शरदपूर्णिमा महोत्सव-२०१४ में प्रदान किए जाने वाले पुरस्कारों का परिचय
परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से सन् १९७२ में ‘‘दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान’’ की स्थापना की गई, तब से लगातार इस संस्था के माध्यम से अनेक विशाल कार्यक्रम सम्पन्न हुए, जिसमें जम्बूद्वीप रचना का निर्माण, साहित्य प्रकाशन, ‘सम्यग्ज्ञान’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन, अनेक तीर्थों के जीर्णोद्धार-विकास, प्रयाग, कुण्डलपुर, काकंदी, अयोध्या, सम्मेदशिखर जी आदि तीर्थभूमियों पर नवनिर्माण, गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती दीक्षा तीर्थ-माधोराजपुरा के निर्माण में विशेष सहयोग तथा अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी (राज.) में पंचबालयति दिगम्बर जैन मंदिर व धारूहेड़ा (हरियाणा) में श्री शांतिनाथ जिनालय दि. जैन मंदिर का कुशल संचालन, विभिन्न सम-सामायिक विषयों पर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार, शिक्षण-प्रशिक्षण शिविरों के आयोजन व महोत्सव आदि प्रमुख कार्य हैं।
इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष पूज्य माताजी के जन्मदिवस-शरदपूर्णिमा के अवसर पर कुछ प्रतिभाशाली विद्वानों एवं कार्यकर्ताओं को विभिन्न पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जाता है, उनमें से एक है जम्बूद्वीप पुरस्कार-दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर द्वारा वर्ष २००० में स्थापित इस पुरस्कार में २५०००/-रुपये की नगद राशि, प्रशस्ति पत्र, शॉल, श्रीफल एवं साहित्य आदि प्रदान किया जाता है।
सन् २००० का यह पुरस्कार इंजीनियर के.सी. जैन-मेरठ (उ.प्र.) को, सन् २००१ का ज्योतिषरत्न पण्डित श्री धनराज जैन-अमी्नागरसराय को, सन् २००२ का डॉ. शेखरचंद जैन-अहमदाबाद (गुजरात) को, सन् २००३ का डॉ. चिरंजीलाल जैन बगड़ा-कोलकाता को, सन् २००४ में पं. सुधर्मचंद जैन शास्त्री-तिवरी (म.प्र.) को, सन् २००५ में श्री माणिकचंद जैन पाटनी-इंदौर को, सन् २००६ में श्री डी.ए.पाटिल-जयसिंहपुर (महा.) को, सन् २००७ में श्रीमती उषा देवी रारा-नलवाड़ी (आसाम) को, सन् २००८ का पुरस्कार पं. श्री लालचंद जैन ‘राकेश’-गंजबासौदा (म.प्र.) को,।
सन् २००९ का पुरस्कार दिगम्बर जैन नैतिक शिक्षा समिति, दरियागंज-दिल्ली, सन् २०१० का पुरस्कार प्राचार्य श्री निहालचंद जैन-बीना (म.प्र.), सन् २०११ का पुरस्कार श्री विनोद भाई शाह ‘हर्ष’-अहमदाबाद (गुजरात) को, सन् २०१२ का श्रीमती अर्चना कासलीवाल-चांदवड़ (महा.) को एवं सन् २०१३ का पुरस्कार प्रतिष्ठाचार्य पं. नरेश कुमार जैन शास्त्री, जम्बूद्वीप को प्रदान किया गया है।
जम्बूद्वीप पुरस्कार-२०१४ से सम्मानित श्री आदीश्वर प्रसाद जैन हकीम, सरधना (उ.प्र.)
