भगवान महावीर ज्योति रथ का प्रवर्तन जन्मभूमि से-महावीर जयंती के दिन ही १५ अप्रैल २००३ से मेरी प्रेरणानुसार एक ‘‘भगवान महावीर ज्योति’’ नाम से रथ (नंद्यावर्त महल के धातु मॉडल से समन्वित) का प्रवर्तन प्रारंभ हुआ।
जिसे देश के विभिन्न प्रान्तों में घुमाने का एक मात्र लक्ष्य था-महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर का प्रचार-प्रसार । वह रथ सफलता के साथ जगह-जगह भ्रमण करता हुआ अक्टूबर २००४ में कुण्डलपुर पहुँचेगा पुनः उसका प्रवर्तन समापन होने वाला है।
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को भी आकर अच्छा लगा
भगवान महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी तीर्थ पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री ए.पी. जे. अब्दुल कलाम का आगमन ३० मई २००३ को हुआ। उस दिन मैं अपने संघ सहित वहीं पर थी अतः जल मंदिर के दर्शन करके उन्होंने मेरा आशीर्वाद भी ग्रहण किया और बड़े प्रसन्न हुए पुनः अपने भाषण में उन्होंने कीचड़ में रहकर भी कमल को ऊपर उठाने की बात प्रत्येक मानव के जीवन पर घटित करते हुए साधु सत्संग से लाभ उठाने की सबको प्रेरणा दी। मैंने उन्हें पूर्ण शाकाहारी जानकर देश की उन्नति हेतु खूब-खूब मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
नवग्रहशांति मंदिर की प्रतिमाओं का पंचकल्याणक
दिनाँक ५ जुलाई से ९ जुलाई २००३ (आषाढ़ शुक्ला षष्ठी से दशमी) तक आरा निवासी श्री ज्ञानचंद जैन एवं उनकी धर्मपत्नी सौ. शशिलता जैन ने (समाज के साथ) कुण्डलपुर में नवग्रह की नौ तीर्थंकर प्रतिमाओं का पंचकल्याणक (लघु) प्रभावना के साथ सम्पन्न किया।
कुण्डलपुर में सैकड़ों वर्षों के इतिहास में मेरा प्रथम चातुर्मास हुआ
तीर्थ के उभरते स्वरूप को देखने की अभिलाषा एवं भगवान महावीर के कल्याणकों से पवित्र तीर्थ त्रिवेणी (कुण्डलपुर, राजगृही, पावापुरी) में भक्तिस्नान करने की भावना से मैंने ससंघ अपना २००३ का वर्षायोग १२ जुलाई (आषाढ़ शु. चतुर्दशी) को स्थापित किया तो बिहार प्रान्त के भक्तों ने बताया कि सौ वर्षों के इतिहास में कुण्डलपुर के अन्दर किसी साधु का चातुर्मास होना अब तक नहीं सुना है।
अब आपके चातुर्मास से यह तीर्थ देश-विदेश के यात्रियों का पर्यटन केन्द्र बन जाएगा। उनका यह मूल्यांकन वास्तव में खरा उतरा और दूर-दूर के यात्री कुण्डलपुर आकर चलते निर्माण कार्य को देखकर अत्यंत प्रसन्न होकर अपने अपूर्व सहयोग की भावना व्यक्त करते। उसी के फलस्वरूप तीर्थ का स्वरूप अति शीघ्र साकार हुआ है।
वर्षायोग स्थापना में मंगलकलश स्थापना कब से शुरू हुई?
