वर्षा ऋतु में जठराग्नि (पाचन शक्ति) अत्यंत मंद पड़ जाती है और खाने की रूचि कम हो जाती है। अपन, वमन, अतिसार, हैजा, बरसाती फोड़े वगैरह होने का भय रहता है। इस मौसम में थोड़ी सी असावधानी से मलेरिया, सर्दी, खांसी, जुकाम वगैरह का भी भय रहता है।
# वर्षा ऋतु में जल की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए, पीने के जल को उबालने के बाद ठंडा कर छान करके ही पीएं।
# खाने में गरिष्ठ मसालेदार, तेलीय, चर्बीयुक्त, खट्टे व चटपटे भोजन के स्थान पर हल्के फुल्के व ताजे भोजन का प्रयोग करें।
# भोज्य सामग्री में गर्म, पाचक शक्ति बढ़ाने वाले पदार्थ का प्रयोग अवश्य करें।
# बासी भोजन का प्रयोग न करें, बाजारू मिठाईयां, आईसक्रीम का प्रयोग न करें।
# सादा दूध व छाछ के स्थान पर औषधियुक्त गर्म दूध (सोंठ, पीपल, बादाम व मिश्री मिला हुआ) का प्रयोग दिन में ही करें।
# शाक व पत्तेदार सब्जी के स्थान पर अंकुरित व छिलका युक्त दाल का प्रयोग करें ।
# कटे व खुले फलों के स्थान पर ताजे व मौसमी फलों का प्रयोग करें।
# पेट के रोगों से बचने के लिये भोजन में नींबू का प्रयोग अवश्य करें।
# याद रहे नींबू का प्रयोग सब्जी व पानी के साथ ही हो, अन्न के साथ नींबू का प्रयोग अम्लकारक होता है।
# सप्ताह या पन्द्रह दिन के अंतराल पर किसी एक दिन उपवास या एनीमा द्वारा पेट की सफाई अवश्य करें।
# प्रात:काल बाहर घूमने का अगर समय न मिले तो बाहर की बजाय घर में ही हल्के हल्के व्यायाम से अंग का संचालन करें।
# स्नान से पूर्व तेल की मालिस और स्नान के उपरांत मोटे रोएदार तोलिये से शरीर को रगड़ कर अच्छी तरह साफ करें। कपड़े हल्के व ढीले हों, इसका ख्याल रखें।
# नंगे पाव गीली जगह में घूमने से अपने को बचाएं।
# दिन में सोने का परित्याग कर कफ की संभावना दूर करें।
# घर की तथा नालियों की सफाई अवश्य करें।
# रात में मच्छरदानी का प्रयोग कर मलेरिया होने की संभावना को दूर भगाएं।
# घर के आसपास गड्डो को इस मौसम में पानी जमने से पूर्व भरवा दें।
# दूध की चाय के स्थान पर तुलसी के पत्ते या काली मिर्च की चाय का प्रयोग करें।
# खाद्य सामग्री को धूप में सुखाते रहने से उसमें पैदा होने वाले कीड़े तथा अन्क की विषाक्त से अपने को बचाएं।
# इन दिनों यदा कदा भंयकर तूफान से बिजली के खंभे गिर जाते हैं। बच्चों को उसके पास जाने से बचाएं।