नाम-श्री आदीश्वर प्रसाद जैन हकीम, धर्मपत्नी-श्रीमती शकुन्तला देवी जैन जन्म-१८-१०-१९४१ माता-पिता-श्रीमती रैनमती देवी जैन-श्री पदमसेन जैन हकीम शिक्षा-इंटर उत्तीर्ण परिवारजन-३ भाई-श्री विक्रमसेन जैन, श्री सतीश कुमार जैन एवं आप स्वयं, ३ बहनें-श्रीमती उर्मिला जैन, श्रीमती निर्मला जैन एवं श्रीमती संतोष देवी जैन।
२ पुत्र-श्री मुकेश कुमार जैन, श्री राजेश्वर कुमार जैन, ३ पुत्री-श्रीमती राखी जैन-श्री प्रवीण कुमार जैन, दिल्ली, श्रीमती रश्मि जैन-श्री सुनील कुमार जैन, दिल्ली, श्रीमती रितु जैन-श्री अभय कुमार जैन, मेरठ। व्यवसाय-युनानी एवं आयुर्वेदिक दवाखाना सामाजिक व्यक्तित्व-सरधना (मेरठ) उ.प्र. में आपका एक विशेष स्थान है तथा सदैव ही उदार, सरल, कर्मठ, दानवीर एवं गुरुभक्त श्रेष्ठ श्रावक के रूप में आपको जाना जाता है। सरधना में श्री दिगम्बर जैन मुनि नमिसागर औषधालय के आप प्रबंधक हैं, श्री दिगम्बर जैन अतिशय पदमप्रभु मंदिर प्रबंध समिति के विशिष्ट सदस्य हैं तथा जैन बाल संघ परिवार व अ.भा.दि. जैन युवा परिषद के परम संरक्षक पद पर आसीन हैं।
गुरुभक्ति-आप पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के अनन्य भक्त हैं तथा विगत ४० वर्षों से लगातार ही सभी दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों के प्रति आप नि:स्वार्थ भाव के साथ शुद्ध औषधि से उनके उपचार में अग्रसर रहते हैं। इस प्रकार श्री आदीश्वर हकीम जी ने विशेषरूप से अपना मनुष्य जीवन दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की सेवा हेतु समर्पित करके महान पुण्यार्जन किया है अत: ऐसे हकीम जी को आज हम शरदपूर्णिमा-८ अक्टूबर २०१४ के शुभ अवसर पर ‘‘जम्बूद्वीप पुरस्कार’’ से सम्मानित करते हुए अत्यन्त हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं।
आर्यिका श्री रत्नमती पुरस्कार परिचय
जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी जैसे महान रत्न को जन्म देने वाली पुण्यशालिनी माता हुर्इं मोहिनी देवी जी। महमूदाबाद (सीतापुर) उ.प्र. निवासी मोहिनी देवी का विवाह टिकैतनगर (बाराबंकी) के श्री छोटेलाल जैन के साथ हुआ।
पुनश्च आपके दाम्पत्य जीवन में १३ संतानों ने जन्म लिया, जिन सभी को मोहिनी देवी ने जैनधर्म के संस्कारों से भरपूर ओतप्रोत करके संस्कारित किया। इसके परिणामस्वरूप १३ संतानों में से ४ संतानों ने अपने जीवन में मोक्ष के मार्ग को अपनाया। इनमें आज प्रथम संतान कु. मैना, जैन समाज की वरिष्ठतम साध्वी पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के रूप में जैनधर्म की प्रभावना में बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी की महान आर्यिका सिद्ध हुई हैं।
आपके अलावा सुपुत्री कु. मनोवती ने आर्यिका अभयमती (स्व.) तथा कु. माधुरी ने आर्यिका चंदनामती बनकर व सुपुत्र रवीन्द्र जैन आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर आज जम्बूद्वीप के पीठाधीश दशम प्रतिमाधारी स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के नाम से प्रसिद्ध हैं। विशेषता यह है कि मोहिनी देवी ने स्वयं गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से सन् १९७१ में आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर आर्यिका रत्नमती नाम प्राप्त किया और अपने जीवन को सफल किया।