मैंने बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज, उनके प्रथम शिष्य एवं प्रथम पट्टाचार्य गुरुवर्य श्री वीरसागर जी महाराज, आचार्यश्री शिवसागर जी महाराज एवं आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के संघ सानिध्य में वर्षायोग-चातुर्मास स्थापना देखी है एवं उनके साथ स्थापना की है।
इनमें से किन्हीं भी आचार्यों ने एवं आचार्य देशभूषण जी आदि आचार्यों ने चातुर्मास स्थापना के समय मंगलकलश स्थापित नहीं कराया था। यह परंपरा ८-१० वर्षों में कब और कैसे चली? कुछ श्रावकों के विशेष आग्रह से सन् १९९६ आदि में मैंने भी मंगलकलश स्थापना की अनुमति दे दी किंतु मुझे यह परंपरा समझ में नहीं आ रही है अतः अब मैंने २-३ बार के बाद इसे छोड़ दिया। मुझे आश्चर्य होता है कि कोई साधु एक मंगल कलश स्थापना करते हैं तो कोई-कोई तीन, सात, नौ, इक्कीस तथा कोई साधु एक सौ आठ मंगल कलश स्थापित करने लगे हैं।
उनकी ऊँची-ऊँची बोलियों से ही साधुओं की महानता को आंका जाने लगा है। सबसे अधिक आश्चर्य तो तब हुआ, जब मैंने स्वयं देखा-एक ग्राम के मंदिर में एक काँचकेस में मंगल कलश रखा था। चातुर्मास के बाद साधु वहाँ से विहार कर चुके थे, फिर भी प्रतिदिन लोग भगवान के दर्शन के बाद उस कलश के आगे चावल चढ़ाकर घुटने टेककर पंचांग नमस्कार कर रहे थे। मैंने पूछा-ऐसा क्यों? तब भक्तों ने कहा-मुझे गुरुदेव की आज्ञा है आदि ।
पोस्टर एवं कुंकुम पत्रिका में भी ‘‘चातुर्मास स्थापना समारोह’’ या ‘‘वर्षायोग स्थापना समारोह’’ न छपाकर ‘‘मंगल कलश स्थापना समारोह’’ छपने लगा है।
यह ‘‘मंगल कलश स्थापना’’ न तो कहीं आचारसार, मूलाचार, भगवती आराधना आदि मुनियों के आचार ग्रंथों में है और न कहीं उमास्वामी श्रावकाचार, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, वसुनंदिश्रावकाचार, सागारधर्मामृत आदि श्रावकाचार ग्रंथों में ही है। अतः मुझे ‘‘वर्षायोग स्थापना’’ के दिन यह मंगल कलश स्थापना करना इष्ट नहीं है और मैं यह जानना चाहती हूँ कि यह परम्परा कब, वैâसे एवं किसके द्वारा प्रारंभ की गई तथा अनेक साधुसंघ उसका अनुसरण क्यों करने लग गये?
महाराष्ट्र के भक्तमण्डल का समर्पण भाव
औरंगाबाद-महाराष्ट्र के प्रमुख श्रेष्ठी स्व. श्री जम्मनलाल जैन कासलीवाल ने वहाँ मेरे नाम से ‘‘गणिनी ज्ञानमती भक्तमण्डल’’ बना लिया, उसके समर्पित भक्तों ने कुण्डलपुर के पंचकल्याणक (फरवरी २००३) में समस्त आगंंतुकों एवं निकटवर्ती ग्रामवासियों के लिए अपनी ओर से प्रीतिभोज-भण्डारा का आयोजन किया पुन: वर्षायोग स्थापना में भक्तमण्डल ने पधारकर प्रतिनिधित्व किया
चातुर्मास के मध्य दशलक्षण पर्व में कुण्डलपुर आकर उन लोगों ने १ सितंबर से १० सितंबर २००३ तक कल्पद्रुम मण्डल विधान का भक्ति आयोजन सम्पन्न किया। इसके पश्चात् अक्टूबर में मेरे जन्मदिवस एवं कुण्डलपुर महोत्सव में भी पंचदिवसीय भण्डारा उसी भक्तमण्डल द्वारा आयोजित हुआ। आर्थिक भारवहन के साथ इन सभी की गुरुभक्ति वास्तव में अनुकरणीय है।
कुण्डलपुर महोत्सव में पर्यटन विभाग बिहार सरकार का संयुक्त तत्त्वावधान
