(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. समाज द्वारा निवेदन-चातुर्मास स्थापना।
२. कार्यक्रमों की झड़ी प्रारंभ।
३. आचार्य शांतिसागर जयंति, वीर शासन जयंति, भगवान पार्श्र्वनाथ निर्वाण कल्याणक मनाये गये।
४. पर्यूषण पर्व में कार्यक्रम।
५. आचार्य शांतिसागर पुण्यतिथि।
६. शरद पूर्णिमा-माताजी का जन्मदिवस।
७. वीरनिर्वाण महोत्सव।
८. आचार्य श्रेयांससागर जन्मजयंति।
९. रत्नमती माताजी की पुण्यतिथि।
१०. पावनश्री एवं पवित्रश्री माताजी को अध्यापन।
११. उपाध्याय ज्ञानसागर जी से धार्मिक चर्चाएँ।
१२. चातुर्मास समापन-माताजी का सरधना गमन।
१३. जहाँ संत, वहाँ बसंत।
धीरे-धीरे कदम बढ़ाता, समय जुलाई तक आया।
बादल नभ में लगे दौड़ने, भक्तजनों के मन भाया।।
चातुर्मास मिलेगा माँ का, धर्मामृत का करने पान।
दर्शन-ज्ञान-चरित गंगा में, करेंगे सब मिलकर स्नान।।८८९।।
जिसने पान किया पायस का, मन भरता अन्यत्र नहीं।
पिक वाणी के श्रोता होते, वायस से सन्तुष्ट नहीं।।
अत: सभी ने एक साथ मिल, माँ के चरण किया नत शीश।
सन् नब्बे के चतुर्मास का, हमें चाहिए शुभ आशीष।।८९०।।
अंजलि बाँधे खड़े जनों की, माताजी ने पूरी आश।
छह जुलाई को जम्बूद्वीप में, किया स्थापित चातुर्मास।।
दृढ़ प्रतिज्ञ सबने मिल करके, शुभ अवसर का लाभ लिया।
पूजन-प्रवचन-व्रत-विधान में, बढ़-चढ़ करके भाग लिया।।८९१।।
चातुर्मास स्थापित होते, कार्यक्रमों की लगी झड़ी।
वीरनिधि की जन्मजयंति, से आरम्भित हुई कड़ी।।
श्रावण कृष्णा एकम् तिथि को, शासन वीर जयंति मनी।
दिवस आज ही, वीर प्रभू की, खिरी थी मंगल दिव्य ध्वनि।।८९२।।
श्रावण शुक्ला तिथि सप्तमी, पारसनाथ गये निर्वाण।
माता सन्निधि गया मनाया, सह-उत्साह मोक्ष कल्याण।।
ज्ञान-ध्यान-तपलीन मातुश्री, के होते मंगल प्रवचन।
दिन-प्रसंग एवं महत्त्व को, आत्मसात् कर लेते जन।।८९३।।
पर्वराज पर्यूषण आया, लेकर दस रत्नों का हार।
माताजी ने प्रवचन द्वारा, किया महज्जनता उपकार।।
पूजन-विधान-आरती-प्रवचन, गायन-नर्तन-प्रश्न-भजन।
चलते रहे दशों दिन अविरल, कर द्वादश संयम पालन।।८९४।।
श्री आचार्य शांतिसागर जी, थे इस युग के महायति।
भादों शुक्ला दोज तिथि को, गयी मनाई पुण्यतिथि।।
शरद पूर्णिमा के आने पर, गया मनाया जन्म दिवस।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती का, बस सादा ही, कारणवश।।८९५।।
पूज्य आर्यिका श्रीचंदना, की मंगल आशीष कमान।
नगर सरधना गया रचाया, श्री कल्पद्रुम महाविधान।।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि, पर्व दिवाली आया है।
मोदक अर्पण, दीप जलाकर, सादर गया मनाया है।।८९६।।
पंचम पट्टाचार्य श्रेयनिधि, जन्म जयंति बहत्तरवीं।
गई मनाई माता सन्निधि, सब विनयांजलि अर्पित की।।
कृष्णा माघ तिथी नवमी को, रत्नमती माताजी की।
श्रद्धाञ्जलि सह गई मनाई, सादर छठवीं पुण्यतिथि।।८९७।।
पावनश्री जी पवित्रश्री जी, दो माताएँ रहीं यहाँ।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती से, बहु ज्ञानार्जन किया यहाँ।।
उपाध्याय श्री ज्ञाननिधि जी, लघु विद्यानिधि पधराये।
धार्मिक चर्चा की माताजी, यथा-यथा अवसर आये।।८९८।।
जैसे बालक बूढ़ा होकर, आगे को बढ़ जाता है।
वैसे कालपुरुष नब्बे भी, शीघ्र पूर्णता पाता है।।
चलते-चलते समय आ गया, माह जुलाई वर्षावास।
नगर सरधना लालायित था, मिले मातुश्री चार्तुमास।।८९९।।
आये बहुजन श्रीफल लेकर, किया निवेदन बारम्बार।
हे पूज्याश्री! हे माताजी! हम पर कृपा करें इस बार।।
हम चातक हैं, मेघ आप हैं, हमको बूँद-बूँद की प्यास।
अत: हमें दें हे माताजी, सन् इक्यानवे चार्तुमास।।९००।।
पूर्वापर सब चिन्तन करके, माँ पहुँचीं निर्णय के पार।
जहाँ प्यास हो, वहीं बरसना, अत: निवेदन है स्वीकार।।
सन् इक्यानवै, माह जुलाई, तिथि तेरह को किया गमन।
क्रम-क्रम चलते, बीस जुलाई, हुआ सरधना शुभागमन।।९०१।।
जंगल में मंगल हो जाता, पुण्यवान जहाँ रहते जन।
उनके बिन फीके लगते हैं, स्वर्गों के भी नंदनवन।।
गजपुर, अब रजपुर लगता है, माताजी का हुआ गमन।
नगर सरधना का हर कोना, माँ पद-रज से हुआ चमन।।९०२।।