आर्यिका रत्नमती माताजी का जन्म सन् १९१४ में मगसिर वदी पंचमी को हुआ तथा माघ कृ. नवमी, १५ जनवरी १९८५ के दिन अत्यन्त शांत एवं निर्मल परिणामों के साथ जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में समाधि सम्पन्न हुई। ऐसी माता की शुभ स्मृति में जम्बूद्वीप संस्थान द्वारा आर्यिका रत्नमती पुरस्कार की स्थापना सन् १९९९ में की गई, जिसे वर्तमान में श्री कोमलचंद जैन-महमूदाबाद के सौजन्य से प्रतिवर्ष समाज के किसी वरिष्ठ विद्वान्/साहित्यकार/ समाजसेवी आदि को प्रदान किया जाता है।
वर्ष-२०१० से इस पुरस्कार में २५०००/-रुपये की नगद राशि, प्रशस्ति पत्र, शॉल, श्रीफल एवं साहित्य आदि प्रदान किया जाता हैै। जबकि इससे पूर्व वर्ष २००९ तक इस पुरस्कार में ११०००/-रुपये की सम्मान राशि प्रदान की जाती थी।
वर्ष १९९९ से २०१० तक यह पुरस्कार क्रमश: डॉ. नीलम जैन-गुड़गाँवा, प्रो. टीकमचंद जैन-दिल्ली, डॉ. नन्दलाल जैन-रींवा, श्रीमती सुमन जैन-इंदौर, श्री सुरेश जैन मारोरा-शिवपुरी, श्रीमती प्रभा जैन-दिल्ली, श्रीमती सुलोचना जैन, मॉडल टाउन-दिल्ली, श्री शैलेष कापड़िया-सूरत (गुज.), ब्र. रेवती दोशी, अकलूज (महा.), श्रीमती बबीता जैन ‘प्रेरणा’-एटा (उ.प्र.), डॉ. कपूरचंद जैन-खतौली (उ.प्र.) एवं सौ. पुष्पा कस्तूरचंद बड़जाते-औरंगाबाद (महा.) को प्रदान किया गया है
तथा सन् २०१२ का यह पुरस्कार सौ. अरुणा जैन पाटनी-औरंगाबाद (महा.) को एवं सन् २०१३ का यह पुरस्कार श्रीमती प्रेमाबाई बज-कोपरगांव (महा.) को प्रदान किया गया है।
आर्यिका श्री रत्नमती पुरस्कार-२०१४ से सम्मानित श्रीमती मनोरमा जैन, विकासपुरी, दिल्ली
नाम-श्रीमती मनोरमा जैन, पति-श्री महेशचंद जैन जन्म-१९५१, महावीर जयंती, धौलपुर (राज.) माता-पिता -श्रीमती राधा देवी जैन-श्री सुमतिचंद जैन शिक्षा-बी.ए. (धौलपुर से), एम.ए.-गोल्ड मैडल (अजमेर से) परिवारजन-३ पुत्र-पुत्रवधुएँ-श्री राहुल जैन-डॉ. मोनिका जैन, श्री मुकुल जैन-श्रीमती वैशाली जैन, श्री सिद्धार्थ जैन-श्रीमती शिवांगी जैन।
सभी उच्च शिक्षित हैं। सामाजिक व्यक्तित्व-वर्तमान में अ.भा. दि. जैन महिला संगठन की राष्ट्रीय महामंत्री के साथ ही दिगम्बर जैन समाज, विकासपुरी, दिल्ली में आप विशेष अग्रणी रहकर समाज सेवा में संलग्न हैं। आपने कल्पद्रुम, इन्द्रध्वज, तीनलोक, सर्वतोभद्र, समवसरण, सिद्धचक्र तथा विश्वशांति महावीर विधान, आदि अनगिनत छोटे-बड़े पूजा-मण्डलोें का आयोजन करके समाज की महिलाओं को धर्मकार्य का बहुमूल्य अवसर प्रदान किया तथा विश्वशांति अहिंसा वर्ष, आचार्य श्री शांतिसागर वर्ष, आचार्य श्री वीरसागर वर्ष तथा चारित्रवद्र्धनोत्सव वर्ष के माध्यम से आपने अहिंसा-धर्म एवं गुरु गुणानुवाद के अत्यन्त प्रभावनापूर्वक कार्य किये। वर्तमान में भी आप श्री गौतम गणधर वर्ष में विभिन्न कार्यकलाप कर रही हैं।