भगवान महावीर जन्मभूमि की प्रगति के बढ़ते चरण राज्य सरकार की दृष्टि का भी केन्द्र बने और पर्यटन विभाग के अधिकारी आये दिन कुण्डलपुर में आकर उसकी वास्तविकता से परिचित होने लगे, तब एक दिन हम लोगोें ने अक्टूबर में ‘‘कुण्डलपुर महोत्सव’’ आयोजित करने की रूपरेखा बनाई।
समिति के अल्प प्रयासों से पर्यटन विभाग का संयुक्त तत्त्वावधान उस महोत्सव में जुड़ा और ८ से १० अक्टूबर २००३ (आसोज शु. तेरस से शरदपूर्णिमा) तक खूब धूमधाम से महोत्सव आयोजित हुआ। उसमें पूरे देश से एवं विशेषरूप से दिल्ली तथा बिहार प्रान्त से हजारों की संख्या में पधारे नर-नारियों ने कुण्डलपुर के निखरे स्वरूप को देखकर कोटि-कोटि धन्यवाद मुझे दिया, तो मैं कहने लगी कि यह सारा स्वरूप आप श्रावकों का श्रम है, मेरा इसमें कुछ भी नहीं है।
मुझे तो इस माध्यम से महावीर स्वामी की चरण रज प्राप्त हो गई है, यही मेरा धन्य भाग्य है।
भगवान ऋषभदेव नेशनल अवार्ड से धनंजय जैन सम्मानित
फरवरी २००३ में संस्थान और अनिल जैन प्रीतविहार-दिल्ली, कमलमंदिर के संयुक्त सौजन्य से घोषित किये गये अवार्ड से श्री वी. धनंजय जैन को सम्मानित करने का अवसर आया कुण्डलपुर में।
१० अक्टूबर २००३ शरदपूर्र्णिमा को बिहार के महामहिम राज्यपाल श्री एम.रामा. जोइस ने महोत्सव में पधारकर विशाल जनसमूह की गरिमामयी उपस्थिति में भगवान ऋषभदेव के प्रचार-प्रसार में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करने वाले मेरे अनन्य भक्त श्री धनंजय जैन (सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री) को इस संस्थान एवं जैन समाज के सर्वोच्च पुरस्कार से पुरस्कृत कर भावभीना सम्मान किया तो सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी, सभी ने पुरस्कार की महत्ता की एवं धनंजय जी के व्यक्तित्व की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तीर्थंकर जन्मभूमि विकास समिति की घोषणा
कुण्डलपुर महोत्सव में ही १० अक्टूबर शरदपूर्णिमा को मैंने भारत की सम्पूर्ण जैन समाज को चौबीसों तीर्थंकर की १६ जन्मभूमियों के जीर्णोद्धार एवं विकास करने को संस्कृति की सुरक्षा बताते हुए प्रेरणा दी और एक विकास समिति की घोषणा कर दी, जो प्राथमिक स्तर पर कुण्डलपुर की देखरेख पुनः बनारस, चन्द्रपुरी, कौशाम्बी आदि तीर्थों का सर्वे प्लान बनाते हुए तीर्थ विकास कार्य में संलग्न है।
मेरे श्रद्धालुभक्तों! मैंने अति संक्षेप में यहाँ अपने जीवन से संबंधित कतिपय कार्यकलापों का दिग्दर्शन कराया है। इन सभी कार्यों के मध्य मुझे बहुत सारे खट्टे-मीठे अनुभव प्राप्त हुए हैं, जिन्हें यथावत् प्रस्तुत करने से तो कई महानुभावों के मन में कटुता आ सकती है अतः उन्हें प्रस्तुत करना संभव नहीं हो पाया है।
उन निंदा-प्रशंसा के क्षणों में मैं विचलित होकर कार्यों से विमुख भी हो सकती थी किन्तु मुझे सदैव यही चिंतन आता है कि अपनी छोटी सी जिंदगी में वर्तमान में परिणाम विशुद्धि, जिनधर्म प्रभावना, तीर्थ निर्माण-विकास, साहित्य सृजन आदि के जो भी कार्य हो जावेंगे उनसे ही अगले भव के लिए पुण्यबंध होगा फिर थोड़ी सी निंदा से डरकर भारी पुण्योत्पादक कार्य करने में क्यों पीछे भागा जाए?
