हुआ विमोचित सन्निधि माँ।
श्री महावीर जयंती आई, माँ के प्रवचन हुए यहाँ।।७३३।।
लौह हृदय नारी इन्दिरा जी, हिन्ददेश की मंत्रि प्रधान।
उनके ही मंत्रित्व काल में, ज्ञानज्योतिरथ हुआ गतिमान।।
उनके सक्षम कर कमलों से, उद्घाटन सम्पन्न हुआ।
भारत के कोने-कोने में, रथ का निर्भय भ्रमण हुआ।।७३४।।
चार जून सन् ब्यासी शुभ दिन, यह मंगलमय कार्य हुआ।
मंत्रोच्चार-पुष्पांजलिक्षेपण-स्वस्तिक-जय-जयकार हुआ।।
हो निर्विघ्न रथ भ्रमण देश में, इन्दिरा जी आश्वस्त किया।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, उनको शुभ आशीष दिया।।७३५।।
जमादार श्री बाबूलाल जी, विद्वानों में रहे प्रधान।
उनके अनुभवशील करों में, देशभ्रमण की रही कमान।।
चौक चाँदनी से करोलबाग, तदनंतर रथ राजस्थान।
गये देश के कोने-कोने, स्वागत पाया हर स्थान।।७३६।।
ज्ञानज्योतिरथ जयपुर पहुँचा, देशभूषण आचार्य श्री।
हुए ज्ञानरथ के सहगामी, शुभाशीष की वर्षा की।।
लोहरिया में धर्मनिधि संघ, रथ के संग-संग भ्रमण किया।
विमलसिन्धु आचार्यश्री भी, रथ मंगल आशीष दिया।।७३७।।