गुरुभक्ति-सन् १९७१ में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का अजमेर (राज.) में प्रथम दर्शन करने के उपरांत आज तक आपके हृदय में पूज्य माताजी के प्रति असीम गुरुभक्ति समाहित रहती है तथा प्रत्येक गुरु-आज्ञा को शिरोधार्य करके विपुल दान भावनाओं के साथ धर्म व समाज सेवा में आप सदैव अग्रसर रहती हैं। पुरस्कार-आपके क्रियाशील व्यक्तित्व को देखकर महिला संगठन-दिल्ली द्वारा ‘त्रिशला माता पुरस्कार’ एवं ‘वामा देवी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।
अत: ऐसी समाजसेवी मनोरमा जी को आज हम शरदपूर्णिमा-८ अक्टूबर २०१४ के शुभ अवसर पर ‘‘आर्यिका श्री रत्नमती पुरस्कार’’ से सम्मानित करते हुए अत्यन्त हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं।
श्री छोटेलाल जैन स्मृति पुरस्कार परिचय
टिकैतनगर (बाराबंकी) उ.प्र. निवासी लाला श्री छोटेलाल जैन का जन्म सन् १९०४ में श्रेष्ठी श्री धन्य कुमार जैन की धर्मपत्नी फूलमती देवी की कुक्षि से हुआ था। वे प्रारंभ से ही जिनदर्शन, दान-पूजन, स्वाध्याय इत्यादि समस्त श्रावकोचित क्रियाओं के पालन में सदैव तत्पर रहते थे। उनके दो भाई और तीन बहनें थीं।
सभी लोग आज संसार में नहीं हैं किन्तु उन सभी के पुत्रादि धर्मकार्य में संलग्न हैं। छोटेलाल जी का सबसे बड़ा परिचय यही है कि उन्होंने पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी जैसी महान आत्मा के पिता होने का गौरव प्राप्त किया। प्रारंभ से ही शान्त-सरल स्वभावी छोटेलाल जी ने अपने सभी पुत्र-पुत्रियों में ऐसे धार्मिक संस्कार डाले कि उनकी १३ सन्तानों (४ पुत्र एवं ९ पुत्रियाँ) में से ३ पुत्रियाँ (गणिनी ज्ञानमती माताजी, आर्यिका अभयमती माताजी (स्व.), आर्यिका चन्दनामती माताजी) एवं १ पुत्र (पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी) आज अपने ज्ञान आदि के द्वारा समस्त समाज को दिशानिर्देश प्रदान कर रहे हैं।
सावधानीपूर्वक समस्त गृहस्थ क्रियाओं का पालन करके लाला श्री छोटेलाल जी ने २५ दिसम्बर १९६९ को सुन्दर समाधिमरण प्राप्त किया, उनकी स्मृति में उनके तृतीय पुत्र श्री सुभाषचंद जैन एवं पौत्र श्री शुभचंद्र जैन, सुयश जैन- टिकैतनगर के सौजन्य से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान-हस्तिनापुर द्वारा ११ हजार रुपये की नगद राशि, प्रशस्ति-पत्र, शॉल इत्यादि से सहित ‘‘श्री छोटेलाल जैन स्मृति पुरस्कार’ सन् २००३ से प्रारंभ किया गया।
पश्चात् सन् २०१२ से इस पुरस्कार की सम्मान राशि २५०००/-रुपये कर दी गई है। सन् २००३ का यह पुरस्कार श्री राजेन्द्र कुमार जैन-मुम्बई (वास्तु शास्त्री) को, सन् २००४ का पुरस्कार श्री उमेश जैन-फिरोजाबाद को, सन् २००५ का पुरस्कार श्री उदयभान जैन-जयपुर (राज.) को, सन् २००६ का पुरस्कार श्री दिलीप जैन-जयपुर (राज.) को, सन् २००७ का ज्योतिषसम्राट् पं. गजेन्द्र जैन, फर्रुखनगर (हरियाणा) को, सन् २००८ का डॉ. एस.के. जैन, भिण्ड को, सन् २००९ का श्रीमती लक्ष्मी गुरुचरणदास जैन-मुम्बई (महा.) को, सन् २०१० का पुरस्कार पं. चन्द्रप्रकाश जैन ‘चन्दर’-ग्वालियर (म.प्र.) को, सन् २०१२ का श्री महेन्द्र कुमार जैन-भोपाल (म.प्र.) को एवं सन् २०१३ का यह पुरस्कार प्रतिष्ठाचार्य पं. प्रवीणचंद जैन शास्त्री-जम्बूद्वीप को प्रदान किया गया है।
श्री छोटेलाल जैन स्मृति पुरस्कार-२०१४ से सम्मानितश्री रमेश कासलीवाल, इंदौर (म.प्र.)
