(चतुर्थ_खण्ड)
समाहित विषयवस्तु
१. हस्तिनापुर से दिल्ली को विहार।
२. मेरठ में भगवान ऋषभदेव पर अनेक संगोष्ठियाँ।
३. जुलाई में चातुर्मास स्थापना।
४. आर्यिका श्री चंदनामती माताजी विरचित दशावतार नाटिका का विमोचन।
५. ज्ञानमती माताजी का संस्कृत साहित्य में योगदान कृति का विमोचन।
६. अनिल परिवार का धार्मिक सहयोग।
७. भगवान महावीर का २६००वां जन्मोत्सव-सन्निधि हेतु स्वीकृति।
८. ४८वां चातुर्मास, अत: भक्तामर विधान के ४८ मण्डल बने।
९. माताजी का ६७वां जन्मदिवस।
१०. क्षुल्लक जी का षष्ठीपूर्ति महोत्सव।
११. चातुर्मास निष्ठापन-प्रयाग गमन।
१२. प्रयागतीर्थ का निर्माण-पंचकल्याणक
१३. विश्वशांति महावीर विधान की रचना।
१४. कुंभ के मेले में ऋषभदेव मंडप, धर्मसभा, निर्वाण महोत्सव।
१५. महावीर जयंती-अहिंसा रैली का आयोजन।
१६. कौशाम्बी नगरी का उद्धार-दिल्ली को विहार।
बीस जून सन् दो हजार को, माताजी का हुआ विहार।
मेरठ होकर लक्ष्य बनाया, दिल्ली स्थित प्रीत विहार।।
जैसे कोई दीपमालिका, आगे बढ़ती जाती है।
वैसे-वैसे उसके पीछे, अँधियारी छा जाती है।।१२०८।।
माताजी ने गजपुर छोड़ा, मेरठ में पधराया संघ।
हस्तिनागपुर मातम छाया, मेरठ आया हर्ष प्रसंग।।
पुण्यवान जहाँ कदम बढ़ाते, होने लगते मंगलाचार।
बिना पुण्य के मिले न कुछ भी, दुखमय रहता है संसार।।१२०९।।
माताजी के कार्य सुचिंतित, अति उपयोगी होते हैं।
ज्ञानवृद्धि-सह धर्म प्रभावी, जग हितकारी होते हैं।।
ऋषभदेव निर्वाण महोत्सव, लक्ष्य बनाया उत्तम हो।
एक हजार आठ संगोष्ठी, यत्र-तत्र आयोजित हों।।१२१०।।
अत: नगर मेरठ कॉलोनी, तथा गाजियाबाद शहर।
कई संगोष्ठी हुई आयोजित, पूज्याश्री आशिष पाकर।।
पंद्रह जुलाई सन् दो हजार को, हुआ स्थापित चातुर्मास।
धर्मामृत से बुझी चतुर्दिक्, महानगर दिल्ली की प्यास।।१२११।।
पूज्य आर्यिका श्री चंदना, उच्चकोटि रचतीं साहित्य।
कवि की पहुँच वहाँ तक होती, जहाँ न जा पाता आदित्य।।
माताजी ने अति ही सुंदर, लिखी नाटिका दश अवतार।
ऋषभदेव पर, हुई विमोचित, जनता पाया नव उपहार।।१२१२।।
माताजी श्री ज्ञानमती का, संस्कृत भाषा अति अधिकार।
मौलिक-टीका आदि विधानों, रचा आप साहित्य अपार।।
आपश्री के योगदान की, दर्शक एक पुस्तिका का।
हुआ विमोचन इस अवसर पर, करतलध्वनिसह बीच सभा।।१२१३।।
कहते हैं भक्तों के वश में, रहते आये हैं भगवान।
क्या आश्चर्य यदि साधु संघ को, प्राप्त करें श्रावक पुण्यवान।।
अनिलकुमार ने माताजी से, आग्रह बारम्बार किया।
प्रीतविहार-कालोनी दिल्ली, चतुर्मास स्वीकार किया।।१२१४।।
जैसे पौधा सिंचित होकर, पा जाता है वृक्ष स्वरूप।
वैसे एक लघु चैत्यालय, पाया कमल जिनालय रूप।।
अनिल-अनीता, अनु-अनामिका,अतिशय पाया धार्मिक योग।
आहारदान-वैयावृत्ति में, किया समय का सद् उपयोग।।१२१५।।
उम्मेदमल पाण्ड्या नेता जी, जैन समाज के आए हैं।
महावीर का छब्बीस सौवाँ, जन्मोत्सव खूब मनाए हैं।।
परम पूज्य श्रीमाताजी का, सन्निधि मिले, नमाया शीश।
दक्षिण कर से माताजी ने, उन्हें दिया स्वीकृति आशीष।।१२१६।।
मानसरोवर-वैलाश यात्रा, हुआ सुष्ठुतम आयोजन।
द्विसप्तति रत्नप्रतिमाएँ, कैलाश विराजीं ऋषभजिन।।
प्रीतविहार में माताजी का, यह अड़तालिसी चातुर्मास।
सम्पन्ने अड़तालिस भक्तामर, बने माड़ने इतने खास।।१२१७।।