यदि निष्पक्ष भाव से कोई इन कार्यकलापों की समीक्षा करे, तो पाएगा कि उन सबके पीछे मेरी मात्र जिनवर भक्ति और आत्मशुद्धि ही प्रबल कारण है, मुझे ख्याति, लाभ की इच्छा कभी नहीं रही है।
नवंबर-दिसम्बर सन् २००३ में पावापुरी एवं राजगृही की पूर्व घोषित प्रतिमाओं के पंचकल्याणक मेरे सानिध्य में सम्पन्न हुए, वहाँ नवनिर्मित मंदिरों (पावापुर में) का निर्माण श्री विजय कुमार जैन, दरियागंज-दिल्ली एवं श्री सुभाषचंद जैन ऋषभविहार दिल्ली के सौजन्य से हुआ है तथा राजगृही में श्री अनिल जैन कमलमंदिर-दिल्ली परिवार के द्वारा किया गया है। दोनों स्थानों की पंचकल्याणक भी मंदिर निर्माताओं की ओर से ही हुई है जो उनकी तीर्थभक्ति का परिचायक है।
बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य कौन?
सन् १९८८ के बाद से प्रथमाचार्य श्री आदिसागर जी ‘अंकलीकर’ का विषय बहुत ही बढ़ता जा रहा है। इसके पूर्व मैंने आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज और आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज के मुख से यह विषय सुना ही नहीं था।
जब इस पर परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज को ही प्रथमाचार्य मानने वाले अनेक मुनियों ने व श्रावकों ने खोज करना प्रारंभ किया, तब सैकड़ों प्रमाण सामने आने लगे। यहाँ मैं इस पर विस्तार से चर्चा न करके अतिसंक्षेप में लिखना चाहूँगी कि जैनगजट (१४ अगस्त २००३) के माध्यम से पुराने एक ‘जैनमित्र’ का सबसे सबल प्रमाण सामने आया है- इसमें बहुत स्पष्ट छपा हुआ है-
जैनमित्र
बम्बई दिगंबर जैन प्रान्तिक सभा का साप्ताहिक पत्र वर्ष २६, सूरत, गुरुवार, आषाढ़ सुदी ११, वीर सं. २४५१, दिनाँक २ जुलाई १९२५ (अंक ३३) जैन समाचारावलि।
मुनि व त्यागियों के चातुर्मास
आचार्यश्री शांतिसागर जी तथा आपके संघ का चातुर्मास कुंभोज (कोल्हापुर) में हुआ है। यह स्थान हातकलंगडा स्टेशन से ६ मील है। मोटर गाड़ी आदि सवारी मिलती हैं। यहाँ जैनियों के करीब २९०-३०० घर हैं। सब प्रकार की अच्छी व्यवस्था है। आचार्य श्री शांतिसागर जी के साथ आपका निम्न संघ भी है। मुनि आदिसागर जी महाराज (अंकलीकर) मुनि नेमिसागर जी महाराज (कुड़चीकर) मुनि वीरसागर जी महाराज (नांदगांव) मुनि नेमिसागर जी महाराज (पुनुर मद्रास)
दूसरे कालम में
क्षुल्लक पायसागर महाराज (एनापुर) अर्जिका ताराबाई व रत्नाबाई (नांदणी) मुनिश्री शांतिसागर जी (छाणी) ललितपुर मुनि श्री आनंदसागर जी (ललितपुर) मुनि सूर्यसागर जी (ललितपुर) मुनि ज्ञानसागर जी (ग्वालियर) इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि सन् १९२५ में आचार्यश्री शांतिसागर जी ही एकमात्र आचार्य थे।