सन् १९४७ में इंदौर (म.प्र.) में जन्में श्री रमेश कासलीवाल एक क्रांतिकारी चिंतक, प्रखर पत्रकार और वीर निकलंक मासिक पत्र के सम्पादक हैं, जिन्होंने समाज की ज्वलंत समस्याओं को अपनी लेखनी से संतों तथा प्रबुद्ध वर्ग के सामने प्रस्तुत किया, जिससे समाज को उन समस्याओं से निजात भी प्राप्त हुआ।
सतत् २० वर्षों से प्रकाशित हो रहा वीर निकलंक मासिक पत्र आज देश के पाठकों में विशेष स्थान को प्राप्त है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा तथा एम.ए. (हिन्दी) व साहित्यरत्न की शिक्षा प्राप्त करने वाले श्री रमेश जी पत्रकार से पहले एक कर्मठ एवं समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनकी पहचान एक अच्छे वक्ता, लेखक, कवि, गायक, भजन रचनाकार और कुशल मंच संचालक के रूप में व्याप्त है।
आपकी कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण आपको दिगम्बर जैन महासमिति के अखिल भारतीय युवा प्रकोष्ठ का प्रथम संयोजक मनोनीत किया गया तथा गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद से अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महिला संगठन के विकास में आपकी अहम भूमिका रही। इंदौर में दिगम्बर जैन इण्डस्ट्रियलिस्ट एवं इंजीनियर प्रकोष्ठ तथा दिगम्बर जैन डाक्टर्स प्रकोष्ठ की स्थापना आपकी सूझबूझ का ही परिणाम है।
आप धर्मप्रभावना के क्षेत्र में विगत २० वर्षों से लगातार इंदौर शहर में भगवान आदिनाथ जयंती से भगवान महावीर जयंती तक ‘‘झलक जैन संस्कृति पदयात्रा’’ का कुशल संचालन एवं संयोजन करते हैं तथा धर्मचक्र और जनमंगल महाकलश प्रवर्तन आदि विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों में आपका योगदान है।
अत: ऐसे कर्मनिष्ठ तथा समाज के प्रखर प्रहरी श्री रमेश कासलीवाल जी को आज हम शरदपूर्णिमा-८ अक्टूबर २०१४ के शुभ अवसर पर ‘‘श्री छोटेलाल जैन स्मृति पुरस्कार’’ से सम्मानित करते हुए अत्यन्त हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं।
स्व. श्री प्रकाशचंद जैन-टिकैतनगर की पुण्य स्मृति में स्थापित श्री प्रकाशचंद जैन स्मृति पुरस्कार परिचय
टिकैतनगर (बाराबंकी) उ.प्र. निवासी स्व. श्री प्रकाशचंद जैन का जन्म २२ मार्च १९४५ को चैत्र शु. नवमी-रामनवमी की पावन तिथि में श्रेष्ठी श्री छोटेलाल जी की धर्मपरायण पत्नी श्रीमती मोहिनी देवी (दीक्षा के पश्चात् आर्यिका रत्नमती माताजी) की पवित्र कुक्षि से हुआ। लाला छोटेलाल जी की ९ पुत्रियों एवं ४ पुत्रों में से आप छठवीं संतान थे।
आपको जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी, पूज्य स्व. आर्यिका श्री अभयमती माताजी, प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी एवं कर्मयोगी पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के गृहस्थावस्था के भ्राता होने का गौरव प्राप्त है। विशेषत: सन् १९६२ में आपने पूज्य माताजी को संघ सहित सम्मेदशिखर की यात्रा करवाकर महान पुण्य का संचय किया और त्यागमार्ग पर निकलने का भी प्रयास किया किन्तु पिताजी ने सन् १९६६ में आपका विवाह नेपालगंज (बहराइच के निकट छोटा नेपाल) निवासी लाला श्री जयकुमार जी की सुपुत्री आयु. ज्ञानादेवी के साथ कर दिया।
आपने अपनी माँ के ही नाम से ‘‘पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती बाल विद्या मंदिर’’ की स्थापना की, जहाँ से शिक्षा-प्राप्त आज कई विद्यार्थी अच्छे पदों पर आसीन हैं। आपके ४ पुत्र-वीरकुमार, राजन, अकलंक, निकलंक (सभी विवाहित) एवं ३ पुत्रियों-श्रीमती माला जैन, कु. जागृति एवं कु. इन्दू हैं। इनमें से कु. इन्दू जैन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर पूज्य माताजी के सान्निध्य में साधनारत हैं तथा १ पुत्र अकलंक जैन प्रतिष्ठाचार्य हैं।
