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तत्त्वार्थसूत्र भजन-अष्टम अध्याय!
June 14, 2020
भजन
jambudweep
भजन-८ अष्टम अध्याय
हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।।
तत्त्वार्थसूत्र अष्टम अध्याय में, उमास्वामी जी कहते हैं।
वे बंधतत्व का वर्णन क्रमश:, पाँच हेतु से करते हैं।।
उस कर्मबंध के कारण ही, प्राणी संसारी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।१।।
प्रकृती स्थिति अनुभाग प्रदेश, ये चार भेद युत बंध कहा।
आठों कर्मों को इक सौ-अड़तालिस भेदों में पुन: कहा।।
मोहनीय कर्म सब कर्मों का राजा है आगम बतलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।२।।
शुभ कर्मों के फल से प्राणी को, सुख की प्राप्ती होती है।
प्राकृतिक रूप से अशुभ कर्म से, दुख की प्राप्ती होती है।।
‘‘चंदनामती’’ तत्त्वज्ञानी, सब में समता को अपनाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।३।।
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Tatvaarth Sutra bhajan
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