माताजी के जन्म दिवस का, हुआ सरसठवां आयोजन।
हुए पुरस्कृत संस्थान से, उत्तम विदुषी-विद्वत्जन।।
क्षुल्लक श्री मोतीसागर का, षष्ठी महोत्सव खूब मना।
जगत् कूप से मुझे निकाला, माताजी उपकार घना।।१२१८।।
प्रीतविहार के चतुर्मास में, नए तीर्थ का जन्म हुआ।
ऋषभदेव तप-केवलभूमि के, तीर्थोदय संकल्प लिया।।
चातुर्मास हुआ निष्ठापित, माताजी ने किया विहार।
प्रयागराज में संघ पधराया, किया मार्ग में धर्म प्रचार।।१२१९।।
हाड़ कंपाने वाली सर्दी, यदा-कदा हो पात तुषार।
कठिन शीत परिषह को सहतीं, माताजी ने किया विहार।।
त्रेपन दिन की यात्रा करके, इलाहाबाद पधराया संघ।
हिन्दुतीर्थ स्थान प्रयाग में, जैनतीर्थोदय किया प्रसंग।।१२२०।।
माताजी के शुभागमन से, बनने लगा तीर्थ स्थान।
एक पंचाशत फुट ऊँचाई, गिरि कैलाश हुआ निर्माण।।
चौदह फुट पद्मासन प्रतिमा, लाल वर्ण निर्मित पाषाण।
हुई विराजित बीच शिखर में, प्रथम तीर्थंकर ऋषभ भगवान।।१२२१।।
दीक्षाकल्याण तपोवन मंदिर, गिरि के दायीं ओर बना।
वट का वृक्ष धातु से निर्मित, पांचफुटी खड़ी प्रतिमा।।
ज्ञान कल्याणक के प्रतीक में, हुई समवसरण प्रतिकृति निर्माण।
उसमें आदिनाथ जिनवर की, चतुर्मुखी प्रतिमा विराजमान।।१२२२।।
माह फरवरी, दो सहस एक सन्, हुए आयोजित पंचकल्याण।
एक हजार आठ कलशों से, हुआ महामस्तक स्नान।।
हुआ समापन ऋषभदेव का, महामहोत्सव परिनिर्वाण।
घोषित किया वीर जिनवर का, छब्बीस सौवाँ जन्मकल्याणक।।१२२३।।
माताजी का चिन्तन-लेखन, रुकने कभी न पाता है।
विहारकाल में भी लेखन का, समय निकल ही आता है।।
दिल्ली से प्रयागराज-मग, रचा आप महावीर विधान।
विश्वशांति हित किया समर्पित, चरण कमल वीर भगवान।।१२२४।।
प्रयागराज में कुंभ का मेला, भरता है प्रति द्वादश वर्ष।
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती ने, आमंत्रण पाया उत्कर्ष।।
ऋषभदेव संगम मंडप रच, आदिनाथ अभिषेक किया।
सहस अठोत्तर लाडू अर्पे, निर्वाणोत्सव सम्पन्न किया।।१२२५।।
प्रयागराज कुंभ मेले में, जुड़ी संसदी धर्मसभा।
माताद्वय ने ऋषभदेव की, बिखराई सिद्धांत प्रभा।।
विश्वशांति के लिए जरूरी, ऋषभदेव उच्च सिद्धांत।
स्वीकारा सब, जयकारों से, गूूंजा अम्बर, सभा के अंत।।१२२६।।
माताजी की मंगल सन्निधि, सम्पन्ना उत्सव महावीर।
जन्म जयंति छब्बीसौवीं, इलाहाबाद गंगा के तीर।।
विश्वशांति महावीर विधान का, हुआ सुमंगल आयोजन।
अहिंसा रैली, वीर प्रभू का, सहस अठोत्तर कलश न्हवन।।१२२७।।
सार्थक चिंतन माताजी का, प्यासों को जलदान किया।
पद्मप्रभु कौशाम्बी नगरी, माताजी उद्धार किया।।
गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-कल्याणक, से धरती यह अति पावन।
हुई विराजित पद्मप्रभु की, सतफुट प्रतिमा मनभावन।।
ऋषभतीर्थ श्री प्रयागराज को ,जीवन्त स्वरूप प्रदान किया।
संघसहित श्रीमाताजी ने, दिल्ली ओर विहार किया।।
अशोक विहार से आए सज्जन, की वन्दामि बारम्बार।
चातुर्मासिक सन्निधि माता, हमें चाहिए है इस बार।।१२२९।।
अनुनय-विनय-समर्पण-श्रीफल, से माता सब जान लिया।
महापारखी मातृ हृदय ने, भक्तिभाव पहचान लिया।।
अशोक विहार फैस-वन दिल्ली, जन-जन छाया हर्ष अपार।
जब माताजी ज्ञानमती ने, चातुर्मास किया स्वीकार।।१२३०।।