धार्मिक संस्कारों के कारण ही सारा परिवार निरन्तर देव-शास्त्र-गुरु भक्ति में तत्पर है। समस्त गृहस्थोचित क्रियाओं का पालन करते हुए श्री प्रकाशचंद्र जी ने २१ मार्च २००५, फाल्गुन शु. एकादशी को लगभग ३ वर्ष की लम्बी बीमारी के पश्चात् समाधिमरणपूर्वक इस नश्वर शरीर का त्याग किया, एतदर्थ उनकी पुण्य स्मृति को चिरस्थाई रखने के उद्देश्य से उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ज्ञाना देवी एवं पुत्रों ने दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान-हस्तिनापुर के माध्यम से प्रतिवर्ष एक पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया, जिसके फलस्वरूप सन् २०१२ का प्रथम पुरस्कार चि. पुलकित जैन-दिल्ली को तथा सन् २०१३ का यह पुरस्कार पं. रितेश कुमार जैन ‘शास्त्री’-केसली (सागर) म.प्र. को प्रदान किया गया।
प्रारंभ में इस पुरस्कार में प्रशस्त्रि पत्र आदि के साथ ११०००/-रुपये की सम्मान राशि प्रदान की गई लेकिन सन् २०१४ से इसकी सम्मान राशि २५०००/-रुपये कर दी गई है।
श्री प्रकाशचंद जैन स्मृति पुरस्कार-२०१४ से सम्मानित पण्डितरत्न श्री पदमचंद जैन शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य, पानीपत
नाम -पं. पदमचंद जैन शास्त्री (पानीपत वाले), साहिबाबाद (उ.प्र.), धर्मपत्नी-सौ. पुष्पा देवी जैन जन्म -९ मई १९४२, कलकत्ता (प. बंगाल) माता-पिता-स्व. मातुश्री श्रीमती तुलसाबाई जैन-स्व. पण्डित प्रवर सिद्धान्तरत्न श्री नन्हें लाल जैन। शिक्षा-बनारस से साहित्य शास्त्री, विशिष्ट शास्त्री, सिद्धान्त शास्त्री कार्यक्षेत्र-४५ वर्षों तक इंदौर, उज्जैन, पानीपत आदि में इंटर कालेज तथा सीनियर सेकेण्ड्री स्वूâल में अध्यापक पद पर रहकर लौकिक शिक्षा व धार्मिक शिक्षा का अध्यापन।
धार्मिक/सामाजिक कार्यकलाप-आपके द्वारा भारतवर्ष के अनेक नगरों, स्थानों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, वेदी प्रतिष्ठा, बड़े-छोटे पूजा-विधान आदि सम्पन्न कराये गये हैं तथा अनेक स्थानों पर जैनत्व जागरण हेतु सभा, गोष्ठी व शिविर आदि के माध्यम से धर्म का प्रचार-प्रसार, व्याख्यान, आलेख प्रस्तुति व लेखन आदि कार्य भी किये गये हैं। साहित्यिक अवदान-‘‘भगवान महावीर और जैनधर्म’’ तथा ‘‘जैनधर्म एवं विश्व धर्म’’ लघु पुस्तकों का लेखन।
गुरुभक्ति-विगत ३५-४० वर्षों से अनवरत पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति अटूट श्रद्धा व समर्पण का भाव रखकर उनके द्वारा प्रदत्त योजनाओं में सहभागिता व आदेश पालन। उपाधियाँ-दिल्ली, पानीपत, मुजफ्फरनगर, बड़ौत, नागपुर, छिंदवाड़ा, इंदौर आदि स्थानों से ‘‘पण्डितरत्न’’, ‘‘सिद्धान्तमहोदधि’’, ‘‘प्रतिष्ठातिलक’’, ‘‘प्रतिष्ठाचार्य’’ आदि उपाधि अलंकरण तथा अ.भा. दि. जैन शास्त्री परिषद व इंटर नेशनल जैन फोरम, दिल्ली द्वारा विशेष सम्मान।
विशिष्ट पद-तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के पूर्व कोषाध्यक्ष एवं वर्तमान उपाध्यक्ष, शास्त्री परिषद में कार्यकारिणी सदस्य। अत: ऐसे पं. पदमचंद जी को आज हम शरदपूर्णिमा-८ अक्टूबर २०१४ के शुभ अवसर पर ‘‘श्री प्रकाशचंद जैन स्मृति पुरस्कार’’ से सम्मानित करते हुए अत्यन्त हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं।
तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा स्थापित श्रीमती चंदारानी जैन स्मृति पुरस्कार परिचय
