(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. इन्द्रध्वज विधान एवं चातुर्मास की स्थापना।
२. छहढाला का अध्यापन।
३. माताजी ने अनेक रचनाएँ लिखीं।
४. माताजी की आत्मकथा-मेरी स्मृतियाँ, एक उत्तमग्रन्थ।
५. क्षुल्लक श्री मोतीसागर को पीठाधीश बनाया।
६. अनेक विधानों के आयोजन।
७. भगवान ऋषभदेव का जन्मजयंती महोत्सव मनाया गया।
८. माताजी ने जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध की।
९. दर्शनार्थी अंडा-माँस त्यागव्रत लेकर जाते।
१०. अक्षय तृतीया पर विशेष उत्सव का आयोजन।
११. आचार्यकल्प श्रुतसागर जी को श्रद्धांजलि।
१२. मुनि दर्शनसागर जी को धर्मकेसरी की उपाधि।
१३. अनेक लोग माताजी की प्रेरणा से संयमी बने।
दश जुलाई उन्नीस सतासी, आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी।
चातुर्मास किया स्थापित, जम्बूद्वीप श्री माताजी।।
इसके पूर्व त्रिमूर्ति जिनालय, हुए इन्द्रध्वज युगल विधान।
कमल देहली, हीरामणि जी, महमूदाबाद रहीं यजमान।।८३०।।
पंडित प्रवर श्री दौलतराम का, छहढाला सुग्रन्थ महान।
हुआ अध्यापित सुष्ठुरीति से, मिला सभी को तत्त्वज्ञान।।
छहढाला को हम हिन्दी का, समयसार कह सकते हैं।
शुरू करे तो, पूर्ण किए बिन, हम कैसे रह सकते है।।८३१।।
वर्ष सतासी चतुर्मास में, किए माताजी कार्य अनेक।
कल्याण कल्पतरु स्तोत्र संस्कृत, माताजी की रचना एक।।
की सुन्दर स्तुति माताजी, भावपूर्ण जिनवर चौबीस।
उसका अन्वय अर्थ किया माँ, हिन्दी भाषा मास्टर पीस।।८३२।।
पूज्यपाद आचार्यश्री रचित, संस्कृत पंचामृत अभिषेक।
हिन्दी पद्य अनुवाद किया माँ, भक्तजनों की सुविधा देख।।
सकलीकरण-हवन आदि विधि, पद्य अनुवाद किया माँ श्री।
मण्डल विधान की संज्ञा देकर, उसे शक्ल पुस्तक की दी।।८३३।।
नेमिनाथ वैराग्य नाम से, माँ श्री इक उपन्यास लिखा।
मेरी स्मृतियाँ के नाम से, लिखती जातीं आत्मकथा।।
माताजी के चिन्तन आया, साधूजीवन के छह काल।
तीन काल तो पूर्ण हो चुके, अगले त्रय की करें सँभाल।।८३४।।
आत्मकथा श्री माताजी की, है अति उत्तम संत चरित्र।
स्वाध्याय से मिलते हमको, सम्यक्दर्शन-चरण पवित्र।।
तीर्थ यात्रा साधु समागम, स्तुति-नीति-शास्त्र का ज्ञान।
पा जाते हैं एक जगह सब, जो पढ़ते यह आत्मख्यान।।८३५।।
आतमहित के कार्य ही करना, माता का बस कार्य रहा।
पीठाधीश बना, क्षुल्लक जी, उन पर सारा भार रखा।।
त्रिलोक शोध संस्थान ओर से, दशलक्षण भेजे विद्वान्।
गुजरात प्रांत में की प्रभावना, प्रवचन-पूजन-विविध विधान।।८३६।।
शरद पूर्णिमा के आने पर, गया मनाया जन्म सु-दिन।
आज न केवल तन पाया माँ, ब्रह्मचर्य भी आजीवन।।
सन् बावन बाराबंकी में, माताश्री आज के दिन।
सप्तम प्रतिमा धारण की थी, श्री आचार्य देशभूषण।।८३७।।
जम्बूद्वीप मंडल विधान का, श्रीमाताजी किया प्रणयन।
