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तत्त्वार्थसूत्र भजन- तृतीय अध्याय
June 14, 2020
भजन
jambudweep
भजन-३ तृतीय अध्याय
हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।।
आचार्य उमास्वामी तृतीय, अध्याय में ऐसा कहते हैं।
पापों के करण जीव नरक, आदिक दु:खों को सहते हैं।।
हैं मध्यलोक में मनुज और, तिर्यंच जीव यह बतलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।१।।
है द्वीप समुद्रों में वर्णित, भूगोल जैन जाना जाता।
साकाररूप उसका तीरथ, हस्तिनापुरी में दिख जाता।।
वहाँ जम्बूद्वीप व तेरहद्वीप के, दर्शन कर सब हरषाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।२।।
कुछ विज्ञ इसे नि:सार समझ, समुचित वर्णन नहिं करते हैं।
पर ज्ञानमती जी के प्रवचन, उन पर भी अनुग्रह करते हैं।।
‘‘चंदनामती’’ गुरुजन भी इस, अध्याय का महिमा बतलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।३।।
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Tatvaarth Sutra bhajan
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