श्रीमती चन्दारानी जैन का जन्म उत्तरप्रदेश में बाराबंकी जिले के टिकैतनगर नामक कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम स्व. श्री शान्तिप्रसाद जैन तथा माता का नाम श्रीमती जैनमती था। युवा अवस्था में माता-पिता ने पुत्री चन्दारानी का विवाह टिकैतनगर ग्राम में ही श्रेष्ठी श्री छोटेलाल जी के बड़े सुपुत्र श्री केलाशचंद जैन के साथ सम्पन्न किया। सौभाग्यवती चन्दारानी सदैव जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक-पूजन करते हुए रात्रि भोजन त्याग की प्रतिज्ञा का पालन करती थी।
धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत चंदारानी जैन अपने पति एवं सास-ससुर के साथ आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज एवं आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के संघ में विभिन्न स्थानों पर जाकर चौका लगाकर आहारदान आदि के द्वारा संघ की वैय्यावृत्ति करके विशेष पुण्यबंध किया करती थीं। माता मोहिनी जैसी आदर्श नारीरत्न की पुत्रवधू होना उनके लिए विशेष सौभाग्य की बात थी।
उन्होंने अपने जीवनकाल में सम्मेदशिखर, गिरनार, राजगृही, कुण्डलपुर, पावापुरी आदि भारत के लगभग सभी तीर्थों की यात्रा करके अपने मानव जन्म को धन्य किया था। ऐसी धार्मिक नारी श्रीमती चंदारानी का स्वर्गवास कम उम्र में अचानक ही हृदयगति रुक जाने के कारण १८ फरवरी १९९६ को हो गया था।
उनकी स्मृति में श्री कैलाशचंद जी द्वारा सन् १९९९ से प्रतिवर्ष तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा स्थापित ‘श्रीमती चंदारानी जैन स्मृति पुरस्कार’ किसी विशिष्ट व्यक्ति को प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के अन्तर्गत ११ हजार रुपये की नगद राशि, प्रशस्ति पत्र, शॉल एवं श्रीफल प्रदान किया जाता है।
सर्वप्रथम सन् १९९९ का यह पुरस्कार श्रीमती अरुणा जैन ‘भारती’, मॉडल टाउन-दिल्ली को, सन् २००० का पुरस्कार श्रीमती सुमन जैन-इंदौर को, २००१ में श्री दयाचंद जैन साहित्याचार्य-सागर एवं पं. जयसेन जैन-इंदौर को (सम्मिलित रूप से), २००२ में पं. लालचंद जैन ‘राकेश’-गंजबासौदा को, २००३ में पं. खेमचंद जैन-जबलपुर को, २००४ में सुरेश जैन ‘मारोरा’-शिवपुरी को, सन् २००५ एवं २००६ के पुरस्कार क्रमश: प्रो. पद्मावत्थम्मा-मैसूर एवं सौ. समीक्षा नांदगांवकर को,
सन् २००७ का श्रीमती संगीता विनायका, इंदौर को, सन् २००८ एवं २००९ के पुरस्कार क्रमश: श्री सुरेशचंद जैन बारौलिया-आगरा एवं डॉ. रेखा जैन-इंदौर को, सन् २०१० का इंजी. श्री सुल्तान सिंह जैन, रुड़की (उत्तराखंड) को, सन् २०११ का पुरस्कार डॉ. प्रगति जैन-इंदौर (म.प्र.) को, सन् २०१२ का पुरस्कार डॉ. देवकुमार जैन, रायपुर (छत्तिसगढ़) को एवं सन् २०१३ का यह पुरस्कार डॉ. कृष्णा जैन, ग्वालियर (म.प्र.) को प्रदान किया गया है। वर्ष २०१४ से इस पुरस्कार की सम्मान राशि १५०००/-रुपये कर दी गई है।
श्रीमती चंदारानी जैन स्मृति पुरस्कार-२०१४ से सम्मानित पं. शीतलचंद जैन शास्त्री, ललितपुर (उ.प्र.)
नाम-पं. शीतलचंद जैन शास्त्री, धर्मपत्नी-श्रीमती इन्द्रा जैन जन्म-२७-३-१९४१, शाहपुर (मगरौन), जिला-सागर (म.प्र.) माता-पिता-स्व. श्रीमती भागवती बाई जैन-स्व. श्री बट्टूलाल जैन परिवारजन-पुत्र-इंजी. श्री सतीश कुमार जैन (आर.ई.एस.)-श्रीमती प्रतिभा जैन, सुपुत्री-श्रीमती साधना जैन-श्री कमलेश कुमार जैन (एस.डी.ओ.-पी.डब्ल्यू.डी.), शहडोल-म.प्र., श्रीमती शिखा जैन-श्री जितेन्द्र कुमार जैन, इंदौर (म.प्र.) शिक्षा-एम.ए., बी.एड., शास्त्री कार्यक्षेत्र-सन् १९६३ से शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत तथा मार्च २००३ में शासकीय विद्यालय, सागर से उप प्राचार्य पद से सेवा निवृत्त।
वर्तमान में श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर में प्राध्यापक। धार्मिक कार्यकलाप-विगत ५० वर्षों से देश के विभिन्न महानगरों-नगरों में प्रतिवर्ष दशलक्षण के अवसर पर उच्च शैली में प्रवचन द्वारा धर्मप्रभावना, अनेक विद्वत् संगोष्ठियों में आलेख वाचन, शिविरों में अध्यापन तथा धार्मिक लेखन आदि।
