गृहिणी या कामकाजी महिला की भूमिका का निभाना शारीरिक व मानसिक तौर पर बहुत कठिनाई भरा होता है। इससे उसे व्यायाम करने के लिए वक्त नहीं मिल पाता है जब कि यह स्वस्थ जीवन शैली के लिए बेहद अहम है। बतौर एक मां वह अपने परिवार व बच्चों को प्राथमिकता देती है और उस की सेहत पीछे छूट जाती है। पूरा दिन काम करते—करते वह यह भूल जाती है कि उसका पूरा शरीर पुरूष से भिन्न है और उसे कुछ अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है। स्त्रियों के कूल्हे उनके घुटनों के मुकाबले चौड़े होते हैं और उन के घुटनों के जोड़ उतने सीधे नहीं होते है जितने कि पुरूषों के होते हैं इसलिए स्त्री शरीर के अलाइनमैंट की वजह से उन के घुटनों में चोट लगने की सभांवना बढ़ जाती है यही नहीं अनुसंधान दर्शाते है कि स्त्री हारमोन ऐस्ट्रोजन उनके कार्टिलेज पर असर डाल सकते है। सबूत बताते हैं कि एंस्ट्रोजन कार्टिलेज का इंफलेमेशन सूजन, जलन से बचाते हैं। इंफलेमेशन से ओस्टियोआर्थाइटिस हो सकता है। यद्यपि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं का ऐस्ट्रोजन स्तर नीचे चला जाता है। जिससे उनकी हड्डियों की क्षति का जोखिम बढ़ जाता है। औस्टियोआर्थाइटिस जोड़ो का एक विकार है, जो लाखों भारतीयों को प्रभावित करता है। इससे हड्डियां कमजोर होती हैं और की संभावना बढ़ जाती है। ऑस्टियोपोरोसिस एक बिना किसी बाहरी लक्षण लगातार बढ़ने वाली बीमारी है, जिसके कारण हड्डियाँ पतली और कमजोर होने लगती है और रजोनिवृत हो चुकी महिलाओं में आमतौर पर यह बीमारी पाई जाती है, लेकिन पुरुषों को भी यह बीमारी हो सकती है,जैसे— जैसे हड्डियां और ज्यादा छिद्रयुक्त और कमजोर होती जाती है, हड्डी टूटने का जोखिम और बढ़ता है। इसके कारण अक्सर शुरूआत में कोई लक्षण तब तक नहीं दिखाई देते, जब तक एक बार हड्डी नहीं टूटती। औस्टियोआर्थअइटिस के कारण आम तौर पर रीढ़, कूल्हे और कलाई की हड्डी टूट जाती है। दो में एक स्त्री और चार पुरूषों में से एक पुरूष को ५० वर्षों से अधिक उम्र में आस्टियोपोरेसिस के कारण हो सकता है।
आमतौर पर पाए जाने वाले लक्षणों में कूल्हे, हाथ एवं कलाई की हड्डियों में दर्द होना, पीठ के निचले हिस्से अथवा कमर में दर्द, कमर का झुक जाना गर्दन में दर्द, कूल्हे रीढ़, पीठ या कलाई की हड्डियों में कभी कभी बिना गिरे ही फैक्चर होना आदि औस्टियोपोरोसिस का संकेत करते है।
लक्षणों के आधार पर ओस्टियोपोरेसिस होने का पूर्वानुमान लग जाता है। फिर भी इसका पता अस्थि खनिज घनत्व मापन विधि द्वारा किया जा सकता है। रक्त जांच कर उसमें किडनी कार्य प्रणाली कैल्शियम, फोस्फोरस, विटामिन डी आदि नापा जाता है।
डीएक्सएएसएक्सए जैसे टैस्ट किए जाते हैं और समस्या की गंभीरता का पता लगाया जाता है। अत: केस के अनुसार ही उपाय व उपचार सुझाया जाता है।फैक्चर के कैसों में हड्डी के डॉक्टरों की अहम भूमिका होती है। लेकिन यह भी समझ लें कि ओस्टियोपारोसिस का कोई सटीक उपचार नहीं होता है। युवावस्था से ही सही पोषण और कसरत से अपनी हड्डीयों को ख्याल रखकर आप बढ़ती उम्र में भी अपनी हड्डीयों का मजबूत बनाए रख सकते हैं और सेहतमंद जिंदगी जी सकते है।
हड्डियों की सेहत व मजबूती बनाए रखने के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बेहद जरूरी है। अस्थि क्षति से जूझ रहे है तो हड्डियों को मजबूती दे सकते है। यहां तक कि अस्थि क्षति की रोकथाम भी कर सकते है। चलना व दौड़ना, नाचना और वजन उठाना हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए विशेष तौर पर फायदेमंद है। तैरना भी अच्छा है। शारीरिक कसरत से हड्डियों पर हल्का दबाव पड़ता है। और इस किस्म की गतिविधियों से हड्डियां मजबूत बनती है।
कुछ ऐसे पोषक तत्व और पदार्थ है, जो औस्टियोआथ्राइटिस को गंभीर रूप लेने से रोकते हैं । आहार चिकित्सा इस रोग के दर्द व इंफलेमेशन को घटाने में मददगार है। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि विटामिन सी,डी,ई, ऐंटीऔक्सीडैंट और ओमेगाा—३ फैटी ऐसिड्स में औस्टियोआथ्र्राइटिस के विरुद्ध रक्षात्मक गुण होते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खाद्यपदार्थ, जिनमें उच्चस्तरीय परिष्कृत भोज्य शामिल होते हैं। जैसे सफेद चावल, सफेद ब्रेड, मीठा सफेद पास्ता और सैचुरेटेड ट्रांस फैट से भरी चीजें, ओस्टयोआथ्र्राइटिस के विकास का कारण बनते है।
घुटनो व कूल्हों के अलावा गरदन, कमर, हाथों के अंगूठों के जोड़, उंगलियों व पैरों के अंगूठों को भी ओस्टयोआथ्र्राइटिस प्रभावित करता है। उपचार से दर्दनाशक स्थिति में जाने से बचा जा सकता है।