जम्बूद्वीप रचना सम्मुख ही, हुआ विधान का आयोजन।।
एक सहस्र अर्घ्य जयमाला, हुए समर्पित थे श्रीफल।
न भूतो, न भविष्यति ऐसा, यह आयोजन रहा सफल।।८३८।।
चातुर्मासिक सकल काल में, स्वाध्याय क्रम चलता था।
तत्पश्चात् रहा क्रम जारी, लाभ यात्रिगण मिलता था।।
कल्पद्रुम मंडल विधान माँ, सन् छ्यिासी में रचना की।
छोटी सा ने किया प्रकाशित, रचवाया भी उनने ही।।८३९।।
छोटी सा सह पाँच श्रेष्ठिगण, चक्रवर्ति का पद पाया।
बना माँडना अतिशय सुंदर, पुन: दृष्टि में नहिं आया।।
दान चतुर्विध अष्टदिवस तक, दिया गया विधि के अनुसार।
अति आनंद विभोर भक्तगण, पुन: पुन: करते जयकार।।८४०।।
चैत्र वदी नौ, प्रथम तीर्थंकर, ऋषभनाथ का जन्म दिवस।
गया मनाया जम्बूद्वीप में, समझाने सच जनमानस।।
महावीर जी संस्थापक हैं, जैनधर्म यह भ्रान्त कथन।
तेईस तीर्थंकर उनसे पहले, किया धर्म का उद्घाटन।।८४१।।
माताजी से पूर्व किसी ने, किया न इस हित ठोस प्रयास।
अत: आज तक छपा जा रहा, जैन धर्म गलत इतिहास।।
प्रथम बार श्रीमाताजी ने, बीड़ा सुदृढ़ उठाया है।
बुलवाकर कुलपति सम्मेलन, त्रुटि को ठीक कराया है।।८४२।।
जम्बूद्वीप धर्मस्थल-सह, सौन्दर्य का धाम ललाम।
जैनाजैन सभी आते हैं, करते दर्शन तीर्थ प्रणाम।।
माँश्री हो उपदेश प्रभावित, करते अंडा-आमिष त्याग।
ॐ नम: मंत्र ले जाते, सु:ख शांति पाते बड़भाग।।८४३।।
ऋषभदेव की प्रथम पारणा, गजपुर में सम्पन्न हुई।
इस निमित्त से अक्षय तृतिया, पर्वरूप में पूज्य हुई।।
जैन समाज श्वेताम्बर इसको, वर्षीतपा मानते हैं।
महावृहत् भरता है मेला, भक्त हजारों आते हैं।।८४४।।
माताजी की रही भावना, अपनाएँ इसे दिगम्बर भी ।
किन्तु भावना हुई न पूरी, अति प्रयास करने पर भी।।
तदपि पूज्य माताजी इसको, सह उत्साह मनाती हैं।
करें प्रभावना रथयात्रा से, इक्षूरस बँटवाती हैं।।८४५।।
आचार्यकल्प श्रुतसागरजी का, हुआ लूणवां समाधिमरण।
माताजी ने किया यहाँ पर, श्रद्धांजलि का आयोजन।।
समयसार की टीकारूप में, जय-अमृतकृत आशीर्वाद।
माताजी ने किया है उनका, हिन्दी में सुंदर अनुवाद।।८४६।।
हस्तिनागपुर में पधराये, दर्शननिधि आचार्यश्री।
शिविर कानजी लग ना पाया, धर्म प्रभावना की महती।।
धर्म हेतु उनकी निर्भयता, की प्रेरणा माता ने।
धर्म केसरी की उपाधि से, किया अलंकृत जनता ने।।८४७।।
विद्यापीठ वीर निधि संस्कृत, विद्यार्थी कमलेश कुमार।
माताजी के चरण कमल में, आजन्म लिया ब्रह्मव्रत धार।।
ब्रह्मचारी सुरेश कोटड़िया, बंडावासी श्री सुभाष।
मुनिदीक्षा ली, सुन माताजी, प्रमुदित, पूरी मन की आस।।८४८।।
योगिराज श्री फूलचंद जी, नगर छतरपुरवासी हैं।
प्राणायाम-सह योगशास्त्र मेंं, निपुण सतत अभ्यासी हैं।।
माताजी के शुभाशीष से, शिविरायोजन आते हैं।
प्राणायाम सिखाकर सबको, स्वास्थ्य लाभ दे जाते हैं।।८४९।।