विशेष रूप से विद्वत् महासंघ, शास्त्री परिषद एवं विद्वत् परिषद के साथ सम्बद्ध रहकर उपयोगी सेवाएँ। गुरुभक्ति-आपने पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति अनन्य श्रद्धा भक्ति रखते हुए प्रतिवर्ष दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान एवं तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के माध्यम से दशलक्षण के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर प्रवचन एवं संस्थान की प्रभावना का श्रेष्ठ प्रयास किया है।
पुरस्कार-एटा जैन समाज द्वारा सन् १९९२ में ‘विद्वत् समाज रत्न’ तथा सन् २००१ में जम्बूद्वीप संस्थान द्वारा पुरस्कृत। अत: ऐसे पं. शीतलचंद जी को आज हम तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की ओर से शरदपूर्णिमा-८ अक्टूबर २०१४ के शुभ अवसर पर ‘‘श्रीमती चंदारानी जैन स्मृति पुरस्कार’’ से सम्मानित करते हुए अत्यन्त हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं।
जम्बूद्वीप बाल प्रतिभा पुरस्कार परिचय
दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा वर्ष २०१० में स्थापित यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दिगम्बर जैन समाज के प्रतिभाशाली बालक-बालिकाओं को प्रदान किया जाता है।
प्रारंभ में वर्ष २०१०-२०११ के यह पुरस्कार श्रीमती ज्ञाना देवी जैन-टिकेतनगर (बाराबंकी) उ.प्र. के सौजन्य से अपने पति स्व. श्री प्रकाशचंद जैन की स्मृति में क्रमश: चि. अतिशय जैन-कमल मंदिर, प्रीतविहार, दिल्ली (सुपुत्र श्री अनिल कुमार जैन) को तथा सन् २०११ में चि. जिनेश जैन पापड़ीवाल-पैठण (महा.) (सुपुत्र श्री संजय पापड़ीवाल) को प्रदान किये गये। पश्चात् यह पुरस्कार लगातार संस्थान के सौजन्य से वर्ष २०१२ में चि. उज्ज्वल जैन (सुपुत्र श्री उदय-मोनिका जैन), बाराबंकी (उ.प्र.) को तथा वर्ष २०१३ में चि. भूमिक भामावत बाल जादूगर (सुपुत्र श्री चन्द्रकुमार भामावत)-उदयपुर (राज.) को प्रदान किया गया।
जम्बूद्वीप बाल प्रतिभा पुरस्कार-२०१४ में सम्मानित चि. विनोद चन्द्रकांत जैन गंदिगवाड, बस्तवाड
नाम-चि. विनोद चन्द्रकांत जैन गंदिगवाड, बस्तवाड (हलगा), जिला-बेलगांव (कर्नाटक) जन्म -२२-२-१९९२, बस्तवाड शिक्षा-दसवीं व्यवसाय-खेती माता-पिता-श्रीमती श्यामला जैन गंदिगवाड़-स्व. श्री चन्द्रकांत देवेन्द्र जैन गंदिगवाड़ परिवारजन -३ भाई-अनिल गंदिगवाड़, नागराज गंदिगवाड़ एवं स्वयं विशेष प्रतिभा-अपने अद्वितीय हुनर के कारण पेन्सिल की लीड तथा चावल के दानों पर आश्चर्यचकित कर देने वाली कलाकृति प्रस्तुत करना।
जैसे-पेन्सिल की लीड पर अंग्रेजी भाषा में राष्ट्र गीत लिखना, १००८ भगवान पाश्र्वनाथ की प्रतिमाएँ उकेरना, एक चावल के दाने पर तीर्थंकर भगवान की चतुर्मुखी प्रतिमा अंकित करना आदि अनेक विशिष्ट नमूने प्रस्तुत करके जन-जन में अपनी कला के माध्यम से जैनधर्म के प्रचार एवं तीर्थंकर प्रतिमाओं की महिमा को प्रचारित-प्रसारित करना।
सम्मान-आचार्य श्री कुलरत्नभूषण जी महाराज द्वारा ‘‘आदर्श कलारत्न पुरस्कार’’ तथा रोटरी क्लब से सर्टिफिकेट पुरस्कार। अत: ऐसी अनूठी कला के धनी चि. विनोद को आज हम शरदपूर्णिमा-८ अक्टूबर २०१४ के शुभ अवसर पर ‘‘जम्बूद्वीप बाल प्रतिभा पुरस्कार’’ से सम्मानित करते हुए अत्यन्त हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं।
जम्बूद्वीप बाल प्रतिभा पुरस्कार से सम्मानित चि. विनोद द्वारा पेन्सिल की लीड व चावल पर बनायी गई विभिन्न तीर्थंकर प्रतिमाएँ एवं कलात्मक आकृतियाँ