आदिसागर जी महाराज व छाणी वाले शांतिसागर जी महाराज मुनि ही थे। इस विषय पर अनेक प्रमाण उपलब्ध हो चुके हैं। अनेक साधु-साध्वी और विद्वानों द्वारा प्रकाशित भी कराये जा चुके हैं अतः अभी यहाँ इतना ही लिखना पर्याप्त है।
नवग्रहशांति मंदिर में जिनबिम्ब स्थापना एवं कलात्मक शिखरों पर कलशारोहण
कुण्डलपुर में तीनों मंदिरों (भगवान महावीर मंदिर, भगवान ऋषभदेव मंदिर एवं नवग्रहशांति जिनमंदिर) के ऊपर दक्षिण भारतीय डिजाइन वाले कलात्मक शिखरों का निर्माण बिहार प्रान्त के लिए अत्यन्त आकर्षक सिद्ध हुआ।
११ फरवरी से २३ फरवरी २००४ फाल्गुन कृ. तेरस से फाल्गुन शुक्ला तीज तक आयोजित लघु पंचकल्याणक, वेदी प्रतिष्ठा एवं कलशारोहण समारोह आयोजित किया गया, जिसमें महावीर मंदिर के शिखर में विराजमान की जाने वाली ४ प्रतिमाएँ (भगवान महावीर की सवा फुट पद्मासन) तथा दीक्षा मुद्रा वाली (पिच्छी-कमंडलु सहित) भगवान महावीर स्वामी की सवा पाँच फुट खड्गासन श्वेत प्रतिमा प्रतिष्ठित हुर्इं।
नवग्रहशांति मंदिर में बिल्कुल नये ढंग से बनाये गये नौ कमलों की वेदी शुद्धि २२ फरवरी को सौभाग्यशाली महिलाओं द्वारा ८१ कलशों से हुई और २३ फरवरी को प्रातः मोक्षकल्याणक के पश्चात् सर्वप्रथम नौ कमलवेदियों में नवग्रह शांतिकारक ९ तीर्थंकर भगवान (जिनकी प्रतिष्ठा जुलाई २००३ में हो चुकी थी) श्री ज्ञानचंद जैन-आरा ने बैण्ड बाजों की ध्वनि एवं भक्तसमूह के साथ विराजमान किये पुनः शिखर में चारों दिशा में चार प्रतिमा श्री ऋषभदास दीपक कुमार जैन-बनारस परिवार ने विराजमान कीं।
इसके बाद प्रवचन सभा का आयोजन हुआ, जिसमें नालंदा के डी.एम. श्री आनंद किशोर जी एवं विधायक श्री श्रवण कुमार जी ने भी सभा को सम्बोधित किया और कलशारोहण करने वाले बनारस एवं आरा के परिवारों को कुण्डलपुर समिति की ओर से सम्मानित किया गया पुनः शुभ मुहूर्त में (प्रातः ११ बजे) भगवान महावीर के मूल मंदिर एवं ऋषभदेव मंदिर के शिखर पर श्रीऋषभदास दीपक कुमार जैन-बनारस वालों ने सपरिवार कलशारोहण एवं ध्वज स्थापना किया, इसी प्रकार नवग्रह शांतिमंदिर के शिखर पर श्री ज्ञानचंद जैन-आरा परिवार ने कलशारोहण तथा ध्वज स्थापना करके सातिशय पुण्य सम्पादित किया। तीन मंदिरों पर एक साथ कलशारोहण होने का यह सुखद संयोग मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है।